वडे जैनशासननी महत्ता नथी. जेनाथी मोक्ष थाय–श्रेय थाय–हित थाय एवा शुद्धभाव वडे ज
जैनशासननी प्रधानता छे, पुण्य वडे तेनी प्रधानता नथी.
अहो! त्रण भुवनमां सारभूत एवी जे रत्नत्रयरूप बोधि, तेने जीव जैनशासनमां ज
पामे छे; आ सिवाय बीजे तो बोधि (मोक्षमार्ग) छे ज नहीं. जैनशासनमां ज यथार्थ श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्ररूप बोधिनो उपदेश छे, अने तेनी प्राप्ति पण जैनशासनमां ज छे. ‘जैनशासन’ ते
कयांय–बहारमां नथी पण आत्माना शुद्धपरिणाम ते ज जैनशासन छे.
एक तरफ स्वद्रव्य,
बीजी तरफ परद्रव्यो;
–तेमां स्वद्रव्याश्रित परिणमन ते मोक्षनुं कारण,
अने परद्रव्याश्रित परिणमन ते संसारनुं कारण.
जगतमां स्वद्रव्य तेमज परद्रव्यो एक साथे छे, अने ते भिन्न भिन्न छे. चैतन्यस्वरूप
आत्मा एक ज स्वद्रव्य छे अने ते सिवाय शरीर आदि बधाय परद्रव्यो छे. परथी भिन्न
चैतन्यस्वरूप स्वद्रव्यमां ज अहं बुद्धि एटले के ‘आ ज हुं’ एवी मान्यता ते यथार्थश्रद्धा छे;
अने चैतन्य स्वरूपने चूकीने शरीरादिक परद्रव्यमां अहं–मम बुद्धि ते मिथ्याश्रद्धा छे; परचीजने
पोतानी मानवी ते ऊंधी श्रद्धा छे. जुओ, जगतमां स्वद्रव्य छे ने परद्रव्यो पण छे, जीव पण छे
ने अजीव पण छे; स्वद्रव्यनुं भान करीने तेना आश्रये मोक्षमार्ग साधनारा जीवो पण छे, तेम ज
स्वद्रव्यने भूलीने परद्रव्यमां अहं–ममबुद्धिरूप भ्रमणाथी संसारमां रखडनारा जीवो पण छे. ते
भ्रमणा क्षणिक पर्यायमां छे, चैतन्यनी यथार्थ ओळखाण वडे ते भ्रमण टाळीने सम्यक् श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्र तथा मोक्षदशा प्रगटे छे, तथा आत्मा सळंगपणे कायम टकी रहे छे.–आमां साते
तत्त्वो आवी जाय छे.–आवी यथार्थ तत्त्वोनी वात जैनशासनमां ज छे. अने तेमां ज बोधिनी
प्राप्ति थइ शके छे. आ सिवाय बीजे कयांय बोधिनो यथार्थ उपदेश के तेनी प्राप्ति नथी.
कां तो एकला जीवने ज माने, ने अजीवनुं अस्तित्व जगतमां माने ज नहि,
कां तो वस्तुने तद्न क्षणिक पलटती ज माने, ने तेनी धु्रवताने माने ज नहि,
कां तो वस्तुने सर्वथा धु्रव ज माने, ने तेनी पर्याय पलटवानुं माने ज नहि,
कां तो राग वडे के निमित्तोना आश्रये जीवनुं हित थवानुं माने.
–तो ते बधाय अन्यमत छे, तेमां कयांय यथार्थ बोधिनी–मोक्षमार्गनी प्राप्ति थती नथी.
जैनशासनमां ज यथार्थ बोधिनी प्राप्ति थाय छे. त्रण भुवनमां सारभूत एवा रत्नत्रयरूप
मोक्षमार्ग जैनशासनना सेवनथी ज पमाय छे–एवुं तेनुं माहात्म्य छे.
केवो जीव बोधि पामे?
जैनशासनमां बोधि पामनार जीव केवो होय छे?–जेने शुद्ध चैतन्यमूर्ति स्वद्रव्यमां ज
अहंबुद्धि थई छे ने परद्रव्यमांथी अहंबुद्धि छूटी गई छे, रागमां पण लाभनी मान्यता छूटी गइ
छे, एवो जीव जैनशासनमां बोधि पामे छे. जेने रागनी रुचि छे तेने परद्रव्यनी ज प्रीति छे, तेने
जैनशासननी खबर नथी, आत्माना स्वभावनी खबर नथी. जैनशासन एम कहे छे के शुद्धभाव
पोषः २४८२ ः ४पः