ज्ञानस्वभावनी सावधानीथी समचित–वीतरागभाव थई जाय; आ ज जैनशासन छे.
तेनी साथे ज्ञाताज्ञेयपणानो ज संबंध छे, पण ते वेरी थईने आ जीवनुं अहित करे–एवो तेनो
स्वभाव नथी. जगतमां कोई द्रव्य कोई द्रव्यनुं वेरी छे ज नहीं. परद्रव्यने इष्ट–अनीष्ट मानवुं ते
भ्रमबुद्धि छे.
ज्ञानसूर्य छे, तेनुं बहुमान कर ने रागनुं बहुमान छोड. शुभरागनुं पण बहुमान छोड ने तारा
शुद्धस्वभावनुं बहुमान कर. तारे खरेखर जैनशासननुं सेवन करवुं होय तो तेनाथी विरुद्ध एवा
रागनुं सेवन छोड. जैनशासनमां रागने धर्म नथी कह्यो, जैनशासनमां तो वीतरागभावने ज
धर्म कह्यो छे. आवा जैनशासनना सेवनथी ज मोक्षमार्गनी प्राप्ति थाय छे,–ए तेनो महिमा छे.
आवा शुद्ध स्वभावे देखवो–अनुभववो ते ज जिनशासनमां जिनेन्द्र भगवाननी आज्ञा छे,
समयसारनी पंदरमी गाथामां पण आचार्य भगवाने ए ज कह्युं छे के जे आ भगवान शुद्ध
आत्मानी अनुभूति छे ते समस्त जिनशासननी अनुभूति छे.
जशे ने अपूर्व आनंद तथा बोधतरंग सहित सम्यग्दर्शननी प्राप्ति थशे. आ सिवाय बीजो कोई
मोक्षनो उपाय नथी. माटे हे जीवो! अंतरमां वळो......आत्माना शुद्धस्वभावनुं लक्ष अने पक्ष
करीने तेनो अनुभव करो.
बताव्युं छे; तथा तेनाथी विरुद्ध मिथ्यात्व शुं, तथा कषाय शुं, ते ओळखावीने तेना नाशनो
यथार्थ उपाय पण जैनशासनमां ज बताव्यो छे; अन्य मतमां कयांय ते वातनुं यथार्थ कथन पण
नथी ने तेवो वीतरागभाव पण तेमनामां होतो नथी. आ रीते जैनशासनमां ज यथार्थ बोधिरूप
मोक्षमार्गनी प्राप्ति थाय छे.