Atmadharma magazine - Ank 147
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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वाणी छे. आ वात समजे तो जरूर बोधिनी प्राप्ति थई जाय; आ समजतां अंतरमां
ज्ञानस्वभावनी सावधानीथी समचित–वीतरागभाव थई जाय; आ ज जैनशासन छे.
‘दरियामां रहेवुं ने मगर साथे वेर’–ए केम चाले? तेम आ जगत ते अनंता जीवअजीव
द्रव्योनो दरियो छे, ते जगतमां रहेवुं ने परद्रव्यो साथे वेर–एम केम बने? परद्रव्य तो ज्ञेय छे,
तेनी साथे ज्ञाताज्ञेयपणानो ज संबंध छे, पण ते वेरी थईने आ जीवनुं अहित करे–एवो तेनो
स्वभाव नथी. जगतमां कोई द्रव्य कोई द्रव्यनुं वेरी छे ज नहीं. परद्रव्यने इष्ट–अनीष्ट मानवुं ते
भ्रमबुद्धि छे.
हे भाई! तारे जैनशासनुं सेवन करवुं होय तो रागनुं सेवन छोड.
जैनशासन कहे छे के हे भाई! तुं तो ज्ञान छो, तारा ज्ञानमां परद्रव्य कांई बगाडतुं नथी,
ने तारा ज्ञानमां शुभ अशुभ राग करवानो पण स्वभाव नथी. तारो आत्मा तो चैतन्यप्रकाशी
ज्ञानसूर्य छे, तेनुं बहुमान कर ने रागनुं बहुमान छोड. शुभरागनुं पण बहुमान छोड ने तारा
शुद्धस्वभावनुं बहुमान कर. तारे खरेखर जैनशासननुं सेवन करवुं होय तो तेनाथी विरुद्ध एवा
रागनुं सेवन छोड. जैनशासनमां रागने धर्म नथी कह्यो, जैनशासनमां तो वीतरागभावने ज
धर्म कह्यो छे. आवा जैनशासनना सेवनथी ज मोक्षमार्गनी प्राप्ति थाय छे,–ए तेनो महिमा छे.
जिनशासनमां जिनेन्द्रदेवनी आज्ञा
भाई! तारा अंतरमां पूरो परमात्मा बिराजे छे. तेरे अंतरमें भगवान परमेश्वर बिराज
रहा है, उसको देख! अंतर्मुख होकर उसका अवलोकन कर! जुओ, अंतरमां पोताना आत्माने
आवा शुद्ध स्वभावे देखवो–अनुभववो ते ज जिनशासनमां जिनेन्द्र भगवाननी आज्ञा छे,
समयसारनी पंदरमी गाथामां पण आचार्य भगवाने ए ज कह्युं छे के जे आ भगवान शुद्ध
आत्मानी अनुभूति छे ते समस्त जिनशासननी अनुभूति छे.
देखो.यह जैनशासनका उपदेश!
अहो! जीवो! स्वभावनी सावधानी करो.....स्वसन्मुख वळो.....अंतरमां तमारा
शुद्धआत्माने देखो! अंतरमां शुद्धआत्माने देखतां ज अनादिना मिथ्यात्वरूप मोहनो नाश थई
जशे ने अपूर्व आनंद तथा बोधतरंग सहित सम्यग्दर्शननी प्राप्ति थशे. आ सिवाय बीजो कोई
मोक्षनो उपाय नथी. माटे हे जीवो! अंतरमां वळो......आत्माना शुद्धस्वभावनुं लक्ष अने पक्ष
करीने तेनो अनुभव करो.
–मोक्षमार्गनी प्राप्तिनुं आवुं कथन जिनशासनमां ज छे. मिथ्यात्व तथा कषायनी व्याख्या
पण अन्यमतमां यथार्थ नथी. जैनमतमां ज आत्माना वीतरागी स्वभावनुं यथार्थ स्वरूप
बताव्युं छे; तथा तेनाथी विरुद्ध मिथ्यात्व शुं, तथा कषाय शुं, ते ओळखावीने तेना नाशनो
यथार्थ उपाय पण जैनशासनमां ज बताव्यो छे; अन्य मतमां कयांय ते वातनुं यथार्थ कथन पण
नथी ने तेवो वीतरागभाव पण तेमनामां होतो नथी. आ रीते जैनशासनमां ज यथार्थ बोधिरूप
मोक्षमार्गनी प्राप्ति थाय छे.
साधकने राग होय – पण राग ते जैनधर्म नथी, जैन धर्म तो वीतराग भाव ज छे.
पोषः २४८२ ः ४७ः