तरफनो झूकाव ते ज जिनशासन छे. धर्मीने साधकदशामां राग पण होय, परंतु ते जाणे छे के आ
राग ते धर्म नथी. धर्म तो मारा स्वभावना ज अवलंबने वीतरागभावरूप छे.
ज धर्म थाय छे, माटे तुं तारा स्वद्रव्यने ओळखीने तेमां अंतर्मुख था. भगवान पोते पण
परद्रव्य तरफना झूकावथी परमात्मपद नथी पाम्या पण अंतरमां स्वद्रव्यमां लीनताथी ज
भगवाने परमात्मपद साध्युं छे; ने उपदेशमां पण ए ज मार्ग बताव्यो छे के हे जीवो! तमारी
परमात्म शक्ति तमारा आत्मामां ज छे, तेमां अंतर्मुख थाव.....अंतरना अवलोकनथी
परमात्मपद प्रगटे छे.
सेवनथी ज जीव पामे छे, केमके तेनो यथार्थ उपाय जैनशासनमां ज छे, बीजे नथी. आथी
जिनशासननो ज महिमा छे.
शुभभाव पण थतो होवा छतां ते धर्म नथी; धर्म तो ते अशुभ ने शुभ बंनेथी पार छे, रागरहित
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप शुद्धभाव ते ज धर्म छे; वीतरागी शुद्धभाव ज जैनधर्म छे.
अस्थिरताने कारण राग थतो होवा छतां तेनी द्रष्टिनुं ध्येय पलटी गयुं छे. तेनी द्रष्टिनुं ध्येय तो
शुद्ध ज्ञानानंद स्वभाव ज छे. हुं तो शुद्धज्ञानानंद स्वभाव ज छुं एवी धर्मीनी द्रष्टि राग वखते
पण छूटती नथी. जोके गृहस्थपणामां समकितीने विषयकषाय हजी सर्वथा नथी छूटया पण तेनुं
ध्येय रह्युं नथी, तेनुं ध्येय पलटी गयुं छे, शुद्ध आत्मा ज तेनुं ध्येय छे. अनादिथी ध्येय परमां ने
रागमां ज मान्युं हतुं ते पलटीने हवे शुद्ध आत्माने ज ध्येय बनाव्यो छे. ने आवुं ध्येय
जैनशासन ज बतावे छे माटे जैनशासनना सेवनथी ज यथार्थबोधि (रत्नत्रय) पमाय छे.
आ वात समज. आ समज्ये ज तारुं हित छे.