समकितीने तेवो भक्तिभाव पोतानी भूमिकाने कारणे आवे छे.
छे. केम के–सम्यग्दर्शन वगर मिथ्याद्रष्टि जीव एकला शुभभावथी जे वैयावृत्यादि करे ते कांई तीर्थंकर प्रकृतिना बंधनुं
कारण न थाय, पण ते तो साधारण पुण्यबंधनुं कारण छे. अहीं तो सम्यग्दर्शन सहितना विशेष भावोनी वात छे.
तीर्थंकरप्रकृतिना कारणभूत आ सोळ भावनानो शुभभाव तो समकितीने ज आवे छे.
नथी, पण त्यां साथे अर्हंत भगवाननी भक्तिनो भाव ऊछळे छे ते शुभभावथी तीर्थंकरप्रकृति बंधाई जाय छे.
बंधावाथी जीवने (–पोताने के परने) लाभ छे एम नथी बताववुं. केम के ते जीवने पोताने पण ज्यारे ते प्रकारना
रागनो अभाव थशे त्यारे ज केवळज्ञान थशे, ने केवळज्ञान थशे त्यारे ज तीर्थंकरप्रकृतिनुं फळ आवशे; तेना निमित्ते
जे दिव्यध्वनि छूटशे ते दिव्यध्वनिना लक्षे पण सामा श्रोता–जीवने धर्मनो लाभ नथी थतो, पण ते वाणीनुं लक्ष
छोडीने पोताना ज्ञानानंदस्वभावनुं लक्ष करे त्यारे ज तेने धर्मनो लाभ थाय छे ने त्यारे ज तेने माटे वाणीमां
धर्मना निमित्तपणानो आरोप थाय छे. आ रीते तीर्थंकरप्रकृतिना बंधभावथी स्वने के परने धर्मनो लाभ थतो नथी.
छतां ते भाव धर्मनी भूमिकामां ज होय छे, ने छतां धर्मी तेनो उपादेय मानता नथी.
बधायने होय ज–ए नियम छे.
अर्हंतभगवान वगेरेनी व्यवहारभक्तिनो भाव पण नथी उल्लसतो तेने परमार्थभक्ति एटले के सम्यग्दर्शनादिनी
पात्रता तो होय ज कयांथी?
मुख्य गणीने ते वेपार करे छे; तेने लाभनुं ज लक्ष छे. तेम समकितीना उपयोगनो वेपार आत्मा तरफ वळी गयो
छे–तेमां आत्मामां लक्षनो लाभ थाय छे. समकिती–वेपारीनी द्रष्टि लाभ उपर ज छे, स्वभावनी द्रष्टिमां तेने
शुद्धतानो लाभ ज थतो जाय छे. शुभराग होवा छतां तेनी द्रष्टि तो शुद्धस्वभावना लाभ उपर ज छे. पोताना शुद्ध
चिदानंदस्वभाव उपर द्रष्टि राखीने समकिती जीवने जिनेन्द्र भगवाननुं बहुमान–भक्ति–पूजा, जिनमंदिर तथा
जिनबिंब प्रतिष्ठानो उत्सव, तीर्थयात्रा वगेरेनो शुभभाव आवे छे, ते रागना निमित्ते कंईक आरंभसमारंभ पण
थाय छे,–पण धर्मीने तो धर्मना बहुमाननुं लक्ष छे, हिंसानो तेनो भाव नथी, तेनो भाव तो धर्मना बहुमाननो छे
एटले त्यां अल्प आरंभने मुख्य गण्यो नथी, अने स्वभावद्रष्टिना उल्लासमां अल्प रागने पण मुख्य गण्यो नथी.
पोताना परिणाममां धर्मनो उल्लास छे अने तेथी धर्मनो लाभ थतो जाय छे तेनी ज मुख्यता छे. त्यां अल्प राग तो
छे, पण धर्मीनो उल्लास ते राग तरफ नथी, धर्मीनो उल्लास तो धर्म उपर ज छे. आवा धर्मीने ज अर्हंत भक्ति
वगेरेना भावथी तीर्थंकरप्रकृति बंधाय छे.
सम्यग्दर्शन सहितनी आचार्यभक्तिनी वात छे.