श्री गोम्मटसारजीमां ‘योग्यता’ नुं स्पष्ट कथन
अत्रीपयोगी श्लोकः–निमित्तमांतरं तत्र योग्यता वस्तुनि स्थिता।
बहिर्निश्चयकालस्तु निश्चितं तत्त्वदर्शिभिः ।।
(हिंदी–) इहां प्रासंगिक श्लोक कहिए है–(उपरनो श्लोक)
(श्लोकनो अर्थ–) तीहिं वस्तुविषे तिष्ठति परिणमनरूप जो योग्यता सो अंतरंग निमित्त है बहुरि
तिस परिणमन का निश्चयकाल बाह्य निमित्त है ऐसें तत्त्वदर्शीनिकरी निश्चय किया है ।। ५८०।।”
–देखो, श्री गोम्मटसार–जीवकांड गाथा ५८० की टीका, बडा पुस्तक पृष्ठ १०२२–२३
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(श्लोकनो गुजराती अर्थः–) ते वस्तुने विषे रहेली
परिणमनरूप जे योग्यता ते अंतरंग निमित्त छे, अने ते
परिणमनमां निश्चयकाळ बाह्य निमित्त छे–एम तत्त्वदर्शीओ वडे
निश्चय करवामां आव्यो छे.
नोंधः–(१) अहीं अंतरंग निमित्त कहेतां क्षणिक उपादान कारण
समजवुं अने बाह्यनिमित्त एटले निमित्तकारण समजवुं.
(२) अहीं ‘परिणमनरूप योग्यता’ कही ते वस्तुनी
पर्यायनो स्वकाळ छे, अने तेमां बाह्य निमित्त कह्युं ते परकाळ छे.
(३) अहीं ‘परिणमन योग्यता’ एम कह्युं छे एटले
आ वस्तुनी त्रिकाळी योग्यतानी वात नथी पण तेनी समय
समयनी पर्यायनी योग्यतानी वात छे, ए खास ध्यानमां लेवा
योग्य छे.
(४) दरेक वस्तुनी पोतानी योग्यताथी ज कार्य थाय छे,
निमित्तने लीधे कंई पण थतुं नथी–एवो जे योग्यतानो स्पष्ट
सिद्धांत पू. गुरुदेव समजावे छे, ते सांभळीने अनेक विद्वानो कहे
छे के ‘योग्यता माटे कांई शास्त्राधार छे?’–तेथी अहीं श्री
गोम्मटसारशास्त्रमांथी एक मुख्य अने स्पष्ट आधार आप्यो छे;
बीजा पण अनेक शास्त्रोमां आ संबंधी स्पष्ट कथन आवे छे.