Atmadharma magazine - Ank 147
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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[“गीरनार यात्रा महोत्सव” प्रसंगे जुनागढमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन]
* वीर सं. २४८० माह सुद १० *
भ ग वा न नो मा र्ग
जुओ, आ गीरनार ते नेमिनाथ भगवाननी पवित्र भूमि छे;
जमीननां रजकणो भले पलटी गयां होय, पण जे धर्मास्ति, अधर्मास्ति,
काळाणुओ तथा आकाशना प्रदेशो नेमिनाथ भगवानना वखतमां हता
ते ने ते ज आजे छे, ते कांई पलटीने बीजां नथी आव्यां; तेम ज जे
मार्गथी भगवान मुक्ति पाम्या ते ज मुक्तिनो मार्ग आजे छे, कांई
मोक्षमार्ग बीजो नथी. ‘भगवान जे पंथे विचर्या ते पंथे विचरवुं’ एटले
के चैतन्यस्वभाव जेवा श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रथी भगवान मुक्त दशा
पाम्या तेवा सम्यक्–श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र पोताना आत्मामां प्रगट करवा
ते भगवाननो पंथ छे ने ते ज मुक्तिनो मार्ग छे.
– पू. गुरुदेव.
भावमंगळ अने भूमिंगळ
जुनागढना गीरनार उपर भगवान श्री नेमिनाथ प्रभुना दीक्षा, केवळ ने मोक्ष ए त्रण कल्याणक थया
छे तेथी आ भूमि पण मंगळ छे. भगवानना आत्माए जे पवित्र भावथी केवळज्ञानादि प्रगट कर्या ते भाव तो
मंगळरूप छे अने तेना निमित्तथी आ भूमि पण मंगळ छे. भगवान श्री नेमिनाथ प्रभु ज्यारे साक्षात् तीर्थंकरपणे
अहीं बिराजता हता त्यारे श्रीकृष्ण अने बलभद्र जेवा श्लाका पुरुषो तेमना चरणे नमस्कार करता हता; स्वर्गमांथी
इन्द्रो अने देवो अहीं भगवाननी भक्ति करवा ऊतरता हता. भगवान नेमिनाथ प्रभुने ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानुं
भान तो पहेलेथी हतुं. पछी लग्न माटे अहीं आवेला त्यारे वैराग्य थतां अहींना सहस्राम्रवनमां भगवान दीक्षित
थया; पछी आनंद निधान आत्मामां रमणतां करतां करतां केवळज्ञान पण त्यां ज पाम्या हता अने मोक्षदशा पण
आ गीरनारजीनी पांचमी टूंकेथी पाम्या हता. ज्यांथी भगवान मोक्ष पाम्या त्यां ईंद्रे भगवानना चरणचिह्न कर्यां
हता. तीर्थंकर थनार आत्मा अनादिअनंत मंगळरूप छे एटले भगवाननो आत्मा पोते द्रव्यमंगळ छे, अने
भगवानना आत्मामां जे केवळज्ञानादि भाव प्रगटया ते भाव मंगळ छे; ते काळ अने क्षेत्र
ः ३८ः
आत्मधर्मः १४७