तेवा भावनुं स्मरण थाय छे. जे भावथी भगवाने मुनिपणुं, केवळज्ञान अने मोक्षदशा प्रगट करी ते भावने
ओळखीने, पोताना आत्मामां पण तेवो भाव प्रगट करवो ते अपूर्व धर्म छे, अने ते परमार्थ जात्रा छे.
छे, पण अनादिकाळथी संसारमां रखडता जीवे एक क्षण पण तेनुं भान कर्युं नथी. देहथी भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्माने
जाण्या विना जे कांई शीख्यो ते बधी परवस्तुनी कळा शीख्यो छे, पण चैतन्यनी ज्ञानकळा कदी शीख्यो नथी.
संसारनी चार गतिमां रखडतां अज्ञानी जीवे क्रूर हिंसादिना पापभावो कर्यां छे, ने दया वगेरेना पुण्यभावो पण
कर्या छे, परंतु ते पाप तेमज पुण्य बंनेथी पार चिदानंदस्वरूप आत्मा अनादि–अनंत छे तेनुं भान पूर्वे कदी कर्युं
नथी.
साधनमांथी ते तीखास नथी आवती. तेम आत्माना स्वभावमां ज्ञानसामर्थ्य परिपूर्ण छे तेनामां केवळज्ञान थवानी
ताकात पडी छे; केवळज्ञान कोई निमित्तना संयोगमांथी नथी आवतुं पण अंतरनी शक्तिमांथी ज व्यक्त थाय छे.
आवा स्वभावसामर्थ्यनी प्रतीत करवी ने तेमां लीनता करवी ते भवभ्रमणथी छूटीने मुक्त थवानो उपाय छे.
दोष टळवा योग्य छे अने दोष टाळीने निर्दोषपणे आत्मा कायम रही शके छे. विकारी अने अल्पज्ञ ज रहे एवो
आत्मानो स्वभाव नथी, पण विकारने टाळीने परिपूर्ण ज्ञान प्रगट करी त्रिकाळवेत्ता थाय एवो आत्मानो स्वभाव
छे. आ रीते क्षणिक दोष अने ते दोष रहित कायमी निर्दोष स्वभाव ए बंनेने जाणीने, निर्दोष स्वभावनुं अवलंबन
करतां दोष टळी जाय छे ने सर्वज्ञता प्रगटी जाय छे.
तेमां एकाग्रता वडे ज भगवान सर्वज्ञ थया छे. सर्वज्ञ थया पछी दिव्यध्वनिमां भगवाने एम कह्युं के हे जीवो!
तमारा आत्मामां पण सर्वज्ञ थवानी ताकात पडी छे, तेनो विश्वास करीने तेनुं अवलंबन करो. आत्मानी शक्तिमां
निर्दोषता, ज्ञान अने अविकारी आनंदरस परिपूर्ण छे तेमांथी ज सर्वज्ञता ने पूर्णानंद प्रगट थाय छे.
छे, ते कायमी चीज नथी, अने दोष वगरनो निर्दोष स्वभाव कायम छे. सदोषतामांथी निर्दोषता आवती नथी, पण
जे कायमी निर्दोष स्वभाव छे तेना आधारे निर्दोषता थाय छे. हिंसादि पापलागणी ते विकार छे, दयादिनी शुभ
लागणी ते पण विकार छे, आत्मानो स्वभाव ते विकार रहित सर्वज्ञशक्तिवाळो छे, पण तेना बेभानथी पोताने
दोषवाळो ज मानीने अज्ञानी जीव संसारमां रखडी रह्यो छे.
मोक्षमार्ग कयांथी होय? माटे जेणे मोक्षमार्ग प्रगट
पोषः २४८२