Atmadharma magazine - Ank 147
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 5 of 21

background image
पण मंगळ छे. भगवाने पोताना आत्मामां जेवो भाव प्रगट कर्यो तेवा भावने जे ओळखे, तेने आ क्षेत्र जोतां
तेवा भावनुं स्मरण थाय छे. जे भावथी भगवाने मुनिपणुं, केवळज्ञान अने मोक्षदशा प्रगट करी ते भावने
ओळखीने, पोताना आत्मामां पण तेवो भाव प्रगट करवो ते अपूर्व धर्म छे, अने ते परमार्थ जात्रा छे.
चैतन्यनी कळा
भगवान नेमिनाथ प्रभुने जे केवळज्ञान थयुं ते कयांथी आव्युं? आत्माना अंर्तस्वभावमां केवळज्ञाननुं
सामर्थ्य हतुं तेमांथी ज ते प्रगट थयुं छे. दरेक आत्मामां केवळज्ञाननी ताकात छे, दरेक आत्मा सर्वज्ञ शक्तिनो पिंड
छे, पण अनादिकाळथी संसारमां रखडता जीवे एक क्षण पण तेनुं भान कर्युं नथी. देहथी भिन्न ज्ञानस्वरूप आत्माने
जाण्या विना जे कांई शीख्यो ते बधी परवस्तुनी कळा शीख्यो छे, पण चैतन्यनी ज्ञानकळा कदी शीख्यो नथी.
संसारनी चार गतिमां रखडतां अज्ञानी जीवे क्रूर हिंसादिना पापभावो कर्यां छे, ने दया वगेरेना पुण्यभावो पण
कर्या छे, परंतु ते पाप तेमज पुण्य बंनेथी पार चिदानंदस्वरूप आत्मा अनादि–अनंत छे तेनुं भान पूर्वे कदी कर्युं
नथी.
शक्तिमांथी व्यक्ति
आत्मानो मूळ स्वभाव शुद्ध ज्ञानघन छे, सर्वज्ञ भगवान जेवी पूर्ण ताकात तेनामां पडी छे. जेम
लींडीपीपरना स्वभावमां तीखासनुं सामर्थ्य भर्युं छे तेमांथी ज चोसठपोरी तीखास प्रगटे छे, बहारना कोई
साधनमांथी ते तीखास नथी आवती. तेम आत्माना स्वभावमां ज्ञानसामर्थ्य परिपूर्ण छे तेनामां केवळज्ञान थवानी
ताकात पडी छे; केवळज्ञान कोई निमित्तना संयोगमांथी नथी आवतुं पण अंतरनी शक्तिमांथी ज व्यक्त थाय छे.
आवा स्वभावसामर्थ्यनी प्रतीत करवी ने तेमां लीनता करवी ते भवभ्रमणथी छूटीने मुक्त थवानो उपाय छे.
दोष टाळवानी रीत
जीव एम ईच्छे छे के मारे दोष टाळवा छे ने निर्दोषता प्रगट करवी छे. तेना उपरथी एम साबित थाय छे
के दोष वर्तमानमां क्षण पूरता छे अने ते टळी शके छे, एटले दोष ते आत्मानुं वास्तविक कायमी स्वरूप नथी, ते
दोष टळवा योग्य छे अने दोष टाळीने निर्दोषपणे आत्मा कायम रही शके छे. विकारी अने अल्पज्ञ ज रहे एवो
आत्मानो स्वभाव नथी, पण विकारने टाळीने परिपूर्ण ज्ञान प्रगट करी त्रिकाळवेत्ता थाय एवो आत्मानो स्वभाव
छे. आ रीते क्षणिक दोष अने ते दोष रहित कायमी निर्दोष स्वभाव ए बंनेने जाणीने, निर्दोष स्वभावनुं अवलंबन
करतां दोष टळी जाय छे ने सर्वज्ञता प्रगटी जाय छे.
सर्वज्ञतानुं सामर्थ्य
जुओ, अहीं आ गीरनार उपर भगवान नेमिनाथ प्रभु सर्वज्ञपद पाम्या छे; ते सर्वज्ञता कई रीते पाम्या
तेनी आ वात छे. कोई बहारना साधन वडे भगवान सर्वज्ञ थया नथी पण अंतरनी चैतन्यशक्तिनुं भान करीने
तेमां एकाग्रता वडे ज भगवान सर्वज्ञ थया छे. सर्वज्ञ थया पछी दिव्यध्वनिमां भगवाने एम कह्युं के हे जीवो!
तमारा आत्मामां पण सर्वज्ञ थवानी ताकात पडी छे, तेनो विश्वास करीने तेनुं अवलंबन करो. आत्मानी शक्तिमां
निर्दोषता, ज्ञान अने अविकारी आनंदरस परिपूर्ण छे तेमांथी ज सर्वज्ञता ने पूर्णानंद प्रगट थाय छे.
एकेक आत्मा शक्तिरूपे सर्वज्ञपद धरावे छे, सर्वज्ञतानी ताकात तेनामां ज पडी छे, पण निज शक्तिने
भूलीने ते पोताने रागादि जेटलो तुच्छ माने छे तेथी ते संसारमां रखडे छे. दोष ते आत्माना गुणनी क्षणिक विकृति
छे, ते कायमी चीज नथी, अने दोष वगरनो निर्दोष स्वभाव कायम छे. सदोषतामांथी निर्दोषता आवती नथी, पण
जे कायमी निर्दोष स्वभाव छे तेना आधारे निर्दोषता थाय छे. हिंसादि पापलागणी ते विकार छे, दयादिनी शुभ
लागणी ते पण विकार छे, आत्मानो स्वभाव ते विकार रहित सर्वज्ञशक्तिवाळो छे, पण तेना बेभानथी पोताने
दोषवाळो ज मानीने अज्ञानी जीव संसारमां रखडी रह्यो छे.
परमेश्वरनी प्रतीत
पोते सर्व गुणसंपन्न परिपूर्ण परमेश्वर छे पण ते पोतानी प्रतीत करतो नथी. प्रतीत विना सम्यग्दर्शन
कयांथी थाय? ने सम्यग्दर्शन विना सम्यग्ज्ञान के सम्यक्चारित्र कयांथी होय? सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वगर
मोक्षमार्ग कयांथी होय? माटे जेणे मोक्षमार्ग प्रगट
पोषः २४८२
ः ३९ः