जड छे, तेमां क्यांय तारो अधिकार नथी. तारुं चैतन्यतत्त्व देहथी पार,
अचिंत्य ज्ञानआनंदना वैभवथी भरेलुं छे, ते वैभवमांथी परमात्म–पद
प्राप्त थशे. प्रभु! एकवार तारी प्रभुताने देख. सर्वज्ञ भगवंतोए तारी
प्रभुतानां ज गाणां गाया छे... शास्त्रोए पण तारी प्रभुतानो ज महिमा
गायो छे... माटे तुं तारी प्रभुतानो एकवार उल्लास तो लाव!
परमात्म–शक्तिनी सन्मुख थईने तेनी रुचिरूपी गंध जेणे आत्मामां
प्रगटावी तेणे ते सुगंधीरूपी अगरबत्ती वडे परमात्मानुं पूजन कर्युं...
अंतरमां परमात्मशक्ति भरी छे तेनी सन्मुख थईने तेनी आराधना
करवी ते ज परमात्मपद प्राप्तिनो उपाय छे.
आत्मानी आराधनाथी मोक्ष थाय तेनी आ वात छे. आत्माना शुद्ध ज्ञानानंदस्वरूपना ध्यान वडे
दर्शनस्वरूप एवो जे तारो परम आत्मस्वभाव छे तेना ध्यान वडे ज मुक्ति थाय छे. अशुभ तो छोडवा जेवुं छे
ज, ने शुभ रागरूप सघळो व्यवहार पण छोडवा जेवो छे, ते व्यवहारने छोडीने, शुद्धचिदानंद आत्माना ध्यान
वडे ज परमपदनी प्राप्ति थाय छे. चोथा गुणस्थानवाळा समकितीने आवी श्रद्धा होय छे के मने मारा
शुद्धचिदानंद स्वरूपना अवलंबने ज मोक्षदशा थवानी छे, अंतरमां ध्यान वडे सहज चिदानंद आत्माना
अनुभवरूपी अमृतनुं पान करवुं–ते ज करवा जेवुं छे, वच्चे शुभ आवे ते व्यवहार छोडवा जेवो छे. धर्मात्मा
छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने झूलता मुनिने पण व्रत–तप–विनय–उपदेश वगेरेनी जे शुभ वृत्ति ऊठे ते छोडवा जेवी
छोडीने ज्ञानानंदस्वरूप परम आत्मानुं ध्यान करवानुं उपदेशमां कह्युं छे. –आम जाणीने जे योगीजनो जिनदेवे
कहेला परमात्मानुं ध्यान करे छे तेओ मुक्तिने पामे छे. आत्मानुं वास्तविक स्वरूप शुं छे ते जाण्या वगर तेनुं
ध्यान होई शके नहि. ध्यान एटले उपयोगनी एकाग्रता; शेमां उपयोगनी एकाग्रता करवानी छे ते जाण्या
वगर ध्यान कोनुं करशे? माटे ध्येयरूप शुद्धआत्मा केवो