तेनुं नाम मोक्ष छे. आ रीते आत्माना शुद्ध स्वरूपने ध्यावी–ध्यावीने ज अनंत जीवो परमपदने पाम्या छे.
अंतरमां पूर्ण ज्ञान ने आनंदशक्ति पोतानी स्वतंत्र छे, कोई बीजाने आधीन नथी, –एम पोतानी
अंर्तशक्तिने ओळखीने तेना ज ध्यान वडे तेमां लीन थईने शक्तिमांथी पूरुं ज्ञान ने पूरो आनंद प्रगट करीने
परमात्मा थया. आ ज विधिथी निर्वाणपदनी प्राप्ति थाय छे–एम जिनवरदेवनो उपदेश छे. माटे शुद्धआत्माने
ओळखीने तेमां एकाग्ररूप ध्यान ते परम कर्तव्य छे.
अतीन्द्रिय अमृतना अनुभवनी मस्तीमां मशगुल छे, अने ज्यारे ध्यानमां स्थिर न रही शके त्यारे शास्त्र–
अध्ययन आदि करे. जेने पापनी के पुण्यनी भावना छे, शुद्धआत्मानी ध्यानदशा जरापण प्रगटी नथी–ए तो
मिथ्याद्रष्टि छे, तेने मुनिदशा तो क्यांथी होय? आ तो सम्यग्दर्शन उपरांत आत्मामां घणी लीनतारूप
मुनिदशानी वात छे. ते मुनिदशामां जे पंचमहाव्रतादिनी शुभवृत्ति होय ते शुभवृत्तिने पण छोडीने निर्विकल्प
आत्मध्यानमां लीन थाय त्यारे केवळज्ञान थाय छे. पहेलां सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान पण शुद्धआत्माना
निर्विकल्प ध्यान वडे ज थाय छे, चारित्रदशा पण शुद्धआत्माना ध्यान वडे ज थाय छे, ने पछी केवळज्ञान पण
शुद्धआत्माना ध्यानमां लीनता वडे ज थाय छे. माटे कहे छे के हे मुनिजनो! निरंतर ध्याननो अभ्यास करो....
परमात्मस्वरूपनी भावना करो.
भावनामां मन लगावे, तेने पण ध्यानतुल्य गणवामां आव्युं छे.
बहिर्मुखथी दूर थवानो ने अंतर्मुख लीन थवानो उपदेश भगवाने कर्यो छे, तेथी भगवानना कहेला शास्त्रना
अभ्यासमां पण आत्मध्याननी ज भावना घूंटाय छे, माटे शास्त्रअध्ययनने ध्यान तुल्य कह्युं छे. –पण आ रीते
अंर्तमुख–द्रष्टिपूर्वक अभ्यास करे तेनी आ वात छे. रागथी लाभ माने तो तेणे सर्वज्ञना शास्त्रनुं अध्ययन
कर्युं ज नथी. सर्वज्ञना शास्त्रो तो राग छोडवानुं कहे छे ने आत्मामां अंतर्मुख थवानुं कहे छे. एटले
रत्नत्रयधारक मुनिओनुं मुख्य कर्तव्य तो आत्मध्यान छे; ने आत्माध्यानमां न रहेवाय त्यारे,
आत्मध्यानपोषक शास्त्रोनुं अध्ययन करे छे. शांतिनुं वेदन तो स्वभावना ज आश्रये थाय छे. तेथी पहेलांं
पोताना स्वरूपनो निर्णय करीने पछी तेनुं ध्यान करे छे. शास्त्रोमां परमात्मस्वरूपनो निर्णय कराव्यो छे. देहथी
पार, रागथी पार आत्मानुं परम शुद्ध स्वरूप शुं छे तेनो निर्णय करावीने शास्त्रोमां तेनो ज महिमा गायो छे,
तेथी शास्त्रोना अध्ययनमां पण मुनिवरोने शुद्धआत्मस्वरूपनी ज भावना घूंटाय छे.
एवा शास्त्रो आत्मानी परमात्मशक्तिनो निर्णय करावीने तेमां अंतर्मुख थवानुं कहे छे.... आत्मा अंर्तध्यान
वडे ज रागनो नाश थईने केवळज्ञानमय परमात्मपदनी प्राप्ति थाय छे. आ सिवाय बीजो मार्ग परमात्माए
सेव्यो नथी, ने उपदेशमां पण बीजो मार्ग कह्यो नथी. जे रीते भगवाने परमात्मदशा प्रगट करी छे ते ज रीते
भगवाने उपदेशमां बतावी छे. आत्मानो विचार करतां अंतरमां एकाग्रता करवी पडे छे, बहारमां नथी जोवुं
पडतुं, केम के आत्मानी शक्ति अंतरमां ज पडी छे, तेथी अंतर्मुख थईने तेनी श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रतारूप ध्यान
थाय छे. आ रीते अंतरमां ऊतर्ये परमात्मा थवाय छे. अंतर्मुख थईने वस्तुना स्वभावने ज साधवानो छे,
बहारमां कांई साधवानुं नथी. माटे कहे छे के हे भाई! तारा परम आत्म–