थवानुं बतावनारां वीतरागी शास्त्रोनुं अध्ययन करजे. मोक्षनो उपाय तो राग रहित थईने अंतरमां
परमात्मस्वरूपनुं ध्यान करवुं ते ज छे.
अंतरमां पोताना परमात्मस्वभावने ओळखीने तेनुं ध्यान करवुं ते ज परमात्मपदनी प्राप्तिनो उपाय छे.
अनंतचतुष्टयनी शक्तिथी भरेलो हुं ज कारणपरमात्मा छुं–एम कारणना ध्यानथी कार्य प्रगटी जाय छे. कारण–
परमात्मानी भावनाथी आत्मा पोते परमात्मा बनी जाय छे. शास्त्रोनो नीचोड आ छे के तारो आत्मा ज
परमात्मा छे एम तुं लक्षमां ले. तारी परमात्मदशा क्यांय बहारथी नहि आवे, तारा आत्मामां ज परमात्मा
थवानी ताकात भरी छे, तेना ध्यान वडे तेने खोल तो परमात्मदशा प्रगटे. अतीन्द्रिय आनंदरस तारामां ज
भर्यो छे... पूर्ण ज्ञान, पूर्ण दर्शन, पूर्ण वीर्य ने पूर्ण आनंदथी तुं भरेलो छे... तेमां अंतर डुबकी मार तो तेमांथी
पूर्णज्ञान–दर्शन–वीर्य ने आनंदरूप परमात्मदशा खीली जशे. जो अंतरमां नहीं होय तो क्यांथी आवशे? माटे
अंतरमां स्वभाव भर्यो छे तेने लक्षमां ले... तारा स्वभावनुं अंतर–अवलोकन कर, ते ज परमात्मा थवानो
उपाय छे. ने ए ज सर्वे शास्त्रोनो सार छे. शास्त्रो भणी भणीने शुं करवुं? के “अंतरमां हुं शुद्धचिदानंद
आनंदकंद परमात्मा छुं” एम पोताना आत्माने लक्षमां लईने तेने ध्याववो.
भगवान हुं छुं–एम पोताना आत्माने शुद्ध चिदानंदस्वरूपे ओळखीने अनुभवमां लेवो ते सर्वे शास्त्रोनो
नीचोड छे... ते ज सर्वज्ञभगवाननी आज्ञा छे... ते ज मुक्तिनो मार्ग छे.
अचिंत्य ज्ञानआनंदना वैभवथी भरेलुं छे, ते वैभवमांथी परमात्मपद प्राप्त थशे. प्रभु! एकवार तारी प्रभुताने
देख! सर्वज्ञ भगवंतोए तारी प्रभुतानां ज गाणां गायां छे... शास्त्रोए पण तारी प्रभुतानो ज महिमा गायो
छे. प्रभुतानी ताकात तारा आत्मामां भरी ले–तेनो एकवार उल्लास तो लाव. तारी प्रभुताने ओळखीने तेनी
आराधना कर... ते ज परमात्मपदनी प्राप्तिनो उपाय छे.
परमात्मस्वरूपना अतींद्रिय आनंदना अनुभवमां लीनता करवी ते सम्यक्चारित्रनी आराधना छे. आ रीते जे
जीव सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप रत्नत्रयनी आराधना करे छे ते आराधक छे, ने तेनी आराधनानुं फळ
केवळज्ञान छे.
ने तेमां लीन थईने आनंदरसना अनुभवमां एकाग्र थयो तेणे आनंदरूपी जळमां आत्मानो अभिषेक कर्यो.
आ रीते पोताना परमात्मस्वरूपनी रुचि करीने तेना अनुभवमां लीन थवुं ते ज परमात्मानी साची उपासना
छे, ते आराधना छे, ते ज परमात्मपदनी प्राप्तिनो उपाय छे.