त्यां परमात्मदशा पामेला जीवो प्रत्ये पण साचो पूज्यभाव साधकने आवे छे, ते व्यवहारपूजन छे.
परमात्मानी पहिचान वगर तेना तरफ साचो पूज्यभाव आवे नहि. माटे आवा परमात्मस्वरूपी
आत्मानी ओळखाण करवी ते ज खरी पूजा ने भक्ति छे. परमात्मस्वरूप आत्माने ओळखीने तेनुं
ध्यान करवुं ते ज मोक्षनो उपाय छे. आ रीते आत्मध्याननो परम महिमा छे.
रागनी रुचिवाळा जीवने आत्मानुं ध्यान होतुं नथी–ए वात हवे ३२मी गाथामां कहे छे–
जो जग्गदि ववहारे सो सुत्तो अप्पणो कज्जे।।
रागनी रुचि छे–रागरूप व्यवहारकार्यमां जागृत छे ते चैतन्यना कार्यमां ऊंघतो छे, आत्माना
हितनी तेने दरकार नथी. ज्ञानीने कांईक रागपरिणाम थाय पण ते चैतन्यनी जागृति छोडीने थता
नथी, तेने जागृति–उत्साह तो चैतन्यस्वरूप ज छे.
सम्यग्दर्शनादिरूप स्वकार्य सिद्ध थतुं नथी. ज्ञानी तो स्वकार्यमां जागे छे, चैतन्यना ध्यान वडे
रत्नत्रयरूप निज कार्यने ते साधे छे. आ सिवाय जेने रागनी रुचि छे–पुण्यनी रुचि छे ते स्वकार्यने
साधे छे एम जैनशासनमां कहेवामां आव्युं नथी; केम के राग ते स्वकार्य नथी. स्वकार्य एटले
आत्माना हितनुं कार्य; जेमां आत्मानुं हित न थाय तेने स्वकार्य केम कहेवाय? स्वकार्य तेने कह्युं के
जेनाथी आत्मानी मुक्ति थाय... एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज खरेखर स्वकार्य छे. ज्ञानी
पोताना स्वकार्यमां जागता छे, ने अज्ञानी तो रागने ज स्वकार्य मानीने तेमां जागे छे, एटले
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप स्वकार्यमां ते ऊंघे छे. ने रागमां–परमां ते जागे छे. माटे कहे छे के: जे
योगी–धर्मात्मा स्वकार्यने विषे जागे छे ते व्यवहारमां–रागमां सूतेला छे (–ते राग प्रत्ये जागृत–
तत्पर नथी), अने अज्ञानीओ रागमां–व्यवहारमां जागे छे ते स्वकार्यमां सूतेला छे.
व्यवहार करतां करतां मारुं हित थशे एम माननार अज्ञानी जीव व्यवहारमां जागतो छे ते
आत्माना कार्यमां ते ऊंघतो छे, तेने पोताना स्वभावनुं कार्य करतां आवडतुं नथी. रागने–व्यवहारे
ज मोक्षनुं कारण मानीने ज्ञानने त्यां रोकी दीधुं एटले आत्मा तरफ ते पोताना