अनंतानुबंधी रागादिना अभावरूप वीतरागी आचरणनी क्रिया न थई? बहारमां जडनी क्रिया तो कोई
आत्मा करी ज क्यां शके छे? माटे जेणे आत्मानुं कल्याण करवुं होय तेणे चिदानंदस्वरूप भगवानआत्मानी
साची ओळखाण करवी ते ज करवानुं छे. भले संसारमां गृहस्थपणामां रह्यो होय पण जो आत्मानी ओळखाण
अने श्रद्धा करे तो ते कल्याणना मार्गे छे; अने बहारमां त्यागी थईने पण जो अंतरमां आत्मानी समजण न
करे तो ते जीवनुं कल्याण थतुं नथी.
विचार करो के ते माणसे शुं क्रिया करी? बहारमां तो तेणे कांई कर्युं नथी, पण अंतरमां ते प्रकारनो निर्णय
करवामां ज्ञाननी क्रिया करी छे, अने ते ज्ञाननी क्रिया वडे ज ते प्रकारनुं असत्य टळीने सत्य थयुं छे. ए ज्ञान
सिवाय शरीरनी ऊठबेस वगेरे क्रिया वडे तेनी भूल टळे नहि. तेम–शरीरनां काम हुं करुं ने शरीरनी क्रियाथी
मारो धर्म थाय एम अज्ञानने लीधे जीव अने शरीरने एकपणे मानीने अज्ञानी जीव अनादिथी संसारमां रखडे
छे, शरीर अने आत्मा तद्न भिन्न होवा छतां तेमां एकपणानी मान्यताथी ते अज्ञानी जीव जे कांई आचरण
करे छे ते बधांय भूल भरेलां छे. शरीर हुं नथी, हुं तो ज्ञानस्वरूप आत्मा छुं–एम जड–चेतनना यथार्थ
भेदज्ञान वडे साची समजण करतां अनादिनी भूल टळी जाय छे, ते अपूर्व क्रिया छे. तो हवे विचारो के तेमां
जीवे शुं क्रिया करी? बहारमां शरीरादिनी तो कांई क्रिया जीवे करी नथी, पण अंतरमां ज्ञानस्वरूपनो कदी नहि
करेलो एवो अपूर्व निर्णय करवामां ज्ञाननी वीतरागी क्रिया तेणे करी छे. अने ते ज्ञाननी अंतरंग क्रिया वडे ज
अनादिनुं अज्ञान टळीने अपूर्व सम्यग्ज्ञान थयुं छे. आवी ज्ञानक्रिया सिवाय शरीरादि बहारनी क्रियाथी के
रागनी क्रियाथी कदी अज्ञान टळे नहि.
तेने बचावी शकतो नथी; आ रीते परनां कार्योमां जीवनी ईच्छा नकामी छे, जीव परना कार्यमां तो कांई करी
शकतो नथी; एटले परना कार्यमां आत्मानुं हित के अहित नथी.
भिन्न छुं, ज्ञान ज मारुं स्वरूप छे’ –ए वात भूलीने, ‘परनां काम हुं करुं छुं ने रागादिमां मारुं हित छे,’ एवी
मिथ्या मान्यताने लीधे जीव अनादिथी पोतानुं अहित करी रह्यो छे. जेणे ते अहित टाळीने आत्मानुं हित करवुं
होय तेणे ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी साची समजण करवी, ते ज प्रथम उपाय छे. हुं ज्ञान छुं, ईच्छा थाय ते
विकार छे ते मारुं वास्तविक स्वरूप नथी, अने मारी ईच्छा परमां पण निष्फळ छे; शरीर तो नवा नवा बदलता
आवे छे, ते संयोगी वस्तु छे ने हुं तो असंयोगी त्रिकाळ छुं; ईच्छा पण क्षणे क्षणे बदली जाय छे माटे ते हुं
नथी, हुं तो अनादि अनंत एकरूप ज्ञानस्वरूप छुं, परमात्मा थवानुं पूरुं सामर्थ्य मारा आत्मामां भर्युं छे. –
आवुं आत्मज्ञान करवुं ते हितनो उपाय छे.