Atmadharma magazine - Ank 148
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २०१२ : आत्मधर्म : ५९ :
आत्मामां ज्ञान ने आनंदनी परिपूर्ण शक्ति त्रिकाळ पडी छे, अंतर्मुख थईने ते शक्तिनी श्रद्धा अने एकाग्रता
करतां तेमांथी ज केवळज्ञान अने पूर्णानंद प्रगट थाय छे. माटे अंर्तस्वभावनी श्रद्धा करवी ते ज आत्महितनो
मूळ पायो छे. जड लक्ष्मी अने शरीर वगेरे परवस्तु छे, तेनाथी आत्माना हितनो उपाय थतो नथी, अने
रागभाव थाय ते पण आत्माना हितनो उपाय थतो नथी. आ मनुष्यपणामां अवतरीने करवा जेवुं कार्य कहो के
जीवननुं ध्येय कहो–ते आ छे के, पोताना वास्तविक स्वरूपनी ओळखाण करवी ने पछी तेमां एकाग्रता करवी.
चैतन्यना भान वगर दयादिना शुभभावो पण जीवे पूर्वे अनंतवार कर्या छे, ते कांई जीवननुं ध्येय नथी; पण
सर्व प्रकारना रागथी पार चिदानंदस्वभाव छे तेनी समजण करवी ते अपूर्व छे. अज्ञानीने बहारनुं ने रागनुं
करवानुं भासे छे पण अंतरमां चैतन्यस्वभावनी अपूर्व समजण करवी–तेमां कांई करवानुं तेने भासतुं नथी ने
तेनो तेने महिमा पण आवतो नथी; तेथी ते आत्मानी समजणनो उपाय करतो नथी. ने बहारमां परना
अभिमानमां ज रोकाय छे. अज्ञानी जीव एम माने छे के दया वगेरे पुण्य भावथी हुं पर जीवने बचावी दउं
अने पापभावथी हुं परने हेरान करी दउं. पण पर जीवने बचाववो के मारवो ते तेना अधिकारनी वात छे ज
नहि. अरे भाई! आ शरीरमां य तारी ईच्छा काम आवती नथी, तो परनुं तुं शुं कर? तारी ईच्छा न होवा
छतां तारा शरीरमां पक्षघात थई जाय छे ने अंग खोटुं पडी जाय छे. तारा शरीरनुं य तुं नथी करी शकतो, तो
पछी बीजा जीवोने हुं सुखी–दुःखी करी दउं–ए मान्यता तो मोटी भ्रमणा छे. हजी तो परनुं करवामां ज जेनी
बुद्धि अटकी छे ते पोताना आत्मानुं हित क्यारे करशे? आ मनुष्यपणुं पामीने जेने पोतानुं हित करवुं होय–
कल्याण करवुं होय तेणे, बीजानुं कांई पण हुं करुं–ए बुद्धि छोडी देवी अने पोते पोताना आत्मस्वरूपनी साची
समजण करवानो उद्यम करवो. आ सिवाय बीजो हितनो उपाय नथी, अने बीजु कांई जीवननुं खरुं ध्येय नथी.
(आ प्रवचनो बीजो भाग आवता अंके वांचो.)
सम्यक्त्वना महिमासूचक
प्रश्नोत्तर
(१) प्रश्न:– श्रावकोए शुं करवुं?
उत्तर:– हे श्रावक! संसारना दुःखोनो क्षय करवा माटे परम शुद्ध
सम्यक्त्वने धारण करीने, अने तेने मेरुपर्वत समान निष्कंप
राखीने, तेने ज ध्यानमां ध्याव्या करो.
(–मोक्षपाहुड गा. ८६)
(२) प्रश्न:– सिद्धि शेनाथी थाय?
उत्तर:– सम्यक्त्वथी ज सिद्धि थाय छे. –अधिक शुं कहेवुं! भूतकाळमां जे
महात्मा सिद्ध थया छे अने भविष्यकाळमां सिद्ध थशे ते बधुं आ
सम्यक्त्वनुं ज माहात्म्य एम जाणो.
(–मोक्षपाहुड ८८)