Atmadharma magazine - Ank 148
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: ६० : आत्मधर्म : महा : २०१२ :
सम्यग्दर्शनो उपाय
* शुद्ध आत्मानो अनुभव करवानो उपदेश *
(श्र समयसर ग. १३ उपर सरन्द्रनगरम प. गरुदवन प्रवचन. वर स. २४८० चत्र वद १२)
श्री आचार्य भगवान कहे छे के शुद्धनयथी जोतां, एटले के
आत्माना एकाकार स्वभावनी समीप जईने अनुभव करतां ते
शुद्धपणे अनुभवमां आवे छे, ने तेनुं नाम सम्यक् दर्शन छे... आवा
अनुभवथी ज अनादिना मिथ्यात्वनो नाश थईने अपूर्व मोक्षमार्गनी
शरूआत थाय छे; माटे शुद्धनयना अवलंबनथी आवा शुद्धआत्मानो
अनुभव करवानो संतोने उपदेश छे.



आ गाथामां सम्यग्दर्शननो उपाय बताव्यो छे. अनादिनी मिथ्यात्वनी क्रिया केम टळे अने अपूर्व
सम्यग्दर्शननी क्रिया केम थाय तेनी आ वात छे. भाई, आत्मा ज्ञानानंद स्वरूप छे, देहादिना संयोगथी पार
अने पुण्य–पापनी क्रियाथी पण ते पार छे. देहनो तो क्षणिक नवो संयोग थयो छे ते छूटीने चाल्यो जशे. माटे
आत्मा देहथी भिन्न शुं चीज छे तेनी ओळखाण करी ले. आत्मानी ओळखाण करवा माटे तेनुं ज्ञान वारंवार
घूंटवुं जोईए. एकडो शीखवा माटे ते वारंवार घूंटे छे, तेम अनंतकाळमां नहि करेली एवी आत्मानी समजण
करवा माटे तेनुं सत्समागमे वारंवार श्रवण–मनन करवुं जोईए; जगतमां सर्वज्ञ भगवाने नव तत्त्वो जोया छे,
तेनुं वास्तविक स्वरूप शुं छे ते बराबर ओळखवुं जोईए, नव तत्त्वोने जाणीने ज्ञानानंदस्वरूप आत्मामां
एकाग्र थवुं ने नव तत्त्वना भेदनो विकल्प पण छूटी जवो–ते अपूर्व सम्यग्दर्शननी रीत छे. भगवान आत्मा
स्थिर चैतन्यतत्त्व छे. तेना अवलंबने निर्विकल्प आनंदनो अनुभव थाय तेनुं नाम सम्यग्दर्शन छे.
जुओ, स्वच्छ अरीसामां केरी ने जाबुडा, सोनुं ने कोलसो, अग्नि ने बरफ, मोर ने कागडो तथा वस्त्र–
एवी नव चीजोनुं प्रतिबिंब देखाय छे, त्यां बहारनी नवे चीजो तो अरीसाथी जुदी ज छे, ने अरीसामां नव
प्रतिबिंब देखातां अरीसो कांई नव प्रकारे खंड खंडरूप थई गयो नथी, पण अरीसो तो पोतानी एकरूप
स्वच्छता रूपे ज छे, तेना स्वच्छ स्वभावनुं ज तेवुं परिणमन छे. आ प्रमाणे ओळखे तो अरीसाना स्वभावने
जाण्यो कहेवाय. तेम जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा ने मोक्ष एवा नवतत्त्वो तेओ
आत्माना ज्ञाननी पर्यायमां जणाय छे. त्यां ज्ञानमां नवतत्त्वो जणातां ज्ञान कांई नव प्रकारे खंडखंडरूप थई
गयुं नथी, पण एकरूप ज्ञाननी स्वच्छ दशानुं तेवुं परिणमन छे. नवतत्त्वने जाणतां ज्ञान ते नवतत्त्वना विकल्प
रूपे परिणमी जतुं नथी, पण