धर्मना जिज्ञासुओए आत्माना चिदानंदस्वभावनो आदर करीने तेना ध्याननो उद्यम करवो. आ काळे पण
चैतन्यना ध्यान वडे सम्यग्दर्शनादि थई शके छे,–एम जाणीने हे जीव! तेनो उल्लास कर.
छोडीने अने आत्माना स्वभावनी रुचि करीने यथार्थ उद्यम करे तो पोतानो आत्मा जरूर अनुभवमां आवे.–ए
रीते पोतानुं स्वरूप समजवुं सहेलुं छे.
लगाडीने अपूर्व आत्मानो अनुभव करे छे ने सम्यग्दर्शन पामे छे. आत्मामां अचिंत्य शक्ति छे, ते सवळो थईने
निज शक्तिनी संभाळ करे तो क्षणमात्रमां सम्यग्दर्शनादि पामे छे. निज शक्तिना भान विना अनंत अनंतकाळ
चाल्यो गयो, छतां ज्यां अंतर्मुख थईने अचिंत्य स्वशक्तिनुं अवलंबन लीधुं त्यां ते शक्ति पोतानुं प्रगट कार्य करे
छे–सम्यग्दर्शन–ज्ञानादि करे छे. आ आत्मा जागीने पोतानुं हित–कार्य करवा तैयार थयो, अने ते पोतानुं हित न
करी शके–ए वात तो सांभळवा जेवी पण नथी. आत्मानी पोतानी शक्तिनो विश्वास आववो जोईए, के मारा
आत्मानी अचिंत्य शक्ति वडे हुं मारुं हित साधुं, तेमां कोई बीजानी मदद नथी के बीजो कोई रोकनार नथी.
मोक्षने प्राप्त थाय. आत्माना अनुभवनो आवो महिमा छे, तो मिथ्यात्वनो नाश करीने सम्यग्दर्शननी प्राप्ति थवी
तो सुलभ छे. माटे श्री गुरुओए ए ज उपदेश प्रधानताथी दीधो छे.
प्रत्येना मोहने तुं
आत्मानो अनुभव करवो ते तो स्वाधीन होवाथी सुगम छे, बे घडीना प्रयत्नथी तेनी प्राप्ति थई शके छे. पण तेने
माटे अंतरनो अपूर्व उत्साह अने प्रयत्न जोईए.
आत्मानो अनुभव पाम्या छे, तो सातमी नरक जेवी पीडा तो तने अहीं नथी ने! आवुं मनुष्यपणुं पाम्यो–
सत्समागम पाम्यो छतां अंतरमां उद्यम नथी करतो, ने रोदणां शुं रोया करे छे!! तने आत्मानी खरेखरी प्रीति होय
तो अंतरमां तेना अनुभवनो उद्यम कर. तुं प्रयत्न कर तो तने कोई रोकनार नथी. आत्मानुं हित करवा जे जाग्यो
तेने आडुं आवनार जगतमां कोई छे ज नहि.
त्यारे विकथा करे छे पण त्यारे स्वरूपना परिणाम करे तो कोण रोके छे? घणा एम बहानुं बतावे छे के अमारे काम
घणां, अमने आत्मानुं समजवानी फुरसद नथी मळती! अरे भाई! बीजा काममां तो तारा परिणाम जोडवानी तने
फुरसद मळे छे, ने आत्माना कार्यमां परिणाम जोडवानी तने फुरसद नथी मळती?–ए तो तारी रुचिनी ज ऊंधाई
छे. अहो, देखो अचरजनी वात छे के
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