दोडीदोडीने दुःखमां पडे छे. जाणनार पोते,–ते परने तो जाणे ने पोते पोताने न जाणी शके–एम कहेतां लाज पण
नथी आवती! अरे जीव! तने शरम आववी जोईए के तें पोते पोताने ज न जाण्यो! अहो! जेनो जश भव्य जीवो
गाय छे, जेनो अपार महिमा जाणतां महा भवभाव मटी जाय छे–एवा आ शुद्धआत्माने सर्व प्रकारना उद्यम वडे
जाणी लेवो. जगतमां मोक्षार्थी जीवोने करवा जेवुं कर्तव्य होय तो ते एक ज छे.
नथी. ते तो रागादिने ज धर्म माने छे, ते मूढ छे. आ काळे आत्मानुं ध्यान न थाय–आ काळे सम्यग्दर्शन न थाय,–
एनो अर्थ ए ज थयो के आ काळे आत्मा नथी.–आवा जीवनी श्रद्धामां आत्मानो स्वीकार नथी पण व्यवहारना
रागनो ज स्वीकार छे, ने ते राग करतां करतां धर्म थई जशे–एवो तेनो विपरीत अभिप्राय छे.
एकाग्र थईने तेनुं अवलंबन लीधा वगर कदी सम्यग्दर्शनादि धर्म थतो नथी. जे जीव आत्मस्वभावना अवलंबननो
तो नकार करे छे अने राग करतां करतां धर्म थई जवानुं माने छे ते तो मोटो मूढ छे, अभव्यना अभिप्रायमां अने
तेना अभिप्रायमां कांई फेर नथी, तेथी आचार्यदेवे ७२ मी गाथामां तेने अभव्य कह्यो छे. अरे, जो तने धर्मनो प्रेम
होय तो एकवार अंतरमां आत्माना स्वभाव तरफनो उल्लास तो लाव. तने बहारना वलणमां पूजा–भक्ति–जात्रा
वगेरेना शुभरागमां–तो उल्लास आवे छे, तेने बदले ज्ञानानंदस्वभावमां तारा उल्लासने वाळ, तो ते स्वभावमां
एकाग्रता वडे सम्यग्दर्शन वगेरे थाय. अत्यारे आ भरतक्षेत्रमां पण आवुं थई शके छे.
तो सदाय धर्मकाळ वर्ते छे, ने त्यांथी जीवो मुक्ति पामे छे. आ भरतक्षेत्रमां अत्यारे साक्षात् मोक्ष नथी, परंतु
मोक्षना कारणभूत एवा शुद्धआत्माना ध्यान वडे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थई शके छे.
व्यवहारमूढ मिथ्याद्रष्टि जीवने धर्मनी गंध पण नथी. ते आत्माने तो एक कोर मूकीने, रागथी धर्म करवा हाली
नीकळ्या छे, पण एवो भगवाननो मार्ग नथी. अरे, वीतराग सर्वज्ञदेवे जिनसूत्रमां आ काळे आ भरतक्षेत्रे पण
आत्मभावनामां स्थित मुनिओने धर्मध्यान होवानुं कह्युं छे; समकिती गृहस्थने चोथा गुणस्थाने पण कयारेक
धर्मध्यान होय छे. चिदानंदस्वरूप आत्माना ध्यान वगर सम्यग्दर्शन पण नथी थतुं. माटे चिदानंद स्वभावना
ध्याननी वात सांभळीने जे उल्लास करतो नथी ने ऊलटो तेनो निषेध करीने अनादर करे छे ते जीवने धर्मनो प्रेम
ज नथी. तेने रागनो ज प्रेम छे; एटले राग सहेलो लागे छे, ने धर्मध्यानने ते अशक्य माने छे.–तेने धर्मना
स्वरूपनुं भान ज नथी.
सूक्ष्म वात निर्णयमां न आवे तो त्यां ‘भगवाने कह्युं ते प्रमाण’ एम धर्मी समाधान करे छे; आत्मा शुं, आत्मानो
स्वभाव शुं–एवी मूळभूत वात तो भगवाने कह्या प्रमाणे पोते ओळखीने निर्णय करे छे. जे यथार्थ निर्णय करवानी
तो ना पाडे ने राग वडे धर्म माने,–ने पछी एम बोले के “आणु ताणुं कांई न
फागणः २४८२