छे, भगवाने कह्युं तेनाथी विपरीत तो धर्मनुं स्वरूप मानी रह्यो छे तो तेणे भगवाननुं कहेलुं प्रमाण कर्युं ज नथी.
माटे धर्मना स्वरूपने ओळखीने, चिदानंदस्वरूप आत्माना ध्याननो उद्यम करवो–आचार्यदेवनो उपदेश छे; अने आ
काळे ते थई शके छे.
छे, तथा लौकान्तिकदेव पण थाय छे. आत्मध्यान वडे आराधकपणे देह छोडीने स्वर्गमां ईंद्रादि थईने पछी त्यांथी
मनुष्य थईने मोक्ष पामे छे. आ रीते एकभवतारी थई शकाय एवुं धर्मध्यान आ दुःषम काळे पण थई शके छे.
अनंत भवनो नाश करीने, एक भवमां मोक्ष आपे–एवुं धर्मध्यान तो आ काळे पण थई शके छे; माटे तेनो निषेध
केम करे छे? अंतर्मुख चिदानंदस्वरूपनुं श्रद्धानज्ञान करीने तेमां एकाग्रतारूप धर्मध्यान थई शके छे ने ए रीते
शुद्धरत्नत्रयधर्मनी आराधना करीने आ काळे पण मुनिवरो एकभवमां मुक्ति पामे एवा एकावतारी थई जाय छे.
ते अहींथी स्वर्गमां ईंद्र के लौकांतिकदेव वगेरे थाय छे, लौकांतिकदेवोने देवर्षि कहेवाय छे, देवोमां ते ऋषि जेवा छे,
ब्रह्मचारी छे, तीर्थंकरना वैराग्य प्रसंगे आवे छे, ने बधाय एकावतारी ज होय छे. अहींथी आत्मध्यान वडे
रत्नत्रयनी आराधना करीने गया छे तेथी एकभवमां मुक्ति पामी जाय–एवी लायकात प्रगटे छे. आ रीते आ काळे
पण आत्मध्यान वडे शुद्ध रत्नत्रयरूप धर्मनी आराधना थई शके छे. माटे आ काळे आत्मध्याननो निषेध करीने,
व्यवहारक्रियाकांडथी धर्म मनाववो–ते योग्य नथी. आ काळे आत्मध्यान होवानी जे ना पाडे छे ने रागथी धर्म
मनावे छे ते जीव अभव्य जेवो मिथ्याद्रष्टि छे. माटे हे भव्य! तुं रागनी ने विषयकषायोनी प्रीति छोडीने,
चैतन्यस्वरूप आत्माना ध्याननो (–श्रद्धा, ज्ञान–रमणतानो) अंतरमां उद्यम कर, जेथी तारा भवनो अंत आवी
जाय.–एवो संतोनो उपदेश छे.
उत्तरः– सिद्धि करनार एवा सम्यक्त्वने जेणे स्वप्नमां पण मलिन कर्युं नथी ते पुरुष सुकृतार्थ एटले के कृतकृत्य छे.
उत्तरः– सिद्धि करनार एवा सम्यक्त्वने जेणे स्वप्नामां पण मलिन कर्युं नथी ते ज खरेखर वीर छे.