संतो बतावे छे.
भवभ्रमणना दुःखनो अंत न आवे. आ तो अनादि काळना भवभ्रमणना दुःखनो अंत केम आवे ने अपूर्व
आत्मसुखनी प्राप्ति केम थाय–तेनी वात छे. अरे जीव! अनंतकाळमां दुर्लभ एवो आ मनुष्य अवतार पाम्यो ने
आवो सत्समागम मळ्यो त्यारे जो आत्मानी दरकार करीने सत् न समज्यो ने आत्मज्ञान न कर्युं तो आयुष्य पूरुं
थतां मनुष्य अवतार हारी जईश. माटे भाई! आ अवसर प्रमादमां गुमाववा जेवो नथी. आ मनुष्यपणामां
अवतरीने जीवननुं ध्येय ए छे के पोताना वास्तविक–आत्मस्वरूपनी ओळखाण करवी ने तेना सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान–
चारित्ररूप मोक्षमार्गनी आराधना वडे भवभ्रमणनो नाश करवो, ने अपूर्व मोक्षसुखनी प्राप्ति करवी.
दुःखनो अनुभव थाय छे, अने ते ज संसार छे. श्रीमद् राजचंद्र कहे छे केः
अनादिना मोहनो नाश थई जाय ने अपूर्व सुखनो अनुभव थाय.
तेम विभाव अनादिनो ज्ञान थतां दूर जाय. (आत्मसिद्धि.)
अनादिथी कर्या, पण ज्यां आत्मानुं सम्यक्भान कर्युं त्यां ते विभावो छूटी जतां वार लागती नथी. माटे संतो कहे छे
के अरे जीव! एक वार तो तारी चैतन्यशक्तिने संभाळ, एक वार तो तारा आत्मानी सामे नजर कर. जेम मोटो
दरियो ऊछळतो होय पण जोनार आंखो बंध करे तो कयांथी देखाय? दरियो तो सामे ज छे पण आंख ऊघाडीने
जुए तो देखाय ने? तेम आ आत्मा पोते ज
फागणः २४८२