Atmadharma magazine - Ank 149
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 21

background image
हे भाई! जो तारे अनंतकाळना परिभ्रमणनो अंत लाववो होय....ने
आत्मानी अतीन्द्रिय शांतिनो अनुभव करवो होय तो तेनी रीत शुं छे ते अहीं
संतो बतावे छे.
जीवे पूर्वे कदी एक सेकंड पण आत्मज्ञान कर्युं नथी; आत्मज्ञान ते अपूर्व चीज छे, ते आत्मज्ञान कर्या विना
कदी कोईनुं कल्याण थतुं नथी. आत्मज्ञान विना जीव भले शुभराग करे ने पुण्य बांधीने स्वर्गे जाय, पण तेनाथी
भवभ्रमणना दुःखनो अंत न आवे. आ तो अनादि काळना भवभ्रमणना दुःखनो अंत केम आवे ने अपूर्व
आत्मसुखनी प्राप्ति केम थाय–तेनी वात छे. अरे जीव! अनंतकाळमां दुर्लभ एवो आ मनुष्य अवतार पाम्यो ने
आवो सत्समागम मळ्‌यो त्यारे जो आत्मानी दरकार करीने सत् न समज्यो ने आत्मज्ञान न कर्युं तो आयुष्य पूरुं
थतां मनुष्य अवतार हारी जईश. माटे भाई! आ अवसर प्रमादमां गुमाववा जेवो नथी. आ मनुष्यपणामां
अवतरीने जीवननुं ध्येय ए छे के पोताना वास्तविक–आत्मस्वरूपनी ओळखाण करवी ने तेना सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान–
चारित्ररूप मोक्षमार्गनी आराधना वडे भवभ्रमणनो नाश करवो, ने अपूर्व मोक्षसुखनी प्राप्ति करवी.
मोक्षदशानुं जे वास्तविक सुख छे ते कयांय बहारमांथी नथी आवतुं, परंतु आत्माना स्वभावमां ज ते सुख
भर्युं छे, तेमांथी ज प्रगटे छे; पण अज्ञानीने बाह्य द्रष्टिने लीधे ते सुख अनुभवमां आवतुं नथी; सुखने बदले तेने
दुःखनो अनुभव थाय छे, अने ते ज संसार छे. श्रीमद् राजचंद्र कहे छे केः
“ऊपजे मोह विकल्पथी समस्त आ संसार
अंतर्मुख अवलोकतां विलय थतां नहीं वार.”
अंतरनी स्वभावशक्तिने भूलीने, ‘बहारमां सुख छे’ एवी कल्पनारूप जे मोह ते ज संसारनुं मूळ छे, ते
ज दुःखनुं घर छे....अंतरमां चैतन्यशक्ति आनंदथी परिपूर्ण छे–तेमां अंतर्मुख थईने अवलोकन करे तो क्षणमात्रमां
अनादिना मोहनो नाश थई जाय ने अपूर्व सुखनो अनुभव थाय.
कोटी वर्षनुं स्वप्न पण जागृत थतां शमाय,
तेम विभाव अनादिनो ज्ञान थतां दूर जाय. (आत्मसिद्धि.)
ऊंघमां ने ऊंघमां स्वप्नामां करोडो वर्षोनी वात देखे–बंगला वगेरे देखे, पण ज्यां जागीने आंख ऊघाडे
त्यां ते बधुं अलोप थई जाय छे; तेम अज्ञानदशारूपी ऊंघमां मिथ्याकल्पनाथी परमां सुख–दुःख मानीने विभावो
अनादिथी कर्या, पण ज्यां आत्मानुं सम्यक्भान कर्युं त्यां ते विभावो छूटी जतां वार लागती नथी. माटे संतो कहे छे
के अरे जीव! एक वार तो तारी चैतन्यशक्तिने संभाळ, एक वार तो तारा आत्मानी सामे नजर कर. जेम मोटो
दरियो ऊछळतो होय पण जोनार आंखो बंध करे तो कयांथी देखाय? दरियो तो सामे ज छे पण आंख ऊघाडीने
जुए तो देखाय ने? तेम आ आत्मा पोते ज
फागणः २४८२
ः ८७ः