Atmadharma magazine - Ank 149
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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गीरनार धाममां गुरुदेवनुं प्रवचन
‘गीरनारयात्रा महोत्सव’ प्रसंगे जुनागढमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचनः वीर सं. २४८० माह सुद १३ः भागः २
दोष टाळीने निर्दोष थवा माटे शुं करवुं?
आ गीरनारना सहेस्रावनमां भगवान श्री नेमिनाथ प्रभु
केवळज्ञान पाम्या; ते केवळज्ञान कयांथी आव्युं? चैतन्यशक्तिमां जे
सर्वज्ञता हती ते प्रगटी.
ज्यां दोष थाय छे त्यां ज गुण भर्यां छे; ज्यां अल्पज्ञता छे त्यां ज
स्वभावमां सर्वज्ञतानुं सामर्थ्य पडयुं छे. ज्यां दुःख थाय छे त्यां ज
त्रिकाळी सुख गुण रहेलो छे. ज्यां क्रोध थाय छे त्यां ज त्रिकाळी क्षमा
गुण भरेलो छे, आ रीते क्षणिक दोष अने त्रिकाळी गुण बंने एक साथे
वर्ती रह्यां छे. तेमां गुणस्वभावने ओळखीने तेनुं अवलंबन ल्ये तो दोष
टळी जाय ने गुणनी निर्दोष दशा प्रगटे.
*
सुख अने ज्ञान कयांथी आवशे?
अनादिथी संसारमां रखडतो आत्मा मुक्त थवा मांगे छे–सुखी थवा मांगे छे–त्रिकाळवेत्ता सर्वज्ञ थवा मांगे
छे, तो ते कयांथी आवशे? शरीरमांथी सर्वज्ञपणुं नहि आवे, केम के ते तो जड छे. रागमांथी के अल्पज्ञदशामांथी पण
सर्वज्ञपणुं नहि आवे. आत्मा पोते ज्ञानस्वभाव छे, तेना स्वभावमां परिपूर्ण सुख अने सर्वज्ञतानुं सामर्थ्य भर्युं
छे, तेमांथी ज सुख अने सर्वज्ञता प्रगटे छे. माटे आत्माना स्वभावसामर्थ्यनी ओळखाण करीने तेनुं अवलंबन लेवुं
ते हितनो उपाय छे.
जेने आत्मानुं हित करवुं होय तेणे शुं करवुं? ते वात चाले छे. पहेलां एम निर्णय करवो जोईए के संयोगी
चीजो माराथी जुदी छे तेमां मारा हितनो उपाय नथी अने अंतरमां परलक्षे पुण्य–पापनी क्षणिक लागणीओ थाय
छे तेमां पण मारुं हित नथी. अंतरमां मारा ज्ञानस्वभावमां ज मारुं सुख छे, ए स्वभावनुं अवलंबन लउं तेमां ज
मारुं हित छे. परमां सुख मानीने अत्यार सुधी हुं रखडयो ने में मारुं अहित कर्युं; परमां मारुं सुख नथी. मारुं
चैतन्यद्रव्य ज सुखस्वभावथी भरेलुं छे. वर्तमान क्षणिक पर्यायमां अल्पज्ञता अने विकार छे, पण मारा द्रव्य–
स्वभावमां ते विकारनो अभाव छे, परिपूर्ण केवळज्ञान थवानी ताकात मारा द्रव्यस्वभावमां अत्यारे पण पडी छे.–
आम शुद्ध द्रव्यस्वभावनी सन्मुख थईने आत्माना स्वरूपनी समजण करवी ते ज पहेलां करवा जेवुं छे, त्यांथी ज
धर्मनी शरूआत थाय
फागणः २४८२
ः ८९ः