Atmadharma magazine - Ank 149
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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छे. अज्ञानी जडनी क्रियाने देखे छे, पण वस्तुस्वरूपनी साची समजण करीने अनादिनुं अज्ञान टाळवुं ने
अभिप्रायमांथी त्रणकाळना परिग्रहनी ममता छूटी जवी–ते अपूर्व धर्म क्रिया छे तेने अज्ञानी देखतो नथी. एक
समयनुं सम्यग्दर्शन थतां अनंत भवोनो नाश थइ जाय छे, आवा सम्यग्दर्शनना महिमानी अज्ञानीने खबर नथी.
आत्माना प्रभुत्वनी तेने खबर नथी.
भगवान आत्मा स्वयंसिद्ध वस्तु छे, तेनी कदी उत्पत्ति थई नथी ने तेनो कदी नाश पण थतो नथी; ते त्रणे
काळे छे...छे....ने छे. वस्तुपणे कायम रहीने तेमां एक अवस्था पलटीने बीजी अवस्था थाय छे. आत्माना
स्वभावमां ज्ञान ने आनंदनी परिपूर्ण शक्ति भरी छे, तेनो कदी नाश थतो नथी. जेम चणाना स्वभावमां मीठासनी
ताकात भरी छे, कचासने लीधे ते तूरो लागे छे पण सेकतां तेना स्वभावनो मीठो स्वाद प्रगट थाय छे, तेम
आत्मामां मीठास एटले अतीन्द्रियआनंद शक्तिरूपे भर्यो छे, पण ते शक्तिने भूलीने ‘रागादि ते हुं’ एवी
अज्ञानरूपी कचासने लीधे तेने पोताना आनंदनो अनुभव नथी पण आकुळतानो अनुभव छे. स्वरूपसन्मुख थईने
तेमां तन्मय थतां ज स्वभावनो अतीन्द्रियआनंद प्रगटे छे.
कोना आधारे कल्याण छे?
जेने पोतानुं कल्याण करवुं होय तेणे ए नक्की करवुं जोईए के मारुं कल्याण कोना आधारे छे? शरीरादिक तो
जड छे तेना आधारे जीवनुं कल्याण नथी; देव–गुरु पर छे तेमना आधारे पण कल्याण नथी; अंदर शुभवृत्ति ऊठे छे
ते विकार छे तेना आधारे पण कल्याण नथी. वर्तमान पर्यायमां ज्ञाननो उघाड छे तेटलो ज पोताने माने तो तेना
आधारे पण कल्याण नथी. परथी भिन्न, विकारथी भिन्न, अंतरमां परिपूर्ण चिदानंदस्वभाव छे तेने ज उपादेयरूप
जाणी–मानीने, ज्ञानने तेमां एकाग्र करतां अपूर्व आत्मकल्याण थाय छे.
आत्मानी प्रभुतानुं सामर्थ्य
मारो शुद्ध उपयोग स्वरूप धु्रव आत्मा ज मारे उपादेय छे, ए सिवाय बीजुं कांई मारे उपादेय नथी, मारा
धु्रवआत्मामां ज मारी प्रभुता भरी छे, बीजा कोईना पण आधार वगर मारो आत्मा पोते ज पोतानुं कल्याण करे
–एवी मारी प्रभुता छे.–आम पोतानी प्रभुताने ओळखीने तेनो आदर करवो ते प्रथम धर्म छे. जेणे आत्मानी
प्रभुतानी प्रतीत करी तेणे प्रभुता तरफ पगलां मांडया, तेने मोक्षमार्गनी शरूआत थई.
जुओ, आ आत्मानी प्रभुता! कोई बीजो मने तारशे एम जे माने छे ते पोतानी प्रभुताने मानतो नथी,
पण पोताने पराधीन माने छे, ते संसारनुं कारण छे. भाई! तारी प्रभुता तारामां छे. तारुं काम बीजो करी के
बीजानुं काम तुं करी दे–एवुं पराधीनपणुं नथी. कोई कहे के–जो आत्मामां प्रभुता छे तो ते बीजानां काम केम न करी
शके? तेनो उत्तर–आत्मानी प्रभुता आत्मामां काम आवे पण परमां आत्मानी प्रभुता काम न आवे. पोताना
स्वभावमां एकाग्र थईने एक क्षणमां आत्मा केवळज्ञान ल्ये–एवी तेनी प्रभुतानी ताकात छे, परंतु परमां एक
रजकणने पण फेरवी शके एवी ताकात कोई आत्मामां नथी. आत्मानी प्रभुतानी आवी ओळखाण करवी ते अपूर्व
धर्म छे; मनुष्यपणुं पामीने जेने पोतानुं हित करवुं होय तेणे आ ज करवा जेवुं छे. पूर्वे अनंतकाळमां कदी जे दशा
नथी पाम्यो एवी अपूर्व दशा आ साची समजण थतां जीव पामे छे. आ समजण सिवाय बीजा जेटला उपाय करे ते
बधा मिथ्या छे. तेमां आत्मानुं किंचित् हित नथी.
आत्माना परिणाम अने जडनी क्रिया – बंनेनी स्वतंत्रता
आत्मा सिवाय शरीर वगेरे परनी क्रिया आत्माने आधीन नथी, शरीरनी एक आंगळी चलाववी ते पण
जीवने आधीन नथी, अज्ञानी मफतनो तेमां कर्तापणुं मानीने मिथ्याबुद्धिथी संसारमां रखडे छे. संसार ते कोई
बहारनी चीज नथी पण जीवनो मिथ्याभाव ते ज संसार छे, अने ते संसार जीवनी पर्यायमां रहे छे.
आत्माना परिणाम अने जडनी क्रिया ए बंने तद्न स्वतंत्र वस्तु छे. मृत्यु प्रसंगे कोई जीवने एम विचार
ः ९०ः आत्मधर्मः १४९