ने छोकराने ते कहेवानुं मन थयुं. पण भाषा न नीकळी अने बहारमां दाननी क्रिया न थई, तो तेथी कांई ते जीवने जे
शुभ लागणी थई तेनुं फळ जाय नहि. जो के शुभभाव ते कांई धर्म नथी, पण अहीं तो एम बताववुं छे के जीवने
दानना शुभभाव होवा छतां तेवी भाषा न नीकळी अने बहारमां दाननी क्रिया पण न थई, माटे बहारनी क्रिया थवी
ते आत्माना हाथनी वात नथी, अने आत्माना परिणाम बहारनी क्रियाने आधीन नथी; परंतु बंने स्वतंत्र छे.
पोताना चिदानंद शुद्धस्वरूपने द्रष्टिमां लेवुं ते अपूर्व धर्म छे. मनुष्यपणुं पामीने जेने आत्मकल्याण करवुं होय तेणे
पोताना शुद्धस्वरूपने ज ध्येय बनाववा जेवुं छे.
अने ते बंनेथी पार अंतरना चिदानंदस्वभावी आत्मानी समजण करीने तेमां एकाग्रता करवी ते अपूर्व धर्मनी
क्रिया छे. ते धर्म प्रारब्धथी थतो नथी पण अंतरना प्रयत्नथी थाय छे. जेम पैसा वगेरे तो प्रयत्न विना प्रारब्धथी
मळी जाय छे, परंतु तेम धर्म कांइ प्रयत्न विना प्रारब्धथी मळी जतो नथी; धर्म तो वर्तमानमां आत्माना अपूर्व
प्रयत्नथी ज थाय छे.
सधनता ते गुण नथी,
रोग ते अवगुण नथी,
निरोगता ते गुण नथी;
अनाबरू ते दोष नथी,
आबरू ते गुण नथी.
चैतन्यतत्त्वने चूकीने संयोगमां ठीक–अठीकपणानी मान्यता करवी ते दोष छे. ने असंयोगी चिदानंदस्वरूपनी श्रद्धा–
ज्ञान करीने तेमां एकाग्रता करवी ते गुण छे. भगवान! तारा तत्त्वने पर साथे एकमेक मानीने परथी तारा गुण–
दोष मानी बेठो छे ते ऊंधी मान्यतानी हवे गुलांट मार, ने परथी पृथक् तारा चिदानंदतत्त्वनी ओळखाण कर.
कल्याण थवानुं नथी. जो आत्मानी साची स्वतंत्रता अने स्वराज जोईतुं होय ने भवभ्रमणना दुःखथी छूटवुं होय
तो आ वात समज्ये ज छूटको छे. ‘स्व–राज’ एटले आत्मानी शोभा; जेमां आत्मा पोतानी प्रभुताथी शोभे तेनुं
नाम साचुं स्वराज छे. संयोगथी आत्मानी शोभा नथी. परमां सुख मानवुं के परथी आत्मानी शोभा मानवी ते तो
मोटी पराधीनता छे. चिदानंदस्वभावमां ज मारुं सुख छे–एवी स्वाश्रयबुद्धि करवी ने पराश्रयबुद्धि छोडवी ते साचुं
स्व–राज छे, ने तेमां पोतानी स्वतंत्र प्रभुताथी आत्मा शोभे छे.