Atmadharma magazine - Ank 149
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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आवे के अरेरे! में आखी जिंदगी पाप करीने धन भेगुं कर्युं, तो हवे तेने कंईक दान वगेरेमां वापरुं–आवी इच्छा थई
ने छोकराने ते कहेवानुं मन थयुं. पण भाषा न नीकळी अने बहारमां दाननी क्रिया न थई, तो तेथी कांई ते जीवने जे
शुभ लागणी थई तेनुं फळ जाय नहि. जो के शुभभाव ते कांई धर्म नथी, पण अहीं तो एम बताववुं छे के जीवने
दानना शुभभाव होवा छतां तेवी भाषा न नीकळी अने बहारमां दाननी क्रिया पण न थई, माटे बहारनी क्रिया थवी
ते आत्माना हाथनी वात नथी, अने आत्माना परिणाम बहारनी क्रियाने आधीन नथी; परंतु बंने स्वतंत्र छे.
जडनी क्रिया, विकारी क्रिया, धर्मनी क्रिया
हवे जीव पोतानी पर्यायमां जे शुभ–अशुभ भाव करे छे तेनाथी पण ज्ञायकस्वभाव जुदो छे. त्रिकाळी
ज्ञायकस्वभाव छे ते क्षणिक विकारी लागणीरूप थई जतो नथी. आ रीते जडथी भिन्न ने विकारथी पण भिन्न
पोताना चिदानंद शुद्धस्वरूपने द्रष्टिमां लेवुं ते अपूर्व धर्म छे. मनुष्यपणुं पामीने जेने आत्मकल्याण करवुं होय तेणे
पोताना शुद्धस्वरूपने ज ध्येय बनाववा जेवुं छे.
जीवे शुभभाव कर्यो माटे बहारमां दानादिनी क्रिया थई–एम नथी;
बहारमां दानादिनी क्रिया थई माटे जीवने शुभभाव थयो–एम पण नथी.;
जीवने शुभभाव थयो माटे धर्म थयो एम पण नथी.
बहारनी क्रिया जुदी चीज छे, शुभभाव जुदी चीज छे अने धर्म जुदी चीज छे;–त्रणे भिन्न भिन्न छे, कोईना
कारणे कोई नथी. बहारमां पैसा वगेरे आववा जवा ते जडनी क्रिया छे, शुभभाव थाय ते जीवनी विकारी क्रिया छे,
अने ते बंनेथी पार अंतरना चिदानंदस्वभावी आत्मानी समजण करीने तेमां एकाग्रता करवी ते अपूर्व धर्मनी
क्रिया छे. ते धर्म प्रारब्धथी थतो नथी पण अंतरना प्रयत्नथी थाय छे. जेम पैसा वगेरे तो प्रयत्न विना प्रारब्धथी
मळी जाय छे, परंतु तेम धर्म कांइ प्रयत्न विना प्रारब्धथी मळी जतो नथी; धर्म तो वर्तमानमां आत्माना अपूर्व
प्रयत्नथी ज थाय छे.
संयोगथी गुण – दोष नथी
बहारनो संयोग–वियोग तो पूर्वना प्रारब्धने कारणे थाय छे, तेनाथी कांई जीवने गुण के दोष नथी.
निर्धनता ते दोष नथी,
सधनता ते गुण नथी,
रोग ते अवगुण नथी,
निरोगता ते गुण नथी;
अनाबरू ते दोष नथी,
आबरू ते गुण नथी.
पूर्वना प्रारब्धने कारणे धर्मात्माने पण कोई वार प्रतिकूळ संयोगो आवी पडे, अने कोई जीव वर्तमानमां
पापी होय छतां तेने अनुकूळ संयोगो होय,–माटे संयोगथी आत्माने दोष के गुण नथी. परंतु असंयोगी
चैतन्यतत्त्वने चूकीने संयोगमां ठीक–अठीकपणानी मान्यता करवी ते दोष छे. ने असंयोगी चिदानंदस्वरूपनी श्रद्धा–
ज्ञान करीने तेमां एकाग्रता करवी ते गुण छे. भगवान! तारा तत्त्वने पर साथे एकमेक मानीने परथी तारा गुण–
दोष मानी बेठो छे ते ऊंधी मान्यतानी हवे गुलांट मार, ने परथी पृथक् तारा चिदानंदतत्त्वनी ओळखाण कर.
आत्मिक स्व – राज
अनादिथी ऊंधो अभिप्राय घूंटयो छे ने आत्मानी यथार्थ समजण कदी करी नथी तेथी सत्य समजवुं कठण
पडे छे, परंतु आ सत्य समजण कर्या वगर कदी कल्याण थवानुं नथी. जो आत्मनी साची समजण कर्या वगर कदी
कल्याण थवानुं नथी. जो आत्मानी साची स्वतंत्रता अने स्वराज जोईतुं होय ने भवभ्रमणना दुःखथी छूटवुं होय
तो आ वात समज्ये ज छूटको छे. ‘स्व–राज’ एटले आत्मानी शोभा; जेमां आत्मा पोतानी प्रभुताथी शोभे तेनुं
नाम साचुं स्वराज छे. संयोगथी आत्मानी शोभा नथी. परमां सुख मानवुं के परथी आत्मानी शोभा मानवी ते तो
मोटी पराधीनता छे. चिदानंदस्वभावमां ज मारुं सुख छे–एवी स्वाश्रयबुद्धि करवी ने पराश्रयबुद्धि छोडवी ते साचुं
स्व–राज छे, ने तेमां पोतानी स्वतंत्र प्रभुताथी आत्मा शोभे छे.
फागणः २४८२ ः ९१ः