पुण्य वडे जैनधर्मनो महिमा नथी. शुद्धचिदानंद स्वभावनो आश्रय करावीने मिथ्यात्वनो तेमज
रागादिनो नाश करावे ने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रद्वारा मोक्षपद आपे अने भवनो नाश करी
नांखे–ते जैनधर्मनो महिमा छे.
जेम चंदननो महिमा शुं? के ताप हरीने शीतळता आपे, तेम जैनधर्मनो महिमा शुं? के
भवना तापनो नाश करीने मोक्षनी परम शीतळता आपे ते जैनधर्मनो महिमा छे. रागमां तो
आकुळता छे ते जैनधर्म नथी.
प्रश्नः– समकिती धर्मात्माने पण राग तो थाय छे?
उत्तरः– समकितीने पण जे राग छे ते कांई जैनधर्म नथी, तेने रागथी पार चिदानंद तत्त्वनी
द्रष्टिमां जेटली शुद्धता प्रगटी छे ते ज जैनधर्म छे. मोक्षमार्गनी पूर्णता न थई होय त्यां साधक
धर्मात्माने शुद्धतानी साथे राग पण होय, परंतु त्यां धर्म तो शुद्धता थई छे ते ज छे, राग रह्यो तेने
धर्मात्मा धर्म मानता नथी. अने रागने जे धर्म माने छे तेने तो धर्मनो अंश पण होतो नथी.
राग रहे, पुण्य बंधाय ने स्वर्गादिनो भव मळे ते जैनधर्म नथी. तेम ज तेनाथी
जैनधर्मनी महत्ता नथी, परंतु चारे गतिना भवनो नाश थईने सिद्धपद जेनाथी प्रगटे ते जैनधर्म
छे, ने एनाथी ज जैनधर्मनी महत्ता छे.
आ ‘भाव–प्राभृत’ छे, तेमां आचार्यदेव ए बतावे छे के आत्मानो क्यो भाव ते धर्म
छे? अथवा आत्माना कया भावथी जैनधर्मनो महिमा छे? सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप
वीतरागी शुद्धभाव ते धर्म छे, तेना वडे भवनो नाश थई जाय छे, ने तेनाथी ज जिनशासननो
महिमा छे.
धर्मी जाणे छे के मारो चिदानंदस्वभाव भवरहित छे, भवना कारणरूप विकार मारा
मूळस्वभावमां छे ज नहि; भवरहित एवो जे मारो चिदानंदस्वभाव, तेमां एकता करतां
शुद्धभाव प्रगटीने भवनो अभाव थई जाय–ते मारे धर्म छे, –ते ज जैनधर्म छे, ने आ रीते ज
जैनधर्मनो महिमा छे. भूमिका अनुसार राग होय भले, पण जैनधर्मनो महिमा तेनाथी नथी.
जैनधर्म तो वीतरागभावरूप छे, अने राग तो वीतरागभावनो साधक नथी, पण बाधक छे,
एटले ते धर्म नथी.
धर्मात्मा समकितीने साधक अने बाधक बंने भावो एक साथे होय छे, पण तेमां
साधकभाव ते ज धर्म छे, ने बाधकभाव ते धर्म नथी, राग ते बाधकभाव छे, ते धर्म नथी.
धर्मी–समकितीने य शुभराग थाय छे–माटे ते धर्म छे–एम जो कहो, तो तो पछी
समकितीने क्यारेक अशुभराग पण थाय छे–तो ते शुं धर्म छे?–नहि. जेम अशुभराग समकितीने
होवा छतां ते धर्म नथी तेम शुभराग ते पण धर्म नथी. धर्म तो वीतरागभावरूप एक ज प्रकारनो
छे.–आवा धर्मने ओळखीने तेनी भावना–आराधना करवी ते मोक्षनुं कारण छे.
फागणः २४८२ ः ८१ः