के ज्ञानीने रागनो अंश तो बंधनुं कारण ज छे; ने सम्यग्दर्शन आदि वीतराग भाव ते मोक्षनुं कारण ज छे. जे बंधनुं
कारण होय तेनाथी धर्म न थाय, ने जे धर्म होय तेनाथी बंधन न थाय. धर्म कहो के मोक्षनुं कारण कहो; आवा
धर्मनी जेने रुचि नथी ने शुभरागने ज धर्म मानीने, रुचिथी तेनुं सेवन करे छे, ते जीव कदाच पुण्य करीने स्वर्गमां
जशे तो त्यां पण पुण्यनी मीठासने लीधे ते पुण्यना फळरूप भोगमां लीन थईने एकेन्द्रियादिमां चाल्यो जशे ने
अनंत संसारमां परिभ्रमण करशे. धर्मनुं फळ तो मोक्ष छे, धर्मीने य वच्चे पुण्य तो ऊंची जातना आवे, पण तेने
पुण्यनी के तेना फळनी जरा य रुचि नथी, एटले ते पुण्यनी लांबी स्थिति तोडीने, स्वभावमां लीनता वडे
अल्पकाळमां वीतराग थईने मोक्षमां चाल्या जशे अने पुण्य अने धर्म माननार जीव उधी मान्यताना जोरने लीधे,
पुण्यनी लांबी स्थिति तोडीने निगोदमां चाल्यो जशे, केम के ऊंधी मान्यतानुं फळ निगोद छे.–माटे पुण्य ते धर्म
नथी–एम तमे समजो. भवभ्रमणथी जे भयभीत होय ते रागथी धर्म मानवानुं छोडो ने रागरहित
चिदानंदस्वभावनी आराधना करो. ज्ञानीओने रागरहित चिदानंदस्वभावनी भावनाथी संसार कट थईने
अल्पकाळमां मोक्ष थई जाय छे. ने मिथ्याद्रष्टि जीवो रागनी रुचि करी, चैतन्यना स्वभावनो अनादर करी नरक–
निगोदमां परिभ्रमण करे छे.
भान विना संसारना कारणने धर्म माने–पुण्यने धर्म माने तो तेने धर्मनी भूमिका ज चोक्खी नथी. धर्म शुं छे तेना
भान विना धर्म क्यांथी करशे? ते तो पुण्य वगेरेने धर्म मानीने, धर्मना नामे अधर्मनुं ज सेवन करीने संसारमां ज
रखडशे. माटे आचार्यदेव कहे छे के हे जीवो! तमे जिनशासनमां कहेला आवा वीतराग भावरूप धर्मने जाणीने,
भवना अभाव माटे तेनी ज भावना करो. आवा जिनधर्मने ज उत्तम अने हितकारी जाणीने तेनुं सेवन करो....ने
रागनी रुचि छोडो, पुण्यनी रुचि छोडो.....जेथी तमारा भवनो अंत आवे ने मोक्ष थाय.
४–६–प६ सुधी विद्यार्थीओने जैनदर्शनना अभ्यास माटे शिक्षणवर्ग खोलवामां आवशे.
विद्यार्थीओ उपरांत बीजा जिज्ञासु जैनबंधुओ पण आ वर्गनो लाभ लई शकशे. वर्गमां
दाखल थनारने माटे जमवा तथा रहेवानी व्यवस्था श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
तरफथी थशे. वर्ग पूरो थया पछी परीक्षा लईने प्रमाणपत्र आपवामां आवशे.