Atmadharma magazine - Ank 150
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्राणि मोक्षमार्गः
* कष्ट सहन करीने पण, द्रढ वैराग्यपूर्वक, ज्ञानभावनानो उपदेश *
(भावप्राभृत गा. प९–६२ उपरना प्रवचनोमांथी)
कोई जीव ज्ञाननी चर्चा तो घणी करे छे परंतु आचरण जरा पण करतो नथी, विषय–कषायोथी पाछो
फरीने ज्ञानस्वभाव तरफ वळतो नथी, तो एकला शास्त्रना जाणपणाथी तेने कांई सिद्धि थती नथी. हुं
ज्ञानस्वभाव छुं–एम जो आत्मानुं यथार्थ ज्ञान करे तो ते तरफ वळ्‌या वगर रहे नहि, ने विषय–कषायोनी रुचि
तेने रहे ज नहि. माटे जे जीव विषयकषायोथी पाछो फर्यो नथी, स्वच्छंदे विषयकषायमां ज वर्ते छे ते अज्ञानी जीव
सिद्धि पामतो नथी.
ए ज प्रमाणे बीजा कोई जीवो व्रत–तप वगेरेनुं आचरण तो घणुं करे छे, परंतु आत्मा शुं छे–ते तो जाणता
नथी, कषायोनी मंदता तो करे छे पण आत्मा कषायरहित ज्ञानस्वभावी छे तेने जाणता नथी तो एकला शुभ–
आचरणथी तेने कांई पण सिद्धि थती नथी. ज्ञानानंदस्वरूप आत्माना भान वगर यथार्थ चारित्र होय नहि. मंद
कषायरूप व्रत–तपथी ज जे सिद्धि माने छे पण चैतन्यस्वरूप शुं छे ते तो जाणतो नथी, तो तेना व्रत–तप बधाय
मात्र कलेशरूप छे, मोक्षने माटे ते व्यर्थ छे. जे जीव चैतन्यस्वरूप आत्माने जाणे छे एटले के सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान
करे छे, अने तेमां लीनतारूप चारित्र पण धारण करे छे ते ज मुक्तिने पामे छे. सम्यग्ज्ञान होवा छतां पण ज्यां
सुधी चारित्रदशा धारण न करे एटले के चैतन्यस्वरूपमां लीनता न करे त्यां सुधी साक्षात् मुक्ति थती नथी. अने
सम्यग्ज्ञान वगरना व्रत–तप तो मात्र पुण्यबंधनुं ज कारण छे, तेनाथी कांई सिद्धि थती नथी. आ रीते सम्यक्श्रद्धा–
सम्यग्ज्ञान अने ते ज्ञान सहितनुं सम्यक्चारित्र ते ज मोक्षनुं कारण छे.
तीर्थंकरनो आत्मा नियमथी ते ज भवे मोक्ष पामनार होय छे, जन्मे त्यारथी आत्मज्ञान सहित होय छे,
छतां ते तीर्थंकर पण ज्यारे चिदानंदस्वरूपमां लीन थईने आनंदमां झूलती चारित्रदशा धारण करे छे त्यारे ज
केवळज्ञान ने मोक्ष पामे छे. चारित्रदशा विना कोई जीवनी मुक्ति थती नथी. अहीं भावप्राभृतमां मोक्षना कारणरूप
भावलिंग बताववुं छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे भावलिंग छे ते ज मोक्षनुं कारण छे. तीर्थंकरनो आत्म पण
ज्यां सुधी गृहवासमां राजपाटमां होय त्यां सुधी, सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान होवा छतां, मुनिदशा के केवळज्ञान न
पामे. ज्यारे बाह्यमां सर्व परिग्रह रहित थई, अंतरमां चैतन्यनुं ध्यान करीने लीन थाय छे त्यारे ज चारित्रदशा–
मुनिदशा प्रगटे छे; ने एवी भावलिंगी मुनिदशा पछी ज केवळज्ञान ने मुक्ति थाय छे.
अहीं तीर्थंकरभगवाननो तो दाखलो छे; ते उत्कृष्ट दाखलो आपीने अहीं एम समजावे छे के सम्यग्दर्शन
अने सम्यग्ज्ञानपूर्वक सम्यक्चारित्र वडे ज मुक्ति थाय छे. माटे ज्ञान सहित चारित्रमां तत्पर थवुं–एवो उपदेश छे.
चैतन्यनुं ज्ञान करीने तेमां चरवुं ते चारित्र छे. चैतन्यना ज्ञानसहित तेमां लीनतारूप क्रिया ते मोक्षनुं कारण छे.
जे जीव बाह्यलिंगथी तो सहित छे, वस्त्ररहित दिगंबरपणुं धारे छे, २८ मूळगुण पाळे छे, शास्त्र भणे छे,
व्रत–तप पाळे छे, निर्दोष आहार करे छे, ए रीते बाह्यमां द्रव्यलिंगरूप मुनिपणुं पाळे छे, पण अंतरमां
चैत्रः २४८२
ः १०७ः