‘दर्शनशुद्धिथी ज आत्मसिद्धि’
(दर्शनशुद्धि प्रगट करवानो भगवाननो प्रधान उपदेश छे.)
(श्री मोक्षपाहुड गा. ३९–४० उपरना प्रवचनोमांथी–तेम ज रात्रिचर्चा उपरथी.)
दर्शनशुद्धि माटे सात तत्त्वोनी प्रतीत केवी होय.....ने ए प्रतीतनुं केटलुं बधुं जोर
छे...ते आ प्रवचनमां पू. गुरुदेवे घणी सरस शैलीथी समजाव्युं छे.
अहो! श्रद्धानुं बळ अपार छे....जगतना तमाम तत्त्वोनो निर्णय तेनामां आवी
जाय छे....ते पहेलुं प्रधान कर्तव्य छे.
पू. गुरुदेव कहे छे केः “समकिती पोताना ज्ञायक स्वभावी आत्माने द्रष्टिमां
लईने तेमां ज आराम करे छे....आतमराममां रहेवुं ते ज खरो आराम छे......
आत्मस्वभावनी सन्मुखता विना सुख हराम छे....भाई, एकवार तारी
चैतन्यविभूतिने प्रतीतमां तो ले.....तो तारी दर्शनशुद्धि थाय....
दर्शनशुद्धि विना देहशुद्धि के आहारशुद्धि भले करे, पण तेमां कयांय आत्मानी
सिद्धि थती नथी. अने जेने दर्शननी शुद्धि जागी छे ते धर्मात्मा गमे त्यां गमे ते
संयोगमां ऊभा होय तोपण तेने दर्शनशुद्धिना प्रतापे शुद्धता सळंगपणे वर्ते छे, ने तेने
ज दर्शनशुद्धिथी आत्मानी सिद्धि–मुक्ति प्राप्त थाय छे.
तत्त्वार्थश्रद्धानमां वीतरागी अभिप्रायनुं अनंत जोर छे; ते श्रद्धानमां रागनुं
कर्तृत्व रह्युं नथी, परनी कर्ताबुद्धि रही नथी; स्वभाव सन्मुख थईने ज्ञायकपणे ज
पोताने प्रतीतमां लीधो छे, आवी प्रतीतनुं एटलुं जोर छे के तेने लीधे जीव रागादिरूप
परिणमतो नथी; ज्ञायकसन्मुख द्रष्टिथी शुद्धता ज करतो जाय छे.–आ रीते दर्शनशुद्धिथी
ज आत्मानी सिद्धि छे.
सर्व उद्यमपूर्वक सम्यग्दर्शन ग्रहण करवानो भगवाननो मुख्य उपदेश छे; जेणे
शुद्ध–आत्माने द्रष्टिमां लईने दर्शनशुद्धि प्रगट करी तेणे भगवानना उपदेशनो सार
ग्रहण कर्यो; जे जीव दर्शनशुद्धि करतो नथी, आत्माने अशुद्ध ज अनुभवे छे ते जीवे
खरेखर भगवानना उपदेशनुं ग्रहण कर्यु नथी.
आत्मा पोते परम आनंदस्वरूप छे, ते आनंद पर्यायमां परिपूर्ण प्रगट थवो तेनुं नाम मोक्षदशा छे. मोक्ष
एटले आत्मानी पूर्ण शुद्धता; पण ते शुद्धता केम थाय? के पहेलां ‘हुं शुद्धज्ञानानंद आत्मा छुं’ एवी शुद्ध द्रष्टि करवी
जोईए; ते दर्शनशुद्धिथी ज आत्मसिद्धि थाय छे. जेणे पोताना शुद्धआत्माने द्रष्टिमां लईने दर्शनशुद्धि प्रगट करी छे ते
आत्मा सम्यग्दर्शन वडे शुद्ध छे. तेने दर्शनशुद्धि छे ते मोक्षनुं कारण छे.
चैत्रः २४८२ ः १०९ः