Atmadharma magazine - Ank 150
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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छे
तेमां जीव अने अजीव तो सामान्यरूप छे, ने आस्रव–बंध, संवर–निर्जरा–मोक्ष ते तेमनी विशेष पर्यायो छे. जीवना
विशेषो जीवथी छे, अजीवनी विशेष पर्यायो अजीवथी छे. अजीव पण अनंता पदार्थो छे, ते प्रत्येक पदार्थनी विशेष
पर्यायो तेना पोताथी थाय छे. जे त्रिकाळ शक्तिरूप जीव–अजीव पदार्थो छे ते जीवतत्त्व ने अजीवतत्त्व छे, ने बीजा
पांचे तत्त्वो ते तेमनी पर्यायो छे. जीवनी आस्रवबंध के संवर–निर्जरा–मोक्षरूप पर्यायो तो जीवथी छे, अजीवने लीधे
नथी. पुद्गलकर्ममां आस्रवबंध के संवर–निर्जरा वगेरे अवस्था थाय छे ते तेना सामान्य अजीवपदार्थनी पर्याय छे,
तेमज कर्म सिवायनी बीजी पण अजीवनी जे जे पर्यायो (लाकडुं, शरीर, घडो वगेरे) छे ते बधी पर्यायो पण ते ते
सामान्य अजीव पदार्थथी थाय छे, जीवने लीधे नहि. आ रीते जगतमां सामान्यरूप जीव–अजीवतत्त्वो अनंता छे, ने
तेमनुं रूपांतर के क्षेत्रांतररूप विशेष ते तेनाथी ज छे.–आ प्रमाणे जीवादि तत्त्वोनी श्रद्धा करतां प्रतीत थाय छे. आ
सिवाय जीवथी अजीवनी पर्याय थाय, के अजीवथी जीवनी पर्याय थाय–एम प्रतीत करे तो तेने जीव–अजीव वगेरे
तत्त्वो यथार्थ प्रतीतमां आव्या नथी, एटले तेने दर्शनशुद्धि नथी.
राग ते आस्रव छे–ते जीवतत्त्वनुं विशेष छे, अजीवना कारणे नहि; शरीरनी क्रिया वगेरे थाय ते अजीव–
तत्त्वनुं विशेष छे, जीवना रागने कारणे नहि. जीवो अनंता छे ने अजीव अनंतानंत छे, तेनी संख्या जगतमां सदाय
एटली ने एटली ज छे, तेमां एक पण वधता नथी के घटता नथी. ते बधा तत्त्वो जगतमां त्रिकाळ पोताथी ज छे,
तेमज ते दरेक तत्त्वनी विशेषपर्यायो पण पोतपोताथी ज छे. मारा कारणे जगतमां बीजानुं कांई नथी, ने जगतना
कारणे मारुं कांई नथी. अजीवनी पर्यायमां अजीव छे, ने जीवनी पर्यायमां जीव छे,–बस! आवी अनंत पदार्थोनी
स्वतंत्रताने श्रद्धानुं बळ स्वीकारे छे. मारा सिवाय जगतना कोईपण जीव के अजीवनी पर्यायमां हुं नथी, तेमज मारे
लीधे ते कोईनी पर्याय नथी, हुं तो ज्ञायकस्वभावी जीवतत्त्व छुं,–आवी रीते साते तत्त्वोने जाणीने, ज्ञानस्वभावी
जीवतत्त्वनी सन्मुख थईने तेनी स्वसंवेदनपूर्वक प्रतीत करी ते ज “
तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्” छे. सम्यग्दर्शनमां
प्रतीतनुं जोर केटलुं छे–तेनी आ वात छे. आवी दर्शनबुद्धिथी ज आत्मसिद्धि थाय छे.
जुओ, जगतमां मोक्षतत्त्व छे, एटले के पूर्ण ज्ञानआनंदरूप दशा पामेला सर्वज्ञ छे;–ते सर्वज्ञनी प्रतीत
करवा जाय तो तेमां आत्मानी शक्ति तरफ वलण थया विना रहे नहीं. केम के आत्मानी शक्तिमां सर्वज्ञ थवानी
ताकात छे, तेमांथी ज सर्वज्ञता ने पूर्णानंद प्रगटे छे. सात तत्त्वोमां जीवतत्त्वनी प्रतीत करवा जाय तो तेमां आवा
मोक्षतत्त्वनी पण भेगी ज प्रतीत आवी जाय छे, अने मोक्षतत्त्वनी प्रतीत करवा जाय के सर्वज्ञनी प्रतीत करवा जाय
तो तेमां शुद्धजीवतत्त्वनी प्रतीत पण भेगी आवी ज जाय छे. जीवना ज्ञानानंदस्वभावनी सन्मुख थया वगर सात
तत्त्वोमांथी एक पण तत्त्वनी प्रतीत यथार्थ थती नथी. चोथा गुणस्थाने आत्माना ज्ञानानंदस्वभावनी प्रतीतपूर्वक
साते तत्त्वोनी यथार्थ प्रतीत थई गई छे, ते श्रद्धा ठेठ सुधी टकी रहे छे; सम्यक्श्रद्धानमां साते तत्त्वोनी जे यथार्थ
प्रतीत आवी छे ते रहेवा माटे आवी छे.
मुनिदशा थाय,–छठ्ठा–सातमा गुणस्थाननी दशा प्रगटे ने वस्त्रनो संयोग छूटी जाय, त्यां मुनिने प्रतीतमां
एम नथी आवतुं के मारा कारणे आ वस्त्र छूटयां. पहेलां पण सम्यग्दर्शन थयुं त्यारे एम प्रतीतमां न हतुं के आ
वस्त्र मारा कारणे रह्या छे! वस्त्रनी क्रिया अजीव छे, मारा रागने कारणे ते अजीवनी पर्याय थाय छे, एम
समकितीनी प्रतीतमां नथी. तेने निज परमेश्वरनी प्रभुता प्रतीतमां आवी छे ने अजीव तत्त्वने पण तेणे जगतना
स्वतंत्र तत्त्वो तरीके प्रतीतमां लीधा छे. जगतमां अजीव छे, शुभराग पण छे, सम्यग्दर्शनादि पण छे ने हुं
ज्ञायकतत्त्व छुं–एम बधा तत्त्वोनी प्रतीत सम्यग्द्रष्टिने वर्ते छे, तेमां रागने कारणे अजीव, के अजीवने कारणे राग–
एम बे तत्त्वोनी एकता ते मानता नथी, एकबीजाना कारणकार्यने एकबीजामां भेळवता नथी. एटले तेनी श्रद्धामां
जीवनो अंश पण अजीवमां भेळवता नथी ने अजीवनो
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आत्मधर्मः १प०