Atmadharma magazine - Ank 150
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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मोक्षना कारणरूप चारित्र
मोक्षना कारणरूप चारित्र ते आत्मानो स्वधर्म छे; ते कयांय बहारमां
नथी पण जीवना अनन्यपरिणाम ज छे. “अनन्यपरिणाम” एटले आत्माना
शुद्धस्वभावमां अभेद थएला परिणाम ते चारित्र छे. राग ते खरेखर
अनन्यपरिणाम नथी पण स्वभावथी अन्य छे, माटे ते खरेखर चारित्र के
मोक्षमार्ग नथी.
(मोक्षप्राभृत गा. प०–प१ उपरना प्रवचनमांथी)
*
आत्मा अतीन्द्रिय आनंदरसथी भरेलो छे, तेना परम आनंदनो प्रगट पूर्ण
अनुभव थवो ते मोक्ष छे. पहेलां, देहथी भिन्न ज्ञानानंद स्वरूप हुं छुं–एवी अंर्तप्रतीति ने
अनुभव थवो ते सम्यग्दर्शन छे, पछी एवा आत्माना अनुभवमां लीनता थाय ते सम्यक्
चारित्र छे, ने पछी पूर्ण ज्ञान–आनंद प्रगटे तेनुं नाम मोक्ष छे. मोक्ष कोई जुदी चीज नथी पण
आत्मानी पूर्ण आनंदमय शुद्ध दशा ते ज मोक्ष छे.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप परिणाम ते धर्म छे, अने ते आत्माना ज अभेदपरिणाम
छे. राग–द्वेष–मोह रहित परिणामे आत्मा परिणम्यो ते ज धर्म छे. शुद्धआत्माना श्रद्धा–ज्ञान–
चारित्ररूप परिणाम ते ज धर्मात्मानुं कार्य छे, ए सिवाय विकार के बहारनुं कार्य ते खरेखर
धर्मीनुं नथी. जेवा सिद्ध परमात्मा शुद्ध ज्ञानानंदे परिपूर्ण छे, तेवो ज मारा आत्मानो स्वभाव
छे, ने बधाय जीवो पण स्वभावथी तेवा ज छे. अवस्थामां संसारी जीवोने अशुद्धता छे ते तेना
मूळ स्वभावमां नथी, उपरनो क्षणिक उपाधिभाव छे, अंतरना शुद्धस्वभावना अनुभवथी ते
अशुद्धता टळी जाय छे. धर्मी पोताना आत्माने एवो शुद्ध अनुभवे छे, ने सर्वे जीवोने पण
स्वभावथी आप–समान शुद्ध जाणे छे, एकली पर्यायनी अशुद्धता पूरता ज नथी मानता, एटले
पर्यायबुद्धिना रागद्वेष धर्मात्माने थता नथी. “सर्व जीव छे सिद्ध सम”–कई रीते? के
शुद्धस्वभावनी द्रष्टिए; जेणे पोताना आत्माने अंतरमां स्वसंवेदन–प्रत्यक्षथी शुद्ध–सिद्ध समान
अनुभव्यो छे ते ज सर्व जीवोने सिद्ध समान ओळखे छे. अज्ञानीने पोताना
चैत्रः २४८२ ः ९९ः