सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान उपरांत मुनिना वीतरागी चारित्रनी वात छे. मुनिओने
शुद्धात्मस्वरूपमां लीनताथी जे वीतरागी चारित्र प्रगटयुं छे ते आत्माना ज परिणाम छे,
आत्माथी जुदा नथी. जेम ज्ञान–दर्शन आत्माना ज परिणाम छे तेम चारित्र ते पण आत्माना
ज अभेद परिणाम छे, चारित्र कयांय बहारमां–शरीरनी क्रियामां नथी, रागमां नथी, पण
आत्मामां एकाग्रतारूप जे वीतरागी परिणाम थया ते ज चारित्र छे, ते ज धर्म छे. चारित्र छे ते
स्वधर्म छे, ते आत्मानो ज वीतरागी समभाव छे. राग ते खरेखर स्वधर्म नथी. राग तो अधर्म
छे ने चारित्र ते स्वधर्म छे. जेम दर्शन–ज्ञान ते जीवना अनन्य परिणाम छे–जीवथी जुदा नथी,
तेम चारित्र ते पण जीवना अनन्य परिणाम छे–जीवथी जुदुं बहारमां कयांय चारित्र नथी.
आत्माना स्वरूपमां चरवारूप चारित्र ते वीतरागी परिणाम छे ने ते चारित्र मोक्षनुं कारण छे.
शरीरनी नग्नदशामां चारित्र नथी रहेतुं, पंचमहाव्रतना शुभ विकल्पमां चारित्र नथी रहेतुं,
आत्मानी वीतराग परिणतिमां चारित्र रहे छे. चारित्रने आत्माना “अनन्य परिणाम” कह्या
छे, राग ते खरेखर आत्माना अनन्य परिणाम नथी, रागने आत्माना स्वभाव साथे
एकलपणुं–अनन्यपणुं नथी पण भिन्नपणुं छे. चारित्र परिणामने आत्माना स्वभाव साथे
अनन्यपणुं–एकता छे, एटले के ते आत्मानो स्वधर्म छे. आत्मामां अभेद थया ते आत्माना
अनन्यपरिणाम छे ने ते ज आत्मानो धर्म छे. आवो धर्म ते मुक्तिनुं कारण छे.
पण स्फटिकनो मूळस्वभाव कांई रातो–काळो नथी. तेम आ चैतन्यस्फटिक आत्मा तो ऊजळो
स्वच्छ छे, तेना स्वभावमां राग–द्वेषनी कालिमा नथी; पण पर्यायमां राग–द्वेषनी झांईथी ते
मलिन देखाय छे. जुओ, कर्मने लीधे मलिनता थई–एम नथी, पण पोताना रागद्वेष परिणामने
लीधे ज आत्मा मलिन देखाय छे; पण तेना मूळस्वभावने जुओ तो ते उपाधि वगरनो स्वच्छ–
निर्मळ वीतरागी ज छे. जेम पीळो–रातो के लीलो ते स्फटिकनो स्वभाव नथी तेम आत्मामां
राग–द्वेष–मोह ते तो अनन्य स्वभाव नथी पण उपाधिरूप अन्यभाव छे. चारित्र तो आत्मानो
अनन्य भाव छे, ने राग–द्वेष–मोह ते आत्माना स्वभावथी अन्य छे, ते विकारी परिणामने
लीधे आत्मा अनेक अनेक प्रकारनो देखाय छे, पण निर्विकारी परिणाम तो आत्मामां अभेद छे,
तेथी तेमां एकपणुं छे, ते आत्माना अनन्य परिणाम छे. अहीं स्फटिकनो दाखलो आपीने
आत्मानो एकरूप शुद्ध स्वभाव बताववो छे, ने विकारनुं आत्मस्वभावथी अन्यपणुं बताववुं
छे. चारित्र परिणाममां आत्मानी वीतरागी शांति छे–उपशम रसनो अनुभव छे ने राग
परिणाममां तो आकुळतारूपी होळी छे–कषायरूपी अग्नि छे, तेमां आत्मानी शांति नथी.
सिवाय रत्न–मणिनो प्रकाश तो जड छे; जेम स्वच्छ दर्पणमां पदार्थोनुं प्रतिबिंब देखाय त्यां
खरेखर तेनी स्वच्छताने लीधे ते जणाय छे, तेम आत्मा स्वच्छ चैतन्यअरीसो छे, तेना
ज्ञानदर्पणमां