: १२६ : आत्मधर्म वैशाख : २४८२
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
अंक १४२ थी चालु
[१९]
परिणामशक्ति
आत्मानी शक्तिओनुं आ वर्णन चाले छे. ज्ञानस्वरूप आत्मामां केवी केवी शक्तिओ उल्लसे छे ते
आचार्यदेवे बताव्युं छे. आ शक्तिओ द्वारा अनंत शक्तिना पिंडरूप अनेकान्तमूर्ति आत्माने ओळखीने तेमां
एकाग्र थतां, श्रद्धा–आनंद वगेरेनुं निर्मळ परिणमन थाय छे तेनुं नाम धर्म छे.
श्रद्धानुं मूळ, ज्ञाननुं मूळ, आनंदनुं मूळ आत्मा छे; ते आत्मा केवो छे ते ज्यां सुधी यथार्थरूपे जाणवामां
ने अनुभववामां न आवे त्यां सुधी श्रद्धा–ज्ञान–आनंदना अंकुरा फूटे नहि. आनंद कया पदार्थमां भर्यो छे के
जेनी सन्मुख थतां आनंदनुं वेदन थाय? आत्मा शुं वस्तु छे के जेने लक्षमां लईने चिंतवतां आनंद थाय? तेनं
ज्यां यथार्थ श्रवण–ग्रहण–धारण ने निर्णय पण न होय त्यां चिंतन क्यांथी करे? ने तेना आनंदनो अनुभव
क्यांथी थाय? अहो! महिमावंत भगवान आत्मा अनंतधर्मथी प्रसिद्ध छे–तेनो महिमा प्रसिद्धपणे सर्वे संतो
अने शास्त्रो गाय छे, पण तेनी सन्मुख थईने पोतानी पर्यायमां जीवे कदी तेनी प्रसिद्धि करी नथी. भगवान
आत्मानी प्रसिद्धि केम थाय एटले के पर्यायमां तेनो प्रगट अनुभव केम थाय ते अहीं बतावे छे.
स्वसंवेदनज्ञानरूप लक्षण वडे भगवान आत्मानी प्रसिद्धि थाय छे. ज्ञानलक्षणने अंतरमां वाळीने
आत्माने लक्ष्य बनावतां चैतन्यमूर्ति आत्मानो अनुभव थाय छे. ते अनुभवमां एकलुं ज्ञान ज नथी परंतु
ज्ञाननी साथे श्रद्धा, आनंद, वीर्य, प्रभुता, स्वच्छता वगेरे अनंतशक्तिओ पण भेगी ज ऊछळे छे. तेथी
आत्माना अनेकान्त स्वरूप छे. ते अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी अनंतशक्तिओमांथी केटलीक शक्तिओ
अहीं आचार्यदेवे वर्णवी छे; तेमां ‘जीवत्व’ थी मांडीने ‘उत्पाद–व्यय–धु्रवत्व’ सुधीनी १८ शक्तिओ उपरना
विस्तार प्रवचनो थई गया छे. हवे १९ मी परिणामशक्ति छे.
परिणामशक्ति केवी छे? “द्रव्यना स्वभावभूतध्रौव्य–व्यय–उत्पादथी आलिंगित, सद्रश अने विसद्रश
जेनुं रूप छे एवा एक अस्तित्वमात्रमयी परिणामशक्ति छे.” आत्माना ज्ञानमात्र भावमां आ शक्ति पण
भेगी ज परिणमे छे.
पहेलांं तो एम कह्युं के ध्रौव्य, व्यय, ने उत्पाद ए त्रणेय, द्रव्यना स्वभावभूत छे, कोई बीजाने लीधे
नथी. जेम धु्रव टकवापणुं पोताना स्वभावथी ज छे, कोई बीजाने लीधे नथी, तेम क्षणे क्षणे नवी पर्यायनुं
ऊपजवापणुं