Atmadharma magazine - Ank 151
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४८२ आत्मधर्म : १२७ :
पण परद्रव्यना पोताना स्वभावथी ज छे, परने लीधे नथी. पर निमित्तने लीधे आत्माना परिणाम ऊपजवानुं
माने तो तेणे परिणामशक्तिवाळा आत्माने जाण्यो नथी. उत्पाद–व्यय–धु्रव ते द्रव्यना स्वभावभूत छे; अने
द्रव्यनुं अस्तित्व एवा उत्पाद–व्यय–धु्रवथी आलिंगित छे, एटले के उत्पाद–व्यय–धु्रवनी भिन्न भिन्न त्रण सत्ता
नथी परंतु एक ज सत्ता ए त्रणेथी एक साथे स्पर्शायेली छे; ते सत्तानुं अस्तित्व धु्रवता अपेक्षाए तो सद्रश छे
ने उत्पाद–व्यय अपेक्षाए विसद्रश छे. –आवा अस्तित्वमात्रमय परिणामशक्ति छे. धु्रवता वगर परिणाम शेमां
थाय? अने उत्पाद–व्यय वगर परिणाम कई रीते थाय? उत्पाद–व्यय ने धु्रवता वगर परिणाम बनी शके नहि,
माटे कह्युं के ध्रौव्य–व्यय उत्पादथी आलिंगित एवा एक अस्तित्वमात्रमय परिणामशक्ति छे.
‘उत्पादव्यय–
ध्रौव्ययुक्तं सत्’ अने ‘सत् लक्षण द्रव्यं’ ए बंने महत्त्वनां सूत्रो (तत्त्वार्थसूत्रनां) आमां समाई जाय छे.
अस्तित्वमात्र कहीने सत्पणुं बताववुं छे.
जो के परिणामशक्ति तो आत्मा अने जड बधाय द्रव्योमां छे, परंतु अत्यारे तो आत्मानी वात छे. दरेक
आत्मामां परिणामशक्ति त्रिकाळ छे. अज्ञानदशा, साधकदशा के सिद्धदशा–ते दरेक वखते परिणामशक्तिनुं
परिणमन तो वर्ती ज रह्युं छे. पण, परिणामशक्तिवाळा आत्मानुं भान करीने तेनो आश्रय करतां
परिणामशक्तिनुं निर्मळ परिणमन थाय छे. आ रीते शक्तिओनुं निर्मळ परिणमन थाय ते ज धर्म छे, तेमां ज
आत्मानी प्रसिद्धि छे.
जेम घरमां लाख रूपियानी किंमतनो एक दागीनो पड्यो होय, परंतु ज्यां सुधी तेनी प्रसिद्धि नथी. –
एटले के तेनी खबर नथी त्यां सुधी तो, ते घरमां होवा छतां न होवा समान ज छे. तेम आ भगवान, आत्मा,
ज्ञान, आनंद वगेरे अनंत शक्तिओरूपी दागीनाथी भरेलो छे, परंतु ज्यां सुधी तेनुं भान नथी त्यां सुधी ते
अप्रसिद्ध छे, एटले के अज्ञानीने तो आत्मा, विद्यमान छतां अविद्यमान जेवो छे, तेने तेनी प्रसिद्धि नथी. अने
अंतर्मुख थईने आत्माना श्रद्धा ज्ञान करतां तेनी प्रसिद्धि थाय छे, अर्थात् आत्मानी शक्तिओ निर्मळपणे
परिणमीने तेनो प्रगट अनुभव थाय छे. आवी आत्मानी प्रसिद्धि थाय तेनुं नाम धर्म छे.
अढारमी उत्पाद–व्यय–धु्रवत्वशक्तिना वर्णनमां घणा खुलासा आवी गया छे, ते मुजब अहीं पण
समजवुं. अढारमी शक्तिमां क्रमप्रवृत्ति अने अक्रमप्रवृत्ति कहीने उत्पाद–व्यय–ध्रुव बताव्या हता; ने अहीं सद्रश
अने अने विसद्रशरूप अस्तित्व कहीने परिणामशक्ति बतावी छे. धु्रव अपेक्षाए सद्रशता छे, ने उत्पाद–व्यय
अपेक्षाए विसद्रशता छे. आवा उत्पाद–व्यय–धु्रव विना परिणाम बनी शके ज नहि. एकली धु्रवरूप नित्यता ज
होय ने उत्पाद–व्यय न होय तो क्षणे क्षणे नवा परिणामनी उत्पत्ति थई शके नहि; तेम ज जो सर्वथा क्षणिकता
ज होय ने धु्रवता न होय तो बीजी क्षणे वस्तुनुं सत्पणुं ज न रहे एटले नवा परिणाम पण शेमांथी थाय? आ
रीते, अज्ञान टळीने ज्ञान, दुःख टळीने आनंद, संसार टळीने मोक्ष ईत्यादि परिणाम उत्पाद–व्यय–धु्रवता वगर
थई शकता नथी. माटे कह्युं छे के आ परिणामशक्ति उत्पाद–व्यय–धु्रवथी वणायेला अस्तित्वमय छे. आचार्यदेवे
एकेक शक्तिमां गूढपणे वस्तुस्वरूप गूंथी दीधुं छे. अनादिना अज्ञानमांथी पलटो खाईने अंतर्मुख थईने कायमी
ज्ञानस्वभावनी साथे एकता करीने अनुभव कर्यो, त्यां ज्ञाननुं निर्मळ परिणमन थयुं, ने ते परिणमनमां आवा
उत्पाद–व्यय–धु्रवथी गुंथायेलुं अस्तित्व पण भेगु ज छे, एटले के ज्ञाननी साथे परिणमनशक्ति पण भेगी ज
ऊछळे छे. माटे अनेकान्त अबाधितपणे वर्ते छे.
धु्रवता तेम ज व्यय अने उत्पाद ए त्रणे थईने आत्मानुं अस्तित्व छे. एकली पर्यायने ज जुए न
धु्रवद्रव्यने प्रतीतमां न ल्ये तो अस्तित्वनी प्रतीत थती नथी. एटले एकली पर्यायद्रष्टि वडे आत्मानी शक्तिनी
प्रतीत थई शकती नथी. ए खास रहस्य छे.
वळी कह्युं के उत्पाद–व्यय–धु्रव ते द्रव्यना स्वभावभूत छे, ते पोताथी ज थाय छे, पर्यायनी उत्पत्ति परने
लईने थाय अथवा निमित्त आवे तेवी पर्याय थाय–एम जे माने छे तेणे उत्पादने स्वभावभूत न मान्यो,
एटले उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप अस्तित्व सिद्ध न थयुं, ने एम थतां अनंत शक्तिवाळो आत्मा ज सिद्ध न थयो. –
आ रीते परने लीधे पर्यायनी उत्पत्ति जे माने छे ते मिथ्याद्रष्टि छे, तेनी पर्यायमां भगवान आत्मानी प्रसिद्धि
थती नथी.