Atmadharma magazine - Ank 152
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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जेठ : २४८२ आत्मधर्म : १४३ :
भवभ्रमणथी छूटवा माटे
ज्ञानानंद–स्वरूप आत्माने
प्राप्त करवानो उपदेश
–प्रवचनसार–परिशिष्ट उपर
वैशाख सुद १०–१४ना प्रवचनोमांथी
शिष्यने श्रीगुरुए जे कह्युं तेनी धून लागी छे, निरंतर
तेनी झंखना लागी छे, चोवीसे कलाक वारंवार तेनुं चिंतवन
करे छे, आत्माने प्राप्त करवानी धून थई गई छे, तेनी ज चाह
छे... अने ते जरूर आत्माने प्राप्त करे छे.


आत्माना स्वरूपनी प्राप्ति केम थाय ते वात चाले छे. अनादिथी पोताना स्वरूपनी प्राप्ति वगर
संसार परिभ्रमण करे छे. आत्माना स्वभाव साथे एकता न करतां, संयोग साथे एकता करीने
मोहभावनाथी आत्मानी परिणति चकरावो खाय छे, स्थिर न रहेतां पुण्य–पापमां चक्कर खाय छे, तेथी ते
पोतानी पर्यायमां क्षुब्ध थाय छे, अने तेथी तेने आत्मानी प्राप्ति दूर छे. आ रीते अनादिथी आत्मानी प्राप्ति
केम न थई ते बताव्युं.
आत्मा तो ज्ञानस्वभाव छे, ते ज्ञानस्वभाव साथे ज तेने एकता छे; तेने बदले परज्ञेयो साथे मित्रता
करे छे एटले के तेमनी साथे ज्ञाननी एकता करे छे, ते ज अनादिकाळथी संसारभ्रमणनुं कारण छे. अज्ञानीने
परथी भिन्न पोतानुं ज्ञान तो भासतुं नथी, ने ज्ञानना ज्ञेयभूत परपदार्थो ज भासे छे एटले ते बहिर्मुखपणे
परज्ञेयोमां ज वर्ते छे; भिन्नभिन्नज्ञेयोने जाणवा छतां हुं तो एकाकार ज्ञान ज छुं, ज्ञान साथे ज मारी एकता
छे–एवी ज्ञानस्वभावनी भावना वडे आत्मानी प्राप्ति थाय छे. पण ज्ञान ते हुं एवी भावना न भावतां, जे
परज्ञेयोने जाणे छे ते ज्ञेयो साथे ज एकताबुद्धिथी तेमनी भावना भावे छे, एटले पर तरफना झूकावथी तेनी
द्रष्टि छूटती नथी, पर साथेनो संबंध तोडीने स्वज्ञेय तरफ वळतो नथी–ए ज संसार छे. जेने पोतानुं माने तेनी
साथेनो संबंध केम तोडे? जेनाथी लाभ माने तेनी साथेनो संबंध केम छोडे? अज्ञानी परज्ञेयने पोतानुं माने छे
ने तेनाथी लाभ माने छे एटले तेनाथी जुदो पडीने स्वमां आवतो नथी; तेथी ते अज्ञानीने आत्मानी प्राप्ति
थती नथी, आत्माना आनंदस्वरूपनो तेने अनुभव थतो नथी.
हवे ते ज आत्मा ज्यारे एम जाणे के हुं तो समस्त परज्ञेयोथी अत्यंत भिन्न छुं, मोहथी भिन्न
ज्ञानस्वरूप छुं; एम समस्त परज्ञेयोथी आत्माने भिन्न जाणीने केवळ आत्मानी भावनामां एकाग्र थाय अने
तेमां ज स्थिर रहे त्यारे परथी अत्यंत भिन्न थईने पोताना ज्ञान–आनंदस्वरूपनो अनुभव थाय छे. आ रीते
अंतर्मुख एकाग्रता वडे आत्मानी प्राप्ति थाय छे.