छे... अने ते जरूर आत्माने प्राप्त करे छे.
आत्माना स्वरूपनी प्राप्ति केम थाय ते वात चाले छे. अनादिथी पोताना स्वरूपनी प्राप्ति वगर
मोहभावनाथी आत्मानी परिणति चकरावो खाय छे, स्थिर न रहेतां पुण्य–पापमां चक्कर खाय छे, तेथी ते
पोतानी पर्यायमां क्षुब्ध थाय छे, अने तेथी तेने आत्मानी प्राप्ति दूर छे. आ रीते अनादिथी आत्मानी प्राप्ति
केम न थई ते बताव्युं.
परथी भिन्न पोतानुं ज्ञान तो भासतुं नथी, ने ज्ञानना ज्ञेयभूत परपदार्थो ज भासे छे एटले ते बहिर्मुखपणे
परज्ञेयोमां ज वर्ते छे; भिन्नभिन्नज्ञेयोने जाणवा छतां हुं तो एकाकार ज्ञान ज छुं, ज्ञान साथे ज मारी एकता
छे–एवी ज्ञानस्वभावनी भावना वडे आत्मानी प्राप्ति थाय छे. पण ज्ञान ते हुं एवी भावना न भावतां, जे
परज्ञेयोने जाणे छे ते ज्ञेयो साथे ज एकताबुद्धिथी तेमनी भावना भावे छे, एटले पर तरफना झूकावथी तेनी
द्रष्टि छूटती नथी, पर साथेनो संबंध तोडीने स्वज्ञेय तरफ वळतो नथी–ए ज संसार छे. जेने पोतानुं माने तेनी
साथेनो संबंध केम तोडे? जेनाथी लाभ माने तेनी साथेनो संबंध केम छोडे? अज्ञानी परज्ञेयने पोतानुं माने छे
ने तेनाथी लाभ माने छे एटले तेनाथी जुदो पडीने स्वमां आवतो नथी; तेथी ते अज्ञानीने आत्मानी प्राप्ति
थती नथी, आत्माना आनंदस्वरूपनो तेने अनुभव थतो नथी.
तेमां ज स्थिर रहे त्यारे परथी अत्यंत भिन्न थईने पोताना ज्ञान–आनंदस्वरूपनो अनुभव थाय छे. आ रीते
अंतर्मुख एकाग्रता वडे आत्मानी प्राप्ति थाय छे.