ज्ञानीनी एकली बहारनी शुभक्रिया जोईने अज्ञानी तेने धर्म मानी ल्ये छे. पण चैतन्य चीनगारीने जाणतो
नथी तेथी तेने धर्म थतो नथी. आ रीते स्वभावने न जोतां संयोगने ज अज्ञानी जुए छे. ज्ञानीने
उपदेशनो भाव आवे ने हजारो–लाखो जीवोने हितनो उपदेश करे, –त्यां अज्ञानीने एम लागे के आ बीजानुं
भलुं करता लागे छे माटे ते ज धर्मनो उपाय छे! पण भाई, तें जे जोई ते क्रिया खरेखर ज्ञानीए करी ज
नथी अने ज्ञानीए जे क्रिया करी छे तेने तो तुं देखतो नथी. खरेखर वाणीनी के रागनी क्रियाना ज्ञानी कर्ता
नथी, तेणे तो पोताना ज्ञानानंदस्वभावना सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान–रमणता ज कर्या छे. ने तेना वडे ज धर्म थाय
छे. आ समज्या वगर एकली बहारनी क्रियानी नकल करे ते तो वांदरानी माफक ‘अक्कल वगरनी नकल’
छे, तेमां धर्म के कल्याण नथी.
एम मानी ल्ये, –पण तेमां किंचित् धर्म नथी. अहो, भगवाने तो अंतरना चैतन्यस्वभावमां लीन थईने
आनंदनो अनुभव कर्यो हतो, ने ते आनंदनी लीनतामां आहारनी वृत्ति ज ऊठती न हती, –एवी भगवाननी
तपश्चर्या हती. त्यां अंतरमां आनंदनी लीनता थई तेने तो मूढ जीवो देखता नथी ने एकला बहारना आहार–
त्यागने ज धर्म मानी ले छे, ते पण उपरना द्रष्टांतनी माफक अक्कल वगरनी नकल छे, तेमां धर्म नथी.
पासे हो... पण तेने धर्म थतो नथी, केम के गुण ज्यां भर्या छे तेनी सामे तो ते जोतो नथी. पोतामां गुण भर्या
छे तेमां जे द्रष्टि करतो नथी तेने धर्म थतो नथी. अज्ञानीने मिथ्याश्रद्धाथी आखो आत्मा ढंकाई गयो छे, तेने
यथार्थ आत्मा ओळखावीने आचार्यदेव आत्मानी प्रसिद्धि करावे छे, तेथी आ समयसारनी टीकानुं नाम पण
‘
आलंबित, सद्रश तेमज विसद्रशरूप अस्तित्वने आत्मा पोतानी परिणामशक्ति वडे धारी राखे छे. आ
परिणामशक्तिमां ‘धु्रवउपादान’ अने ‘क्षणिकउपादान’ बंने समाई जाय छे. सद्रशता अथवा धु्रवता ते तो
धु्रवउपादान छे अने विसद्रशता अथवा उत्पाद–व्यय ते क्षणिकउपादान छे. –आवी परिणामशक्तिने ओळखतां
‘निमित्तथी कार्य थाय’ एवी पराश्रयबुद्धि छूटी जाय छे ने स्वभाव–आश्रित अनंत–गुणोनुं निर्मळ परिणमन
थाय छे. –आ ज सिद्धिनुं साधन छे.
बहारनी फरज मनावे छे ने मोटा मोटा भाषण करे छे, –पण अहीं तो कहे छे के भाई, ए बधी बहारनी फरज
ते तो वृथा व्यथा छे, –मफतनी हेरानगती छे. आ आत्मानी समजण करवी ते ज बधायनी खरी फरज छे, –ए
फरज एकवार बजावे तो मोक्ष मळे.
भरेलो तारो असंख्यप्रदेशी आत्मा ज तारो ‘स्वदेश’ छे, तेने ओळखीने तेनी सेवा कर, ते तारी फरज छे; ए
सिवाय बहारनो देश ते तो ‘पर–देश’ छे,