Atmadharma magazine - Ank 152
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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जेठ : २४८२ आत्मधर्म : १४१ :
तेमां तारी फरज नथी. हवे अंदर शुभराग थाय ते तो फरज छे ने? –तो कहे छे के ना; राग ते पण खरेखर
फरज नथी. राग करे छे पोते, पण ते फरज नथी–कर्तव्य नथी, केम के तेमां पोतानुं हित नथी. जेमां पोतानुं
हित न होय तेने फरज केम कहेवाय? अंतरमां चैतन्यमूर्ति आनंदथी भरपूर पोताना आत्माने ओळखीने
तेना आश्रये सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र प्रगट करवा, ने ए रीते आत्माने भवदुःखथी छोडाववो ते दरेक
जीवनी फरज छे.
आ देह तारो नथी; देहमां तारी कंई फरज नथी, ने देह तने शरण नथी.
तारी अनंत शक्तिमां राग नथी, राग ते तारी फरज नथी, ने राग तने शरण नथी.
तारो आत्मा अनंतशक्तिसंपन्न छे, ते ज तारुं स्वरूप छे,
ते शक्तिनी संभाळ करीने तेमांथी सम्यग्दर्शन ज्ञान–चारित्र प्रगट करवा ते तारी फरज छे, अने ते
शक्ति ज तने शरणभूत छे,
माटे तेने ओळखीने तेनुं शरण कर, ने तारी फरज बजाव. हुं परनुं करी दउं–एवी मान्यतामां जे रोकाय
छे ते पोतानी वास्तविक फरज चूकी जय छे. माटे हे भव्य! परनुं करवानी बुद्धि तुं छोड, ने आत्महितमां तारी
बुद्धि जोड. आत्मानी संभाळ कर, तेनुं शरण कर, ने तेना शरणे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट करीने तारा
आत्माने भवभ्रमणथी छोडाव...... ने ए रीते तारी फरज बजाव. आ मनुष्यपणुं पामीने आत्माने हवे भव–
दुःखथी छोडाववो ते ज, हे जीव! तारी फरज छे.
आत्मा पोतानी अनंत शक्तिथी परिपूर्ण छे; तेनामां कोई शक्ति ओछी नथी के बीजा पासेथी ल्ये! ने
आत्मानी कोई शक्ति वधारानी नथी के बीजाने आपे! आत्मा पोतानी शक्ति बीजाने आपतो नथी ने बीजा
पासेथी पोतानी शक्ति लेतो नथी. परनी शक्ति परमां, ने पोतानी शक्ति पोतामां. दरेक द्रव्य पोतपोतानी
शक्तिओथी परिपूर्ण छे. पोताना आवा स्वभावनो निर्णय करे तो क्यांय परमांथी लाभ लेवानी पराश्रय–बुद्धि
छूटी जाय ने अंतरना स्वभावना आश्रय तरफ वलण थई जाय. –माटे हे भाई! तुं जराक विचार तो कर के
तारा गुण क्यांथी आवे छे? तारा गुणोनुं टकवापणुं, के दोष टळीने निर्मळ पर्यायनुं उत्पन्न थवापणुं कोई
बीजाना कारणे नथी, पण तारा आत्माना परिणामस्वभावथी ज छे. कोईना आधारे तारा गुण–पर्यायनो
नीभाव नथी, ने तुं आधार थईने कोई बीजाना गुण–पर्यायने नीभावी देतो नथी; माटे कोई बीजाथी तुं राजी
था के तुं कोई परने राजी कर–एवो तारो स्वभाव नथी; तारा आत्मानुं अवलंबन करीने तुं पोते राजी था
(एटले के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–आनंदरूप था) एवो तारो स्वभाव छे. माटे तारा आत्मानी निजशक्तिने
संभाळीने तुं प्रसन्न था! तारा निजवैभवनुं अंर्तअवलोकन करीने तुं आनंदित था! ‘अहो! मारो आत्मा
आवो परिपूर्ण शक्तिवाळो........ आवा आनंदवाळो! ’ –एम आत्माने जाणीने तुं राजी था... खुशी था...
आनंदित था!! जे आत्माने यथार्थपणे ओळखे तेने अपूर्व आनंदनो अनुभव थाय ज. माटे आचार्यदेव
आत्मानी अनेक शक्तिओनुं वर्णन करीने कहे छे के हे भव्य! आवा आत्माने जाणीने तुं आनंदित था!
–ओगणीसमी परिणामशक्तिनुं वर्णन अहीं पूरुं थयुं.
सम्यक्त्वना महिमासूचक प्रश्नोत्तर
प्रश्न:– कोने धन्य छे?
उत्तर:– धन्य अहो! भगवंत बुध जे त्यागे परभाव;
लोकालोक प्रकाशकर जाणे विमलस्वभाव.
–अहो! ते भगवान् ज्ञानीओने धन्य छे के जेओ परभावनो त्याग करे
छे अने लोकालोकप्रकाशक एवा निर्मळ आत्माने जाणे छे. (योगसार ६४)