Atmadharma magazine - Ank 153
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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गुणस्थाने पण आवो निश्चय होय छे. आवा निश्चय उपरांत जेना कषायो अतिशयपणे उपशांत थई गया होय....
शांतस्वरूपमां ठरी गया होय, अने चैतन्य स्वरूपमां उपयोगनी स्थिरताना घणा प्रयत्नवडे जेओ अधिक तपवाळा
होय;–आ रीते जे सूत्रार्थ निश्चयवंत होय, जेना कषायो उपशांत थई गया होय अने जे अधिक तपवाळा होय ते
संयमीमुनि छे.
जुओ, आ मुनिनी ओळखाण!
निश्चयनय वगर सूत्र अने अर्थोनो निश्चय थतो नथी;
सूत्रअने अर्थना निश्चय वगर कषायोनो उपशम थतो नथी;
कषायोना उपशम वगर स्वरूपमां उपयोगनी स्थिरता थती नथी.
अने स्वरूपमां एकाग्रता वगर मुनिदशा होती नथी.
आ रीते निश्चयनय अनुसार तत्त्वनो निर्णय करवो ते मूळ वात छे.
जेम अग्निना संगथी पाणी उष्ण थई जाय छे तेम, पुण्य ते ज मोक्षकारण छे–इत्यादि विपरीत
मान्यतावाळा लौकिक जनोना संगथी संयमी मुनि पण असंयत थई जाय छे, माटे ते लौकिक जनोना संगनो निषेध
छे. अग्निने कारणे पाणी उनुं थाय के परने कारणे मुनि असंयमी थाय–ए कथन व्यवहारनुं छे एटले खरेखर एम
नथी. पाणी पोतानी तेवी लायकातथी उनुं थयुं छे, तेमज जे मुनि भ्रष्ट थाय छे ते पण पोतानी विकारी परिणतिना
कारणे ज भ्रष्ट थाय छे, चैतन्यस्वभावना संगथी छूटीने तेनी परिणति लौकिक संगमां अटकी तेथी ज असंयतपणुं
छे,–परने कारणे नथी थयुं. आम शास्त्रोनो वास्तविक अर्थ छे, ने आवुं वस्तुस्वरूप छे.
अमुक माणस आवतां मंदिर के मानस्तंभ वगेरेनुं काम सुधरी गयुं–एम कहेवुं ते निमित्तना आरोपनुं
व्यवहारकथन छे. बंने चीज जुदी होवाथी एकने लीधे बीजामां कांई थाय नहि–ए निश्चय छे, छतां तेमनो संयोग
देखीने एकना कारणे बीजामां कार्य थयुं–एम व्यवहारनय एकबीजामां आरोप करी द्ये छे, पण वस्तुस्वरूप एम नथी.
आ गुरुना प्रतापे ज हुं धर्म पाम्यो, आ गुरुए ज मने महा अनुग्रह करीने ज्ञान आप्युं–एम विनयना
व्यवहारथी शिष्य कहे छे. त्यां पण निश्चय वस्तुस्वरूप लक्षमां राखीने ते व्यवहारनुं स्वरूप जेम छे तेम जाणवुं जोईए.
“निमित्त पामीने कार्य थयुं” एम ज्यां ज्यां कह्युं होय त्यां त्यां निश्चयनयवडे एम समजवुं जोईए के
खरेखर कार्य तो उपादानथी थयुं छे, निमित्तथी नथी थयुं, उपादानना कार्यमां निमित्तनी तो नास्ति होवा छतां
तेनाथी कार्य थवानुं कहेवुं ते उपचार छे, यथार्थ वस्तुस्वरूप एम नथी. जगतना बधाय दाखलामां आ नियम लागु
पाडी देवो.
धर्मीने धर्म पोताना आत्माथी थयो;–ए निश्चय वस्तुस्वरूप छे.
धर्मीने धर्म गुरुउपदेश वगेरे परथी थयो;–ए व्यवहारकथन छे. तेमां निश्चयने तो यथार्थ जाणवो, ने
व्यवहारने आरोप जाणवो. बधाय शास्त्रोना कथननो अने बधाय पदार्थना स्वरूपनो आ रीते निर्णय करवो.
ज्यां स्वथी कथन होय त्यां तेने “सत्य” छे एम समजवुं.
ज्यां परथी कथन होय त्यां तेने “खरेखर एम नथी” एम समजवुं.
कर्मना उदयथी जीवने विकार थयो, (व्यवहार,–खरेखर एम नथी.)
अमुक जीवे मंदिर बांध्युं, (व्यवहार,–खरेखर एम नथी.)
अमुक कारीगरे प्रतिमाजी बनाव्या, (व्यवहार,–खरेखर एम नथी)
अमुक मुनिए शास्त्र लख्यां, (व्यवहार,–खरेखर एम नथी)
अषाढः २४८२ ः १६३ः