शांतस्वरूपमां ठरी गया होय, अने चैतन्य स्वरूपमां उपयोगनी स्थिरताना घणा प्रयत्नवडे जेओ अधिक तपवाळा
होय;–आ रीते जे सूत्रार्थ निश्चयवंत होय, जेना कषायो उपशांत थई गया होय अने जे अधिक तपवाळा होय ते
संयमीमुनि छे.
निश्चयनय वगर सूत्र अने अर्थोनो निश्चय थतो नथी;
सूत्रअने अर्थना निश्चय वगर कषायोनो उपशम थतो नथी;
कषायोना उपशम वगर स्वरूपमां उपयोगनी स्थिरता थती नथी.
अने स्वरूपमां एकाग्रता वगर मुनिदशा होती नथी.
आ रीते निश्चयनय अनुसार तत्त्वनो निर्णय करवो ते मूळ वात छे.
जेम अग्निना संगथी पाणी उष्ण थई जाय छे तेम, पुण्य ते ज मोक्षकारण छे–इत्यादि विपरीत
छे. अग्निने कारणे पाणी उनुं थाय के परने कारणे मुनि असंयमी थाय–ए कथन व्यवहारनुं छे एटले खरेखर एम
नथी. पाणी पोतानी तेवी लायकातथी उनुं थयुं छे, तेमज जे मुनि भ्रष्ट थाय छे ते पण पोतानी विकारी परिणतिना
कारणे ज भ्रष्ट थाय छे, चैतन्यस्वभावना संगथी छूटीने तेनी परिणति लौकिक संगमां अटकी तेथी ज असंयतपणुं
छे,–परने कारणे नथी थयुं. आम शास्त्रोनो वास्तविक अर्थ छे, ने आवुं वस्तुस्वरूप छे.
देखीने एकना कारणे बीजामां कार्य थयुं–एम व्यवहारनय एकबीजामां आरोप करी द्ये छे, पण वस्तुस्वरूप एम नथी.
तेनाथी कार्य थवानुं कहेवुं ते उपचार छे, यथार्थ वस्तुस्वरूप एम नथी. जगतना बधाय दाखलामां आ नियम लागु
पाडी देवो.
धर्मीने धर्म गुरुउपदेश वगेरे परथी थयो;–ए व्यवहारकथन छे. तेमां निश्चयने तो यथार्थ जाणवो, ने
ज्यां परथी कथन होय त्यां तेने “खरेखर एम नथी” एम समजवुं.
कर्मना उदयथी जीवने विकार थयो, (व्यवहार,–खरेखर एम नथी.)
अमुक जीवे मंदिर बांध्युं, (व्यवहार,–खरेखर एम नथी.)
अमुक कारीगरे प्रतिमाजी बनाव्या, (व्यवहार,–खरेखर एम नथी)
अमुक मुनिए शास्त्र लख्यां, (व्यवहार,–खरेखर एम नथी)