स्त्रीए रोटली बनावी, (व्यवहार,–खरेखर एम नथी.)
अग्निथी पाणी उष्ण थयुं, (व्यवहार,–खरेखर एम नथी.)
पेट्रोलथी मोटर चाली, (व्यवहार,–खरेखर एम नथी)
कुंभारे घडो बनाव्यो (व्यवहार,–खरेखर एम नथी)
ईच्छाथी शरीर चाल्युं (व्यवहार,–खरेखर एम नथी.)
छत्रना कारणे छायो थयो (व्यवहार,–खरेखर एम नथी)
–ए प्रमाणे जेटला जेटला व्यवहारना दाखला छे ते बधायमां ‘खरेखर एम नथी’ ए प्रमाणे समजीने
अर्थ करवो. निश्चयथी एम समजवुं के ते कोई पण पदार्थनुं कार्य परथी थयुं नथी, पण स्वपर्यायनी स्वतंत्रताथी ज
थयुं छे.–जो आवो अर्थ न समजे तो वस्तुस्वरूपनो निर्णय थाय नहि, ने निश्चय–व्यवहारना गोटा मटे नहि.
निश्चयनयथी पदार्थना स्वरूपनुं ज्ञान जेने नथी तेने सम्यग्दर्शन के सम्यग्ज्ञान होतुं नथी.
जुओ, आ जैनशास्त्रोना अर्थ करवानी पद्धति छे, अने आ ज पदार्थना स्वरूपनो निर्णय करवानी पद्धति छे.
दरेक द्रव्यनी पर्याय पोताथी ज क्रमबद्ध थाय छे–ए निश्चय छे एटले के खरेखर एम ज वस्तुस्वरूप छे.
अने निमित्तने लीधे पर्याय थवानुं कहेवुं ते व्यवहार छे एटले खरेखर एम वस्तुस्वरूप नथी.
मनुष्यदेहथी जीव धर्म पामे; अथवा वज्र संहननथी जीव केवळज्ञान पामे, ए कथन व्यवहारनुं छे, खरेखर
शरीरने कारणे जीव धर्म नथी पामतो पण पोतानी पर्यायथी ज पामे छे.
अमुक दवाथी अमुक रोग मटे–ए व्यवहारकथनमां पण उपर मुजब समजी लेवुं.
कर्मनी स्थिति घटीने अंतःकोडाकोडी थई गई तेथी जीव धर्म पामवा योग्य थयो,–ए पण व्यवहारथी कथन
छे, निश्चयथी जीव पोते पोतानी पर्यायनी तैयारीथी धर्म पामवा योग्य थयो छे–एम समजवुं.
व्यवहार ते साधक अने निश्चय साध्य–एम शास्त्रमां कथन आवे,–पण ते कया नयथी कह्युं छे?
व्यवहारनयथी!–तो तेनो अर्थ एम समजवो जोईए के खरेखर एम नथी. पोताना स्वभावना आश्रयथी ज
निश्चय साध्य थाय छे, अने त्यां व्यवहारमां आरोप करीने तेने साधक कहेवाय छे,–पण वस्तुस्वरूप एम नथी,
खरेखर शुभरागरूप व्यवहार ते निश्चयमोक्षमार्गनो साधक नथी. निश्चयना लक्ष वगर अज्ञानीना बधा अर्थ खोटा
छे. व्यवहारनुं प्रयोजन ते वखते मुख्यनी साथे रहेली परचीजनुं (संयोग, निमित्त वगेरेनुं) ज्ञान कराववानुं छे.
संयोग अने निमित्तने देखीने व्यवहारनय तेमां आरोप करी दे छे के ‘आनाथी आ थयुं’ आवा व्यवहारना जेटला
दाखला होय ते बधायमां आ गाथानी चावी (master key) लागु पाडीने, निश्चयनयथी शुं स्वरूप छे ते समजी
लेवुं जोईए; जो व्यवहार प्रमाणे ज वस्तुस्वरूप मानी लेवामां आवे तो यथार्थ वस्तुस्वरूपनो निश्चय थतो नथी.
दरेक आत्मा शक्ति स्वभावे परिपूर्ण छे, दरेक आत्मामां प्रभु थवानी ताकात छे; परंतु ‘कर्मे तेने रोक्यो
छे’ एम कहेवुं ते व्यवहारनो आरोप छे, त्यां खरेखर एम नथी, पण जीव पोते ज पराश्रयभावने लीधे संसारमां
रह्यो छे–एम निश्चयथी जाणवुं जोईए.
कयारेक जीव बळवान, अने कयारेक कर्म बळवान–एम इष्टोपदेशमां कह्युं छे, तेमां जीव ज्यारे पुरुषार्थ नथी
करतो त्यारे कर्मने बळवान कह्युं ते व्यवहारथी छे, निश्चयथी तेनो अर्थ एम समजवो के खरेखर जीवमां कर्मनुं जोर
नथी; कर्मोए जीवने नथी रोक्यो, पण जीव पोताना ऊंधा पुरुषार्थथी रोकायो छे. आम निश्चयनयद्वारा पदार्थनो
निश्चय करे तो ज सम्यग्ज्ञान थाय छे.
आहारमां ध्यान न राखवाथी स्वास्थ्य बगडयुं, अने सात्त्विक आहारथी परिणाम सुधरे–ए कथन पण
व्यवहारनुं छे, एटले के खरेखर एम नथी. जुओ, आ लाकडी ऊंची थई,–ते हाथथी ऊंची थई एम कहेवुुं ते
व्यवहार छे, पण जो ते प्रमाणे ज वस्तुस्वरूप माने तो ते मिथ्याद्रष्टि छे. हाथथी लाकडी ऊंची थई एवा व्यव–
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आत्मधर्मः १प३