पर्यायनी शक्ति छे.–आम निश्चय अनुसार वस्तुस्वरूपनो निर्णय करवो. व्यवहारना कथन उपरथी वस्तुस्वरूपनो
निर्णय न करवो केम के ते तो एकबीजामां आरोप करीने कहे छे.
आत्मानी लायकात छे तेथी ते अलोकमां जता नथी.
सूर्यना उदयथी कमळ खीले,
आहार प्रमाणे परिणाम बगडे के सुधरे,
काळा–राता रंगने कारणे स्फटिक काळो–रातो परिणमे,
झाडनुं पान पवनथी चाले,
उपरना झाडने कारणे नीचे पडछायो पडे,
झाड हालवाना कारणे पडछायो चाले,
धजा फरफर थई माटे तेनो पडछायो फरफर थयो,
उपर बलून चाले तेने लीधे नीचे तेनो छायो पडे,
सम्मेदशीखरजीने लीधे भक्तिनो शुभभाव थयो,
–आवा जेटला जेटला व्यवहारकथनना हजारो–लाखो दाखला होय ते बधामां एम समजवुं के ते कथन
नथी. निश्चयनय लागु पाडीने भिन्नभिन्न वस्तुस्वरूप शुं छे ते समजी लेवुं.
व्यवहारनय प्रमाणे ज वस्तुस्वरूप जे मानी ल्ये छे ते मिथ्याद्रष्टि छे.
वस्तुनी पर्याय पोताथी ज थई एम जाणवुं ते यथार्थ छे.
परने लीधे पर्याय थई एम जाणवुं ते यथार्थ नथी.
उपादान–निमित्तनी स्वतंत्रतानी आ वात दांडी पीटीने दुनियामां प्रसिद्ध करवा जेवी छे. निश्चय–व्यवहारना
परथी भिन्नता ने स्वमां एकता (एकत्वविभक्तपणुं) करे तो ज जीवनुं हित थाय छे. माटे जे जीव आ प्रमाणे
समजे ते ज सर्वज्ञवीतरागदेवना हितोपदेशने समज्यो छे, ने तेनुं ज हित थाय छे. एकला व्यवहार प्रमाणे ज
वस्तुस्वरूप मानी ल्ये तो हित थतुं नथी. माटे जेने पोतानुं हित करवुं होय तेणे भगवानना कहेला शास्त्रोनो अर्थ
अने वस्तुनुं स्वरूप आ प्रमाणे निश्चयनय द्वारा समजवुं.
सोनगढमां “जैनदर्शन शिक्षणवर्ग” चालशे. जे जिज्ञासु जैन भाईओने वर्गमां आववानी
ईच्छा होय तेमणे सूचना मोकली देवी, अने वखतसर आवी जवुं.