Atmadharma magazine - Ank 153
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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हारकथननो अर्थ एम समजवो के खरेखर ते प्रमाणे नथी, हाथथी लाकडी ऊंची थई नथी. पण लाकडीनी ज तेवी
पर्यायनी शक्ति छे.–आम निश्चय अनुसार वस्तुस्वरूपनो निर्णय करवो. व्यवहारना कथन उपरथी वस्तुस्वरूपनो
निर्णय न करवो केम के ते तो एकबीजामां आरोप करीने कहे छे.
सिद्धभगवान अलोकमां केम नथी जता? के धर्मास्तिकाय अभावात् त्यां धर्मास्तिकायना अभावने लीधे
सिद्ध भगवान अलोकमां नथी जता–ए कथन व्यवहारनुं छे. निश्चयथी एम समजवुं के लोकमां ज रहेवानी
आत्मानी लायकात छे तेथी ते अलोकमां जता नथी.
लूखा आहारने कारणे ब्रह्मचर्यनी द्रढता रहे,
सूर्यना उदयथी कमळ खीले,
आहार प्रमाणे परिणाम बगडे के सुधरे,
काळा–राता रंगने कारणे स्फटिक काळो–रातो परिणमे,
झाडनुं पान पवनथी चाले,
उपरना झाडने कारणे नीचे पडछायो पडे,
झाड हालवाना कारणे पडछायो चाले,
धजा फरफर थई माटे तेनो पडछायो फरफर थयो,
उपर बलून चाले तेने लीधे नीचे तेनो छायो पडे,
सम्मेदशीखरजीने लीधे भक्तिनो शुभभाव थयो,
–आवा जेटला जेटला व्यवहारकथनना हजारो–लाखो दाखला होय ते बधामां एम समजवुं के ते कथन
आरोपनुं छे; एक पदार्थने कारणे बीजा पदार्थमां कांई थवानुं कहेवुं ते कथन आरोपनुं छे, एटले वस्तुस्वरूप तेम
नथी. निश्चयनय लागु पाडीने भिन्नभिन्न वस्तुस्वरूप शुं छे ते समजी लेवुं.
निश्चयनय प्रमाणे वस्तुस्वरूप जे समजे छे ते सम्यग्द्रष्टि छे.
व्यवहारनय प्रमाणे ज वस्तुस्वरूप जे मानी ल्ये छे ते मिथ्याद्रष्टि छे.
वस्तुनी पर्याय पोताथी ज थई एम जाणवुं ते यथार्थ छे.
परने लीधे पर्याय थई एम जाणवुं ते यथार्थ नथी.
उपादान–निमित्तनी स्वतंत्रतानी आ वात दांडी पीटीने दुनियामां प्रसिद्ध करवा जेवी छे. निश्चय–व्यवहारना
अर्थ समजवा आ पद्धति खास जरूरनी होवाथी बेधडकपणे जाहेर करवा जेवी छे.
जुओ, आ हितोपदेश! सर्वज्ञ भगवान हितोपदेशी छे, ने आ ज तेमनो हितोपदेश छे; केमके आ समजे तो
ज स्वसन्मुखता थाय छे, ने स्वसन्मुखता करे तो ज हित थाय छे. जो निश्चयनय अनुसार वस्तुस्वरूप जाणीने
परथी भिन्नता ने स्वमां एकता (एकत्वविभक्तपणुं) करे तो ज जीवनुं हित थाय छे. माटे जे जीव आ प्रमाणे
समजे ते ज सर्वज्ञवीतरागदेवना हितोपदेशने समज्यो छे, ने तेनुं ज हित थाय छे. एकला व्यवहार प्रमाणे ज
वस्तुस्वरूप मानी ल्ये तो हित थतुं नथी. माटे जेने पोतानुं हित करवुं होय तेणे भगवानना कहेला शास्त्रोनो अर्थ
अने वस्तुनुं स्वरूप आ प्रमाणे निश्चयनय द्वारा समजवुं.
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प्रौढवयना गृहस्थो माटे जैनदर्शन शिक्षणवर्ग
दर वर्षनी माफक आ वर्षे पण श्रावण सुद त्रीज ने गुरुवार ता. ९–८–प६थी शरू
करीने, श्रावण वद आठम ने बुधवार ता. २९–८–प६ सुधी तत्त्वज्ञानना अभ्यास माटे
सोनगढमां “जैनदर्शन शिक्षणवर्ग” चालशे. जे जिज्ञासु जैन भाईओने वर्गमां आववानी
ईच्छा होय तेमणे सूचना मोकली देवी, अने वखतसर आवी जवुं.
आ वखते शिक्षणवर्गमां जैनसिद्धांत प्रवेशिका, द्रव्य संग्रह, मोक्षमार्गप्रकाशक
(अध्याय–९) तथा प्रवचनसार ज्ञेय–अधिकारमांथी केटलोक भाग चालशे.
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर, सोनगढ (सौराष्ट्र)
अषाढः २४८२ ः १६पः