खरेखर पंडित कहेता नथी. शास्त्रनो सार तो आत्मा जाणवानो छे, तेथी जेणे आत्मस्वभावने जाणीने सम्यग्दर्शन
कर्युं ते ज खरो पंडित छे; तथा मनुष्योमां ते ज प्रधान छे, सम्यग्दर्शन वगरनो नर तो पशु समान छे.
आ प्रमाणे सम्यग्दर्शननो परम महिमा छे, ने ते सम्यग्दर्शनधर्म श्रावकोने पण होय छे. माटे श्रावकोए शुद्ध
सम्यग्दर्शन प्रगट करीने तेने निश्चलपणे टकावी राखवुं.–ए प्रमाणे आचार्यदेवनो उपदेश छे.
सूत्रनां पदोनो अने पदार्थोना
स्वरूपनो निश्चय करवानी रीत
ॐ*ॐ
‘निश्चयनय द्वारा सूत्रनां पदो अने अर्थोनो निश्चय थाय छे.’
(आ छे शास्त्रोनां अर्थ उकेलवानी चावी– master key )
(श्री प्रवचनसार गाथा २६८ उपरनां पू. गुरुदेवनां महत्त्वना प्रवचनोमांथी.)
(लेखांक बीजो)
समस्त द्रव्य–गुण–पर्यायरूप पदार्थोनो जेने निश्चय होय तेने ज ज्ञातृतत्त्व कहे छे, ते निश्चय कई रीते
होय?–के निश्चयनयवडे. परथी भिन्न, वस्तुनुं पोतानुं स्वरूप शुं छे तेनो निश्चय निश्चयनयवडे थाय छे. व्यवहार तो
लोकोक्ति छे एटले उपचारथी बोलवानी रीत छे, ते कांई वस्तुस्वरूप नथी एटले तेनाथी वस्तुस्वरूपनो निश्चय
थतो नथी.
दरेक पदार्थ अस्ति–नास्तिरूप छे, एटले पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायथी सत्रूप छे, ने परपणे ते असत् छे.
आम स्व–पर तत्त्वोनी भिन्नताना निश्चयवडे ज्ञान करवुं ते यथार्थ छे, अने स्व–परनो एकबीजामां आरोप करीने
कहेवुं ते व्यवहार छे, ते असत्यार्थ छे, वस्तुस्वरूप नथी.
“ईंद्रियो वगेरे पर निमित्तथी ज्ञान थयुं” एम कहेवाय त्यां, खरेखर एम नथी केमके निश्चयथी ईंद्रियो अने
ज्ञान बंने भिन्नभिन्न पदार्थो छे. तेथी एकने कारणे बीजामां कांई थाय नहि. जो एक तत्त्वने लीधे बीजा तत्त्वमां कांई
थाय एम खरेखर मानवामां आवे तो बे पदार्थोनी भिन्नतानी प्रतीत रहेती नथी. माटे व्यवहारना कथन प्रमाणे
खरेखर वस्तुस्वरूप नथी एम समजीने, निश्चयनय अनुसार खरुं वस्तुस्वरूप शुं छे ते ओळखवुं जोईए.
जो व्यवहार प्रमाणे ज वस्तुस्वरूप मानी ल्ये अने निश्चयनयद्वारा स्व–पर पदार्थोना भिन्नभिन्न स्वरूपने न
ओळखे तो ते जीव मिथ्याद्रष्टि ज रहे छे, अने एवा जीवने संयम होतो नथी.
संयमी मुनि केवा होय? के पहेलां तो निश्चयनयवडे सूत्र अने अर्थनो निश्चय करनार होय. सम्यग्द्रष्टिने चोथा
ः १६२ः आत्मधर्मः १प३