जिनशासनमां धर्म नथी कह्यो, मोह–क्षोभ रहित जे शुद्धचैतन्य परिणाम तेने ज धर्म कह्यो छे.
राखीने शांतिथी आ वात सांभळ. रागथी पार चैतन्यतत्त्व शुं चीज छे तेनी तने खबर नथी ने तें रागने ज धर्म
मान्यो छे. पण भाई, राग तो तारा वीतरागी चैतन्यस्वभावथी विरुद्धभाव छे, तेमां तारो धर्म केम होय?
पंचमहाव्रतनी वृत्ति वखते पण मुनिओने अंतरमां ते वृत्तिथी पार ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी श्रद्धाज्ञान लीनताथी
जेटलो मोहनो ने रागनो अभाव थयो छे तेटलो धर्म छे, ते मोक्षनुं कारण छे, ने जे राग रह्यो छे ते धर्म नथी.
छतां, तेने पण व्रत–पूजादिनो जे शुभभाव छे ते तो पुण्यनुं ज कारण छे, ने समयसारमां तो तेने पण निश्चयथी
विषकुंभ कह्या छे. शुद्धआत्माना अनुभवने ज अमृतकुंभ कह्यो छे.
हजी तेमां लीन थईने ठर्यो नथी त्यां वच्चे जे व्यवहारप्रतिक्रमणादिनो शुभराग आवे छे ते निश्चयथी झेरकुंभ छे,
केमके तेमां आत्मानुं निर्विकल्प अमृत लूंटाय छे. जुओ, आ कुंदकुंदआचार्यदेवनी वाणी छे; तेमनी तो कोई अद्भुत
रचना छे! व्यवहार करतां करतां धर्म थशे एम मानीने जे रागनी मीठास वेदे छे ते जीव झेरना स्वादमां मीठास
माने छे, आत्माना अतीन्द्रिय आनंदरूप अमृतना स्वादनी तेने खबर नथी.
व्यवहार करतां करतां शुद्धआत्माना आनंदना अनुभवरूप अमृतपद पमाशे! माटे अमारे तो व्यवहार ते ज
अमृतनो घडो छे.
साक्षात् अमृतकुंभ छे,–ते ज निश्चयथी अमृत छे, अने एना लक्षपूर्वक व्यवहार प्रतिक्रमणादिनो जे शुभभाव धर्मीने
आवे छे तेने व्यवहारे अमृत कह्युं होवा छतां निश्चयथी तो ते पण विषकुंभ ज छे. जेने आचार्यदेवे विषकुंभ कह्यो
तेने जैनशासन केम कहेवाय? राग ते जैनशासन नथी, जैनशासन कहो, जिनेन्द्रदेवनो उपदेश कहो, के भगवाननी
आज्ञा कहो,–राग करवानी वीतराग भगवाननी आज्ञा केम होय? वीतराग भगवान रागने धर्म केम कहे?
जिनशासनमां कयांय पण रागथी धर्म थाय एवो भगवाननो उपदेश छे ज नहीं. वीतरागीश्रद्धा, वीतरागी ज्ञान, ने
वीतरागी आचरणरूप शुद्धभावने ज जिनशासनमां भगवाने धर्म कह्यो छे अने ते ज भाविभवभंजक छे, पुण्यमां
भावि–भवनुं भंजन करवानी ताकात नथी.
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