Atmadharma magazine - Ank 153
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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जिनशासनो सर्व उपदेश हितने माटे ज छे,
ऊेंचे चडवा माटे ज छे, नीचे पडवा माटे नथी –
जिनशासन एने कहेवाय के एक क्षण पण जेना सेवनथी जरूर मोक्ष थाय. एटले के जीवनुं परम हित थाय.
भगवाननो उपदेश जीवोनां हित माटे छे. ‘पुण्य ते धर्म नथी, पुण्यथी धर्म थतो नथी’–आवो जे जिनेन्द्रभगवाननो
उपदेश छे ते पण जीवोना हितने माटे ज छे, पुण्यथी धर्म नथी माटे पुण्य छोडीने पापमां जवुं–एम कांई नथी कहेता,
नीचे जवानुं नथी कहेतां; पण पुण्य ते धर्म नथी एम कहीने रागरहित चैतन्यस्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान–रमणता
करवानुं कहे छे एटले के ऊंचे ऊंचे लई जाय छे. आ रीते संसारमार्गथी छोडावीने मोक्षमार्गमां लई जवा माटे
भगवाननो उपदेश छे, अहितमार्गथी छोडावीने हितमार्गमां जोडवानो भगवाननो उपदेश छे. छतां तेनो ऊंधो अर्थ
लईने, ‘पुण्य ते धर्म नथी माटे पुण्य छोडीने पाप करवानुं कहे छे’–एम जे माने ते तो मोटो स्वछंदी अनंत
संसारमां रखडनार छे, तेनामां तो भगवाननो उपदेश सांभळवानी पण लायकात नथी. भगवाननी वाणी तो
जीवोना हित माटे ज छे–धर्मवृद्धि माटे ज छे, जीवोने संसारथी छोडावीने मोक्षमां लई जवा माटे ज भगवाननो सर्व
उपदेश छे. जिज्ञासु–आत्मार्थी तो एम विचारे छे के अहो, ‘पुण्य ते धर्म नथी’ एम कहीने भगवान मने रागथी
पण पार मारो चैतन्यस्वभाव बतावीने तेनो अनुभव कराववा मांगे छे. आ रीते स्वभाव सन्मुख थईने
वीतरागी श्रद्धा–ज्ञान प्रगट करीने ते पोतानुं हित साधे छे.
हित करवुं होय तो हितनो उपाय जाण.
अहीं आचार्यदेव एम कहे छे के रागरहित जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप शुद्धभाव छे ते ज जिनशासन
छे, ने राग ते खरेखर जैनशासन नथी; एटले के तारा स्वभावनी सन्मुखताथी जे शुद्धपरिणाम थया तेमां ज तारुं
हित छे, रागमां तारुं हित नथी. हजी शरूआतमां राग सर्वथा न टळी जाय, धर्मीनेय राग तो थाय, पण पहेलां
आवी ओळखाण करवी जोईए के आ राग मारा स्वभावथी जुदी जात छे, तेमां मारुं हित नथी, मारुं हित तो
सम्यग्दर्शनादि शुद्धभावमां ज छे–आम बराबर समजे तो शुद्धभाव प्रगटाववानो ने राग टाळवानो उद्यम करे; पण
रागने ज हितरूप मानी ल्ये तो ते रागने टाळवानो उद्यम केम करे? माटे हे भाई, तारुं हित कयां छे ते तो नक्की
कर. हितनो उपाय जाण्या विना, अनादिथी अहितने ज हित मानीने तेनुं सेवन कर्युं छे, पण हजी सुधी जराय हित
थयुं नथी. माटे अहीं संतो हितनो साचो उपाय बतावे छे.
‘हितोपदेश’ जिनशासनमां ज छे –
हितनो साचो उपाय जिनशासनमां ज छे. हितनुं कारण जे शुद्धरत्नत्रय तेनो यथार्थ उपदेश जिनशासनमां
ज छे तेथी ज जिनशासननी श्रेष्ठता छे. साधारण रीते दया–दानादि पुण्यनो उपदेश तो बधाय आपे छे पण ते कांई
हितोपदेश नथी. जिनशासनमां आत्मानो ज्ञान–आनंदथी परिपूर्ण स्वभाव बतावीने तेनी श्रद्धा–ज्ञान ने तेमां
लीनता करवानो उपदेश छे ने ते ज खरो हितोपदेश छे. पुण्यनो शुभराग ते पण चारित्रमोहनो प्रकार छे, ते मोहमां
हित केम होय?–ते धर्म केम होय? तेने जैनशासन केम कहेवाय? जिनशासनमां तो मोहरहित शुद्धात्मपरिणामने ज
धर्म कह्यो छे, तेमां ज हित छे, ने ते ज जिनशासन छे.
(चालु)
अषाढः २४८२ ः १६९ः