सम्यक्त्वपरिणतः पुनः क्षपयति दुष्टाष्टकर्माणि ।। ८७।।
आत्माना ध्यानथी ज सम्यग्दर्शन थाय छे, एवुं सम्यग्दर्शन प्रगट करीने पछी पण तेना ज ध्यानथी कर्मनो क्षय
थाय छे. सम्यग्दर्शन पछी पण व्रतादिना राग वडे कांई कर्मनो क्षय थतो नथी, सम्यक्त्वना परिणमनथी ज कर्मनो
क्षय थाय छे. जे शुद्ध आत्माना ध्यानथी सम्यग्दर्शन थयुं तेना ज ध्यान वडे वीतरागी चारित्र प्रगटीने कर्मनो क्षय
थाय छे. बहिर्मुख रुचि छूटीने, अंतर्मुख स्वभावनी रुचिथी तेनो अनुभव थयो ते सम्यग्दर्शन छे. आवुं सम्यग्दर्शन
ते श्रावकोनुं कर्तव्य छे.
(उत्तर) तेणे पण सम्यग्दर्शननुं ध्यान धरवुं, एटले के सम्यग्दर्शनना विषयभूत जे शुद्धआत्मा छे तेनो
(उत्तर) सम्यग्दर्शन पछी पण ते सम्यग्दर्शनना ध्येयभूत एवा आत्मानुं ध्यान करवुं; तेना वडे आठे
घणी निर्जरा थती जाय छे. श्रावकने देव–गुरुनी पूजा वगेरेनो भाव जरूर आवे, पण ते शुभभाव कांई मुक्तिनुं
कारण नथी, मुक्तिनुं कारण तो सम्यग्दर्शनादि शुद्ध परिणाम ज छे.
उपाय छे. आत्माना स्वभावने जाणीने सम्यग्दर्शन उपरांत अंतर्मुख लीनताथी मुनिओने तो घणी आत्मगति थई
छे–तेमने तो घणी ज वीतरागता थई गई छे; अने श्रावकने आत्मस्वभावनुं ज्ञान अने सम्यग्दर्शन होवा छतां
हजी तेमां विशेष लीनता नथी–आत्मगति मुनिओ जेवी उग्र नथी, एटले तेमने देवपूजा वगेरे शुभराग आवे छे
तेथी व्यवहारथी श्रावकनां ते छ कर्तव्य कह्यां छे, पण खरेखर तो सम्यग्दर्शन प्रगट करीने पछी तेनुं ज ध्यान करवुं ते
कर्तव्य छे. पण श्रावकनी भूमिकामां सर्व राग छूटी शकतो नथी, हजी अमुक राग वर्ते छे छतां ते रागनी दिशा पलटी
गई छे तेथी भगवाननी पूजा, मुनिओनी वैयावृत्य वगेरेनो भाव आवे छे, ने धर्मनी भूमिकामां वर्तता ते रागने
पण उपचारथी श्रावकोनो धर्म चरणानुयोगमां कह्यो छे; पण खरेखर राग ते धर्म नथी. पहेलां निर्विकल्प
चिदानंदस्वरूपना अनुभवसहित जे सम्यक् प्रतीति थई ते सम्यग्दर्शन छे, ए सिवाय सम्यग्दर्शन होतुं नथी. पछी
चैतन्यना उग्र ध्यान वडे अंतरमां एकाग्र थतां मुनिदशा थाय छे, ने पछी अप्रतिहत ध्याननी श्रेणी लगावीने लीन
थतां शुक्लध्यानवडे चार घातिकर्मनो क्षय करीने केवळज्ञान प्रगट थाय छे. चैतन्यना ध्यानमां एकाग्र थयो त्यां
सम्यग्दर्शनादि तथा केवळज्ञान सहेजे थई जाय छे; त्यां मांगवुं नथी पडतुं. जेम आंबाना झाड पासे केरी मांगवी न
पडे, तेमां केरी लटकती झूलती ज होय; तेम चैतन्यस्वभाव अनंतगुणरूप केरीथी भरेलो आंबो छे, तेना ध्यानमां
एकाग्र थता सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र मोक्ष थाय छे. माटे कहे छे के सम्यक्त्वना ध्यानरूप परिणमनथी आठे कर्मोनो
नाश थाय छे. माटे आ सम्यक्त्व ते मोक्षनुं प्रधान कारण छे. विशेष शुं कहीए? भूतकाळे जेओ सिद्ध थया छे,
अत्यारे थाय छे ने भविष्यमां थशे ते सर्वे उत्तमपुरुषो आ सम्यक्त्वना
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