: १९० : ‘आत्मधर्म’ २४८२: श्रावण:
थाय छे. जो अंतरमां पोताना चिदानंदस्वरूपने नीहाळे तो आनंदनुं वेदन थाय ने विकारनुं वेदन टळे.
आत्मानो आवो प्रगट महिमा संतो बतावे छे, आ अचिंत्य महिमाने लक्षमां लईने एकवार पण जो
अंतरथी ऊछळीने तेनुं बहुमान करे तो संसारथी बेडो पार थई जाय. चैतन्यस्वभावनुं बहुमान करतां
अल्पकाळमां ज तेनुं स्वसंवेदन थईने मुक्ति थया विना रहे नहि. वस्तुमां परिपूर्ण ज्ञान–आनंदनी शक्ति पडी
ज छे, तेने ओळखीने, तेनी सन्मुख थईने, पर्यायमां ते प्रगट करवानी छे, अरे जीव! एकवार बीजुं बधुं भूली
जा ने तारी निजशक्तिने संभाळ! पर्यायमां संसार छे ए भूली जा ने निजशक्तिनी सन्मुख जो, तो तेमां
संसार छे ज नहि. चैतन्यशक्तिमां संसार हतो ज नहि, छे ज नहि, ने थशे पण नहि. –ल्यो आ मोक्ष! आवा
स्वभावनी द्रष्टिथी आत्मा मुक्त ज छे. माटे एकवार बीजुं बधुंय लक्षमांथी छोडी दे ने आवा
चिदानंदस्वभावमां लक्षने एकाग्र कर, तो तने मोक्षनी शंका रहेशे नहि, अल्पकाळमां अवश्य मुक्ति थई जशे.
[–४७ शक्ति उपर पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी]
धार्मिक प्रवचना खास दिवसो
सोनगढमां श्रावण वद ११ ने शनिवार ता. १–९–५६थी भादरवा सुद ४ ने शनिवार ता. ८–९–५६
सुधीना आठ दिवसो धार्मिक दिवसो तरीके ऊजवाशे, ने आ दिवसोमां पू. गुरुदेवनां खास प्रवचनो थशे. आ
दिवसो दरमियान घणाखरा मुमुक्षुओने कामधंधाथी निवृत्तिनो विशेष अवकाश मळतो होवाथी तेओ लाभ लई
शके ते हेतुए आ आठ दिवसो राखवामां आव्या छे. (श्रावण वद १२ नो क्षय छे.)
[पृष्ठ १८नो शेषांश]
अंतर्मुख करीने जो शक्तिने सेवे तो ते शक्ति पर्यायमां पण निर्मळपणे ऊछळे, तेनुं नाम धर्म छे. पोतानी
वर्तमान पर्यायने पोताना स्वभावमां न वाळतां पर तरफ वाळे तो मलिन थाय छे एटले के अधर्म थाय छे;
अने पोतानी वर्तमानपर्यायने पोताना त्रिकाळी स्वभावमां वाळतां ते निर्मळ थाय छे, ने मूर्त कर्म साथेनो
संबंध टळीने साक्षात् सिद्धदशा प्रगटे छे, त्यां आत्मानी अमूर्तशक्ति शुद्धपणे परिणमी जाय छे. आवुं,
अनंतशक्तिवाळा ज्ञानस्वभावी आत्मानी श्रद्धानुं फळ छे.
–अहीं वीसमी अमूर्तत्वशक्तिनुं वर्णन पूरु थयुं.
जैनअतिथि सेवासमितिनी वार्षिक बेठक
भादरवा सुद बीज ने गुरुवार ता. ६–९–५६ना रोज सांजे पांच वागे श्री जैनअतिथि सेवासमितिनी
वार्षिक बेठक मळशे, तेमां सर्व सभ्योने हाजर रहेवा विनति छे.
दसलक्षणी धर्म अथवा पर्युषणपर्व
भादरवा सुद पांचम ने रविवार ता. ९–९–५६ थी भादरवा सुद चौदस ने मंगळवार ता. १८–९–५६
सुधीना दस दिवसो सोनगढमां दसलक्षणीधर्म अथवा पर्युषणपर्व तरीके ऊजवाशे. आ दिवसो दरमियान
उत्तमक्षमा वगेरे धर्मो उपर पू. गुरुदेवश्रीनां खास अध्यात्मप्रवचनो थशे.
अ भव वण भव छ नह अ ज तक अनकळ;
विचारतां पामी गया आत्मधर्मनुं मूळ.
श्रीमद् राजचंद्र