Atmadharma magazine - Ank 154
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 21

background image
: श्रावण: २४८२ ‘आत्मधर्म’ : १९१ :
धर्मात्मानुं स्वरूप – संचेतन
हुं एक शुद्ध सदा अरूपी ज्ञानदर्शनमय खरे,
कंई अन्य ते मारुं जरी परमाणुमात्र नथी अरे!
जे अनादिथी अत्यंत अप्रतिबुद्ध हतो, ने विरक्त ज्ञानी गुरुवडे
निरंतर परम अनुग्रहपूर्वक शुद्ध आत्मानुं स्वरूप समजाववामां
आवतां, परम उद्यमवडे समजीने जे ज्ञानी थयो ते शिष्य पोताना
आत्मानो केवो अनुभव करे छे तेनुं आ वर्णन छे.
[तेमां ते
पवित्रात्मा गुरुना उपकारने भूलतो नथी.]
[श्री समयसार गा. ३८ उपर पू. गुरुदेवनुं सुंदर प्रवचन]


जेवुं आत्मानुं स्वरूप छे तेवुं गुरुना उपदेशथी जाणीने अनुभव्युं, ते अनुभव केवो थयो? तेनुं वर्णन
करतां शिष्य कहे छे के–पहेलांं तो अनादिथी मोहरूप अज्ञानथी हुं अत्यंत अप्रतिबुद्ध हतो, तद्न अज्ञानी हतो.
पछी विरक्त गुरुओए परमकृपा करीने मने निरंतर आत्मानुं स्वरूप समजाव्युं. जेमणे पोते आत्माना
आनंदनो अनुभव कर्यो छे... जेओनो संसार शांत थई गयो छे... जेओ शांत थईने अंतरमां ठरी गया छे...
एवा परम वैरागी विरक्त गुरुए महा अनुग्रह करीने शुद्धआत्मस्वरूप मने वारंवार समजाव्युं. जे समजवानी
मने निरंतर धून हती ते ज गुरुए समजाव्युं.
श्री गुरुए अनुग्रह करीने जेवो मारो स्वभाव कह्यो तेवो झीलीने में वारंवार ते समजवानो उद्यम
कर्यो... ‘अहो हुं तो ज्ञान छुं, आनंद ज मारो स्वभाव छे’ एम मारा गुरुए मने कह्युं, ते में सर्व प्रकारना
उद्यमथी अंतर्मथन करीने निर्णय कर्यो... मारो उद्यम थतां काळलब्धि पण भेगी ज आवी गई... कर्मो पण खसी
गयां... सर्व प्रकारना उद्यमथी सावधान थईने हुं मारुं स्वरूप समज्यो. हुं मारुं शुद्धस्वरूप जेवुं समज्यो तेवुं ज
सर्वज्ञ परमात्माए अने श्रीगुरुए मने कह्युं हतुं; आ रीते देव–गुरु–शास्त्रोए शुं स्वरूप समजाव्युं तेनो पण
यथार्थ निर्णय थयो.
जेम पोतानी मूठीमां राखेलुं सोनुं भूली गयो होय ने फरी याद करे; तेम मारा परमेश्वरस्वरूप आत्माने
हुं भूली गयो हतो तेनुं हवे मने भान थयुं; मारामां ज मारा परमेश्वरआत्माने में देख्यो... अनादिथी मारा
आवा आत्माने हुं भूली गयो हतो, मने कोई बीजाए भूलाव्यो न हतो, पण मारा अज्ञानने लीधे हुं ज भूली
गयो हतो; मारा आत्मानो महिमा चूकीने हुं संयोगनो महिमा करतो, तेथी हुं मारा आत्माने भूली गयो हतो;
पण श्रीगुरुना अनुग्रहपूर्वक उपदेशथी सर्व प्रकारना उद्यम वडे हवे मने मारा परमेश्वर आत्मानुं भान थयुं.
श्रीगुरुए जेवो आत्मा कह्यो हतो तेवो हवे में जाण्यो.
ए प्रमाणे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर आत्माने जाणीने, तेनी श्रद्धा करीने तथा तेनुं आचरण हुं सम्यक् प्रकारे