: श्रावण: २४८२ ‘आत्मधर्म’ : १९३ :
सोनगढ – जिनमंदिर – समाचार
[भक्तोना उल्लासनो एक प्रसंग]
तीर्थधाम सोनगढमां पू. गुरुदेवना प्रतापे श्री सीमंधर भगवाननुं जिनमंदिर सं. १९९७मां थयुं...
त्यारबाद दिनदिन वधती जती प्रभावनाने प्रतापे भक्तजनो एटला वधता गया के ए जिनमंदिरमां सांकड
पडवा लागी... ने तेने विशाळ करवानी जरूर पडी. भक्तजनोए उल्लास–पूर्वक जिनमंदिर मोटुं करवानी
योजनाने वधावी लीधी... ने ए मंगल कार्य अत्यारे चाली रह्युं छे. जिनमंदिर घणुं भव्य–रळियामणुं, विशाळ
अने उन्नत थशे...
अषाड सुद चौदस अने पुनम–ए बे दिवसो दरमियान–आ जिनमंदिरनी छत भरवानुं काम
भक्तजनोए घणा उमंगपूर्वक हाथोहाथ कर्युं... अतिशय भक्तिपूर्वक पू. बेनश्रीबेननी आगेवानीमां सेंकडो
भक्तजनो ज्यारे ए कार्य उल्लासथी करी रह्या हता त्यारे जिनमंदिर प्रत्येनी सौनी अद्भुत भक्ति देखीने
आश्चर्य थतुं... भक्तिना गीत गातां गातां ए महान प्रसंग चाल्यो ते वखतनुं द्रश्य खास जोवा लायक हतुं. बे
दिवसना सतत परिश्रम बाद ज्यारे ए छत पूरवानुं कार्य पूरुं थयुं त्यारे जिनमंदिर प्रत्येनी अंतरनी ऊंडी ऊंडी
लागणीपूर्वक पू. बेनश्रीबेने आनंदपूर्वक जे जयजयकार गजाव्या छे... अने भक्तोए अतिशय होंशथी झील्या
छे... ते जयनादना रणकार हजी पण भक्तोना कानमां गूंजी रह्या छे...
जिनमंदिर–फंडनी विगत नीचे मुजब छे– ६७ कपुरचंद हीराचंद सोनगढ
८४३८८ाा आत्मधर्म अंक १५३मां जणाव्या मुजब ६७ शेठ मोहनलाल कानजी घीया राजकोट
२०१ श्री जैन शिक्षणवर्गना विद्यार्थीओ ६७ शेठ त्रीभोवन फुलचंद खारा वींछीया
२०१ रायचंद धरमशी मोशी ६७ कांताबहेन त्रीभोवन खारा वींछीया
१०१ खेमराजजी कपुरचंदजी खेरागढराज ६७ सौ. कसुंबाबहेन मुळजीभाई राजकोट
१०१ प्राणलाल देवकरण शेठ हा. झबकबेन राजकोट ६७ लाला सिखरचंद विसेसरलाल कलकत्ता
१२५ करमण नरसी नाईरोबी ६७ महालक्ष्मीबहेन हा. शांताबेन अमदावाद
मने ते कोई परद्रव्य जराय मारापणे भासतुं नथी; मारुं शुद्धतत्त्व परिपूर्ण छे ते ज मने मारापणे
अनुभवाय छे, मारी पूर्णतामां परद्रव्यनो एक रजकणमात्र मने मारापणे भासतो नथी के जे मारी साथे
(भावकपणे के ज्ञेयपणे) एक थईने मने मोह उत्पन्न करे! निजरसथी ज समस्त मोहने उखेडी नांख्यो छे;
निजरसथी ज समस्त मोहने उखेडी नांखीने–फरी तेनो अंकुर न ऊपजे ए रीते तेनो नाश करीने मने महान
ज्ञानप्रकाश प्रगट थयो छे. मारा आत्मामांथी मोहनो नाश थयो छे ने अपूर्व सम्यग्ज्ञान प्रकाश खीली गयो छे–
एम हुं मारा स्व–संवेदनथी निःशंकपणे जाणुं छुं. मारा आत्मामां शांत रस उल्लसी रह्यो छे... अनंतभव
होवानी शंका निर्मूळ थई गई छे... ने चैतन्यना आनंदना अनुभव सहित महान ज्ञानप्रकाश प्रगटी गयो छे.
–आ रीते, श्रीगुरु वडे परम अनुग्रहपूर्वक शुद्ध आत्मानुं स्वरूप समजाववामां आवतां, निरंतर
उद्यमवडे समजीने शिष्य पोताना आत्माने आवो अनुभवे छे–तेनुं वर्णन कर्युं.