Atmadharma magazine - Ank 154
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: १७८ : ‘आत्मधर्म’ २४८२: श्रावण:
प्रश्न: २ ः– जिनमार्गमां बंने नयोनुं ग्रहण करवुं कह्युं छे तेनो आशय शो छे?
उत्तर: २ ः– जिनमार्गमां कोई ठेकाणे तो निश्चयनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने तो ‘सत्यार्थ
एम ज छे,’ एम जाणवुं, तथा कोई ठेकाणे व्यवहारनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने ‘एम नथी पण
निमित्तादिनी अपेक्षाए आ उपचार कर्यो छे’ एम जाणवुं; अने ए प्रमाणे जाणवानुं नाम ज बंने नयोनुं ग्रहण
छे. पण बंने नयोना व्याख्यानने समान सत्यार्थ जाणी ‘आ प्रमाणे पण छे तथा आ प्रमाणे पण छे’ एवा
भ्रमरूप प्रवर्तवाथी तो बंने नयो ग्रहण करवा कह्या नथी.
प्रश्न: २ ः– निश्चयनय अने व्यवहारनय बंने समकक्षी (बंने समानपणे आश्रय करवा योग्य) छे? –
शा माटे? कारणो आपी समजावो.
उत्तर: २ ः– निश्चयनय अने व्यवहारनय बंने समकक्षी (बंने समानपणे आश्रय करवायोग्य) नथी;
केम के व्यवहारनय स्वद्रव्य–परद्रव्यने अथवा स्वद्रव्य–परद्रव्यना भावोने अथवा कारण–कार्यादिकने कोईना
कोईमां मेळवी–भेळसेळ करी निरूपण करे छे;–माटे एवा ज श्रद्धानथी मिथ्यात्व छे तेथी तेनो त्याग करवो, तेनो
आश्रय छोडवो. वळी निश्चयनय तेने ज एटले के स्वद्रव्य–परद्रव्यने, स्वद्रव्य–परद्रव्यना भावोने अने कारण–
कार्यदिकने यथावत् (–जेवुं तेमनुं स्वरूप छे तेम ज) निरूपण करे छे, तथा कोईने कोईमां मेळवतो नथी–
भेळसेळ करतो नथी; तेथी एवा ज श्रद्धानथी (–निश्चयनय अनुसार श्रद्धानथी ज) सम्यक्त्व थाय छे. माटे
तेनुं श्रद्धान करवुं–तेनो आश्रय करवो. आ प्रमाणे व्यवहारनय हेय छे अने निश्चयनय उपादेय छे, तो ते बंने
समकक्षी केम होई शके? –न होई शके.
प्रश्न: ३ ः– एवा कया कारणो छे के जेनाथी मोक्षनी प्राप्ति अवश्य थाय?
उत्तर: ३ ः– निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी एकतास्वरूप आत्माना सुविशुद्ध परिणाम ज एवुं
कारण छे के जेनाथी मोक्षनी प्राप्ति अवश्य थाय. ज्यां आ कारण होय त्यां बीजा कारणो स्वयमेव होय ज छे.
प्रश्न: ३ ः– असंयत सम्यग्द्रष्टिने तो चारित्र नथी तो तेने मोक्षमार्ग थयो छे के नथी थयो? ते
समजावो.
उत्तर: ३ ः– असंयत सम्यग्द्रष्टिने भाव–चारित्र नथी तेथी हजी साक्षात् मोक्षमार्ग थयो नथी, पण
साक्षात् मोक्षमार्ग तेने थशे ए तो नियम छे; केम के मोक्षमार्गनुं मूळ सम्यग्दर्शन तेने प्रगट थयुं छे अने तेथी
तेने मोक्षमार्ग थयो एम पण कहीए छीए. परमार्थथी सम्यक् चारित्र थतां ज साक्षात् मोक्षमार्ग थाय छे.
असंयत सम्यग्द्रष्टिने वीतरागभावरूप मोक्षमार्गनुं श्रद्धान थयुं छे, तेथी तेने मोक्षमार्गी कहीए छीए, अने
वीतराग चारित्ररूप परिणमतां साक्षात् मोक्षमार्ग थशे. सम्यग्दर्शन थतां चोथा गुस्थाने मोक्षमार्गनी अंशे
शरूआत तो थई चूकी छे, पण हजी चारित्रदशा नहि होवाथी साक्षात् मोक्षमार्ग थयो नथी–एम जाणवुं. अने
साक्षात् मोक्षमार्ग नहि होवाथी (–अंशे मोक्षमार्ग होवाथी) तेना मोक्षमार्गने उपचार मोक्षमार्ग कह्यो छे–एम
समजवुं.
प्रश्न: ३ ः– जीव तथा अजीवनुं श्रद्धान करतां मोक्षनुं प्रयोजन केवी रीते सिद्ध थाय छे?
उत्तर: ३ ः– जीव अने अजीव–ए बे तो घणां द्रव्योनी एकजाति अपेक्षाए सामान्यरूप तत्त्व छे. ए
बंने जाति जाणतां आत्माने स्व–परनुं श्रद्धान थाय त्यारे पोते पोताने परथी भिन्न जाणी, पोताना हितने
अर्थे मोक्षनो उपाय करे; तथा पोताथी भिन्न परने जाणे त्यारे परद्रव्यथी उदासीन थई रागादिक छोडी
मोक्षमार्गमां प्रवर्ते; तेथी ए बंने जातिनुं श्रद्धान थतां ज मोक्षनो उपाय थाय. आ प्रमाणे जीव–अजीवनुं श्रद्धान
करतां मोक्षनुं प्रयोजन सिद्ध थाय छे.
प्रश्न: ४ ः– नीचेनुं कथन कया नयनुं छे? ने तेमां निश्चय–व्यवहार समजावो.
(१) जीवना परिणामथी कर्मोनुं उत्कर्षण–अपकर्षणादि थाय छे.
(२) पुरुषार्थ पूर्वक तत्त्वनिर्णय करवामां उपयोग लगाववाथी सम्यग्दर्शननी प्राप्ति थाय.