Atmadharma magazine - Ank 154
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण: २४८२ ‘आत्मधर्म’ : १७९ :
(३) अरहंत भगवानने चार अघातिकर्मो बाकी छे तेथी सिद्धत्वने प्राप्त करी शकता नथी.
उत्तर: ४
ः– (१) जीवना परिणामथी कर्मोनुं उत्कर्षण, अपकर्षणादि थाय छे–ए कथन व्यवहारनयनुं
छे. कर्मोनुं उत्कर्षण, अपकर्षणादि थवुं ते कर्मपुद्गलोनी शक्ति छे. कर्मपुद्गलो पोतानी शक्तिथी उत्कर्षण,
अपकर्षणादिरूपे थाय छे एवुं निरूपण ते निश्चय छे, अने जीवना परिणाम तेमां निमित्त होवाथी, जीवना
परिणामथी थाय छे एवुं निरूपण ते व्यवहार छे, केमके ते पराश्रित कथन छे.
(२) पुरुषार्थपूर्वक तत्त्वनिर्णय करवामां उपयोग लागवाथी सम्यग्दर्शननी प्राप्ति थाय, –आ कथन
निश्चयनयनुं छे; केम के तत्त्वनिर्णय करवामां उपयोग लगाववो ते कारण अने सम्यग्दर्शननी प्राप्ति थवी ते
कार्य,–ए कारण–कार्यनुं कथन स्वाश्रित होवाथी अने परनां कारणकार्य साथे भेळसेळ विनानुं होवाथी ते
निश्चय छे.
(३) अरहंत भगवानने चार अघाति कर्मो बाकी छे तेथी तेओ सिद्धत्वने प्राप्त करी शकता नथी, –आ
कथन व्यवहारनयनुं छे. अरहंत भगवान पोतानी असिद्धत्वरूप विभावनी योग्यताने कारणे सिद्धत्वने
पामता नथी ते कथन स्वाश्रित होवाथी, अने कर्म वगेरे परद्रव्य साथे भेळसेळ विनानुं होवाथी, निश्चय छे.
अघाति कर्मोना कारणे सिद्धत्व प्राप्त करी शकता नथी ते कथन परद्रव्य साथे–मेळवीने–भेळसेळ करीने होवाथी
व्यवहार छे.
प्रश्न: ४ :– नीचेना वाक्योनो कारण सहित उत्तर आपो.
(१) कोई वखते उत्पादानथी कार्य थाय अने कोई वखते निमित्तथी कार्य थाय–ए वात बराबर छे के
नहि?
(२) केवळीभगवान द्रव्य–गुण–पर्यायोने जाणे पण तेना अपेक्षित धर्मोने न जाणे–ए वात बराबर छे
के नहि?
(३) समकितीना शुभभावमां अंशे संवर–निर्जरा छे–ए कथन बराबर छे के नहि?
उत्तर: ४
:– (१) कोई वखते उपादानथी कार्य थाय अने कोई वखते निमित्तथी कार्य थाय आम मानवुं
ते साचो अनेकान्त नथी पण मिथ्या अनेकान्त अर्थात् एकान्त छे. कार्य हंमेशां उपादानथी थाय अने निमित्तथी
न थाय–एम समजवुं ते अनेकान्त छे; तेमां ज अस्ति–नास्तिरूप अनेक धर्मोथी वस्तुनी सिद्धि थाय छे.
(२) केवळी भगवान द्रव्य–गुण–पर्यायोने जाणे पण तेना अपेक्षित धर्मोने न जाणे–आ कथन साचुं
नथी, केम के केवळी भगवान पोताना केवळज्ञान वडे त्रिकाळवर्ती समस्त पदार्थोने–तेना सर्व धर्मो सहित
यथास्थित, परिपूर्णरूपे, अत्यंत स्पष्ट, एकसाथे जाणे छे. वळी केवळज्ञाननो कोई एवो ज अद्भुत अचिंत्य
स्वभाव छे के ते पोतपोताना अनंत धर्मो सहित सर्व द्रव्य–गुण–पर्यायोने युगपत् प्रत्यक्ष जाणी ले छे. आ
ज्ञानमां कोई पण ज्ञेय अज्ञात रहे तो खरेखर तेने केवळज्ञान ज न कहेवाय. छद्मस्थ पण अपेक्षित धर्मने जाणे
छे ते सर्वज्ञ केम न जाणे?
(३) समकितीना शुभभावमां अंशे संवर–निर्जरा छे–आ कथन बराबर नथी, केम के शुभभाव
आस्रवतत्त्व छे. आस्रवतत्त्व बंधनुं कारण छे. जे बंधनुं कारण होय ते संवर–निर्जरानुं कारण ज न होई शके.
संवर–निर्जरा मोक्षमार्ग छे. शुभभाव बंधमार्ग छे. बंधमार्ग मोक्षमार्ग केम होई शके? न ज होई शके.
समकितीने शुभ–भावना काळे जे संवर–निर्जरा थाय छे ते शुभभावथी नहि, पण अंतरमां जेटला अंशे
स्वभावनी द्रष्टि–ज्ञान–स्थिरता परिणमी छे तेना कारणे थाय छे. ते काळे जेटलो शुभभाव छे तेनाथी तो बंध
ज छे.
प्रश्न:– प :– एवा क्या जीवो छे के (१) जेने ज्ञान अने दर्शनउपयोग बंने एकी साथे होय? अने
(२) जेने बंने एक पछी एक होय?
उत्तर: प:– (१) केवळी भगवानने ज्ञान–उपयोग अने दर्शनउपयोग बंने एकी साथे होय.
(२) छद्मस्थ जीवने पहेलांं दर्शनोपयोग अने पछी ज्ञानोपयोग–एम एक पछी एक उपयोग होय.