ज्ञायकस्वभाव तरफ वळतां विकारनो तो अंत आवी जाय छे केमके ते वस्तुना स्वरूपमां नथी. पण ज्ञायक
स्वभावना आश्रये जे अकर्तृत्वपरिणाम प्रगट्या तेनो कदी अंत न आवे, केम के ते तो वस्तुनुं स्वरूप ज छे,
तेथी जेम वस्तुनो अंत नथी आवतो तेम तेना स्वरूपमांथी प्रगटेला निर्मळ परिणामनो पण अंत नथी
आवतो. जुओ, अंतरना ज्ञानस्वभावमां एकाग्र थतां आनंदनो तो अनुभव थाय छे पण तेनी साथे कांई
रागनो अनुभव थतो नथी केम के आनंद तो आत्मानो स्वभाव छे, पण राग ते आत्मानो स्वभाव नथी. ए
ज प्रमाणे आनंदनी जेम बीजी अनंतशक्तिओ पण ज्ञाननी साथे ऊछळे छे, ते बधी आत्माना स्वभावरूप छे,
पण विकार आत्माना स्वभावरूप नथी. एटले तेनो तो अभाव थई जाय छे. आमां स्वभाव अने विकार
वच्चेनुं केटलुं स्पष्ट भेदज्ञान छे! –पण अज्ञानी विकारनी रुचिथी एवो आंधळो थई गयो छे के विकारथी जुदो
पोतानो आखो ज्ञायकस्वभाव अनंतशक्तिथी भरेलो छे ते तेने जरापण देखातो नथी.
शक्ति नथी. विकारने न करे एवी अकर्तृत्वशक्ति छे. कर्ताबुद्धिने लीधे अज्ञानी बीजामां पण कर्तापणुं देखे छे के
‘फलाणाए आवा मंदिरो बंधाव्या, अमुक माणसे शत्रुंजय वगेरे तीर्थनो उद्धार कर्यो.’ परंतु आत्मा ते बधायनो
अकर्ता छे–एवुं कर्तापणुं साधी–साधीने अनंता संत–मुनिओए आत्मानो उद्धार कर्यो, –तेने अज्ञानी जाणतो
नथी; तेथी ते कर्ताबुद्धिथी संसारमां रखडे छे.
समयनुं नथी पण त्रिकाळ आखो आत्मा ते ज स्वरूप छे–एम तेने भासे छे, विकारथी जुदुं कांई स्वरूप तेने
भासतुं ज नथी. जो रखडवानो भाव एक समयनो ज छे एम खरेखर जाणे तो तो ते रहित त्रिकाळीस्वरूप छे
तेनो ख्याल आवी गयो, एटले विकार अने स्वभाव वच्चे भेद पडी गयो, भेदज्ञान थई गयुं, तेने तो विकार
तरफनुं वलण छूटीने स्वभाव तरफनुं वलण थई गयुं.
ज्ञायकआत्मामां विकार छे ज नहि, तेथी पर्यायना क्षणिक विकारनुं कर्तृत्व पण मारा स्वभावमां नथी–एम
अकर्तृत्वरूप ज्ञायकस्वभावने ओळखीने तेनी श्रद्धा करे तो ते स्वभावमां एकाग्रता वडे पर्यायमांथी विकारनो
तद्न अभाव करीने विकारनो साक्षात् अकर्ता थई जाय. –आवुं आ शक्ति समजवानुं तात्पर्य छे.
छे. हुं ज्ञायकभाव छुं ने मारा ज्ञायकभावमां विकारनुं कर्तापणुं नथी–एम पहेलांं द्रष्टिथी विकारनुं कर्तृत्व खेंची
ल्ये, ने ज्ञायकस्वभावनी ज द्रष्टि राखे, तेनुं नाम सम्यग्दर्शन छे, ते धर्मनी शरूआत छे. आठ कर्मनी १४८
प्रकृतिमांथी कोईपण प्रकृति जे भावे बंधाय ते भाव विकार छे, ने आत्माना ज्ञायकभावथी ते जुदा छे, तथा
आत्मानो ज्ञायकभाव ते विकारथी निवृत्तस्वरूप छे; अहो! आवा निवृत्त ज्ञायकस्वभावमां सन्मुख थईने तेमां
ठरवा जेवुं छे... ते ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग छे. रागना कर्तृत्वमां ज रोकाईने रागथी जे धर्म
मानी रह्या छे तेने वीतरागी आत्मतत्त्वनी खबर नथी, संतोनी दशानी खबर नथी, जैनधर्मनी खबर नथी,
अने तेने खरेखर