लडाई चालती त्यारे कोई कहेतां के ‘हीटलर’ जीतशे ने बीजा कहेतां के ब्रिटिश जीतशे,–एम बे पक्ष पडीने लोको
अहीं पण अंदरो–अंदर झघडी पडता; तेम अहीं एम सिद्ध तरफनी पार्टी छे, ने बीजी निगोद तरफनी पार्टी छे;
सिद्ध तरफनी पार्टीवाळा कहे छे के निश्चयथी एटले के आत्माना स्वभावनी सन्मुख थवाथी ज मुक्ति थाय;
पुण्यथी के निमित्त सन्मुख थवाथी मुक्ति त्रणकाळ त्रणलोकमां थाय नहि. वळी उपादान पोतानी शक्तिथी
कार्यरूप परिणमे त्यां तेने योग्य निमित्त होय, –एम सिद्ध तरफनी पार्टीवाळा कहे छे. त्यारे तेनो विरोध करीने
निगोद तरफनी पार्टीवाळा कहे छे के व्यवहारना आश्रयथी–रागना आश्रयथी मुक्ति थाय, पुण्यथी धर्म थाय, ने
निमित्तना प्रभावथी कार्यमां फेरफार थई जाय. स्वाश्रयथी मोक्ष माननारा तो स्वाश्रय करीने मुक्ति पामे छे–
सिद्ध थई जाय छे; ने पराश्रयथी मोक्ष माननार पराश्रय करी करीने संसारमां ज रखडे छे ने परंपरा निगोददशा
पामे छे. आ रीते स्वाश्रयरूप सिद्ध पार्टीमां भळे ते सिद्ध थई जाय छे. ने पराश्रयथी लाभ मानवारूप
निगोदपार्टीमां जे भळे ते निगोद थाय छे.
तेमां ज तारुं हित छे. ज्ञायकस्वभाव तरफ वळतां आ पुण्य–पापनी लागणीओ तो छूटी जाय छे केम के ते
ज्ञातास्वभावमांथी आवेली नथी. ज्ञातास्वभावमांथी आवेला ज्ञान–आनंदना परिणाम आत्मा साथे सादि–
अनंतकाळ सुधी एवा ने एवा रहे छे. अनादिथी संसारदशामां कर्तृत्वना जे अनंत परिणाम थया तेना करतां
स्वभावना ज्ञातृत्व परिणाम अनंतगुणा छे; संसार–दशाना काळ करतां सिद्धदशानो काळ अनंतगुणो अधिक छे.
केमके संसारनी विकारी दशाने तो कोई त्रिकाळी आधार न हतो, ने आ सिद्धपदनी निर्मळदशाने तो अंतरमां
त्रिकाळीधु्रवस्वभावनो आधार छे. अहो, आवा आत्मस्वभावनी प्रतीत करे तेने पोताना सिद्धपदनी निःशंकता
थई जाय...वर्तमानमां ज तेनुं परिणमन सिद्धदशा तरफ वळी जाय ने संसारथी पाछुं फरी जाय, एटले के
वर्तमानमां ज ते सिद्धपदनो साधक थई जाय.
प्रगट थयां तेनी संख्या पण, कर्तृत्व परिणाम करतां अनंतगणी छे. आ रीते विकार करतां निर्विकारभावनी
ताकात भावे तो अनंतगुणी छे ने संख्याए पण अनंतगुणी छे. –आम जे ओळखे तेना श्रद्धा–ज्ञान अंतरनी
शुद्धशक्ति तरफ वळ्या वगर रहे नहि. जेओ भूतकाळ अने भविष्य काळ ए बंने सरखां माने छे तेओ तत्त्वनी
मोटी भूल करे छे, तेओ वस्तुना स्वभावनी परिपूर्णता जाणता नथी.
वळी जाय छे. पछी स्वभाव तरफना वलणथी पर्याये पर्याये तेने अकर्तापणारूप निर्मळ परिणाम थता जाय छे,
ने विकारनुं कर्तृत्व छूटतुं जाय छे, एम करतां करतां विकारनो सर्वथा अभाव थईने साक्षात् सिद्धदशा प्रगटे छे.
अकर्तृत्व परिणामनो प्रवाह वह्या ज करशे. अहो, जेमांथी आवा अनंताशुद्ध अकर्तृत्व परिणाम प्रगटे छे–एवा
पोताना स्वभावनो तो विश्वास अज्ञानी जीव करतो नथी, ने एक समयना विकार उपर जोर दईने तेना ज
कर्तृत्वमां रोकाई जाय छे–ए तेनी ऊंधी रुचिनुं अनंतुं जोर छे.