Atmadharma magazine - Ank 155
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४८२ ‘आत्मधर्म’ : २०५ :
(१६) प्रश्न:– कई क्रियाथी धर्म थाय?
उत्तर:– ज्ञानक्रिया आत्माना स्वभावभूत होवाथी ते धर्म छे.
(१७) प्रश्न:– कई क्रियाथी अधर्म थाय?
उत्तर:– क्रोधादि क्रिया परभावरूप होवाथी ते बंधननुं कारण छे, अने तेथी ते अधर्म छे.
(१८) प्रश्न:– शरीरनी क्रियाथी धर्म के अधर्म छे के नहि?
उत्तर:– ना; शरीरनी क्रिया तो जडनी क्रिया छे, तेनाथी जीवने धर्म के अधर्म थतो नथी.
(१९) प्रश्न:– ज्ञानक्रिया एटले शुं?
उत्तर:– हुं ज्ञानस्वरूप आत्मा छुं, क्रोधादिथी हुं भिन्न छुं–एम जाणीने ज्ञानस्वरूपना श्रद्धा–ज्ञान–
आचरणरूपे परिणमवुं ते ज्ञानक्रिया छे; ते क्रिया मोक्षनुं कारण छे तेथी ज्ञानीओ ते क्रियानो निषेध करता नथी.
(२०) प्रश्न:– क्रोधादिक्रिया एटले शुं?
उत्तर:– ज्ञानानंदस्वरूप आत्माने चूकीने ‘क्रोधादि ते ज हुं’ एवी एकताबुद्धिथी क्रोधादिमां परिणमवुं ते
क्रोधादिक्रिया छे, ते जीवनो स्वभाव नथी तेथी तेनो निषेध करवामां आव्यो छे. ते क्रोधादिक्रिया मोक्षनुं कारण
नथी पण बंधनुं कारण छे माटे ज्ञानीओ तेनो निषेध करे छे.
(२१) प्रश्न:– ज्ञानक्रियानो निषेध केम नथी?
उत्तर:– केमके ते क्रिया तो जीवना स्वभावभूत ज छे, तेने तो आत्मानी साथे एकता ज छे, तेथी तेनो
निषेध थई शके ज नहि. ज्ञानक्रियानो निषेध करवाथी तो आत्मानो ज निषेध थई जाय. जेम अग्निनी
उष्णतानो निषेध थई शके नहि, केम के ते तेना स्वावभूत छे, पण अग्निमांथी धूमाडानो निषेध थई शके केमके
ते परभावरूप छे; तेम आत्मानी ज्ञानक्रियानो निषेध थई शके नहि केम के ते तो आत्माना स्वभाव साथे
एकमेक होवाथी स्वभावभूत ज छे, पणा क्रोधादि विकारी क्रियानो आत्मामांथी निषेध थई शके, केम के ते
आत्माना स्वभाव साथे एकरूप नथी पण परभावरूप छे. आत्मा साथे अभेद थईने एकतारूपे परिणमेलुं
ज्ञान आत्माथी जुदुं पडी शकतुं नथी माटे ते ज्ञानक्रियानो निषेध नथी. पण ज्ञान साथे एकतारूप परिणमतां
क्रोधादिनी रुचि छूटी जाय छे माटे ते क्रोधादिक्रियानो निषेध छे.
(२२) प्रश्न:– क्रियानी केटली जात?
उत्तर:– क्रियानी त्रण जात– (१) ज्ञानक्रिया (२) क्रोधादिक्रिया अने (३) जडक्रिया.
(२३) प्रश्न:– बंध–मोक्षनो संबंध कई क्रिया साथे छे?
उत्तर:– ज्ञानक्रिया अने क्रोधादिक्रिया ए बंने अरूपी छे, के जीवमां थाय छे. तेमांथी ज्ञानक्रिया तो मोक्षनुं
कारण होवाथी ते धर्म छे; क्रोधादिक्रिया बंधनुं कारण होवाथी ते अधर्म छे. अने शरीरादि जडनी क्रिया तो जीवथी
भिन्न होवाथी ते बंधनुं के मोक्षनुं कारण नथी, तेथी तेनाथी धर्म के अधर्म नथी.
(२४) प्रश्न:– मोक्ष केम थाय?
उत्तर:– ज्ञानक्रिया अने क्रोधादिक्रिया ए बंनेने भिन्न भिन्न जाणीने, ज्ञान साथे ज अभेदतारूप प्रवृत्ति
करवी ने क्रोधादि साथे कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति छोडवी, –आम करवाथी मोक्ष थाय छे.
(२५) प्रश्न:– आत्माने ज्ञान साथे केवो संबंध छे?
उत्तर:– ज्ञान साथे आत्माने एकतारूप तादात्म्य–संबंध छे.
(२६) प्रश्न:– क्रोधादि साथे आत्माने केवो संबंध छे?
उत्तर:– क्रोधादि भावो साथे आत्माने संयोग–संबंध छे.
(२७) प्रश्न:– क्रोधादि भावो आत्मानी ज पर्यायमां