: भादरवो : २४८२ ‘आत्मधर्म’ : २०७ :
जिनशासनो महिमा (८)
[भवप्रभत ग. ८३ उपरन प्रवचन]
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप शुद्धवीतरागीभाव ते ज खरो
धर्म छे, ने तेनी ज प्राप्तिनो जिनशासनमां उपदेश छे. आवो धर्म ते
ज भवनो नाशक ने मोक्षनो दातार छे. माटे हे भव्यजीवो! तमे
आदरपूर्वक आवा जैनधर्मनुं सेवन करो...
शुद्धपरिणाम ते आत्मानो धर्म छे, तेमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र त्रणे आवी जाय छे, पण राग तेमां नथी आवतो. आ
शुद्धरत्नत्रयरूप वीतरागी वीतरागभाव ते ज सर्वे शास्त्रोनुं तात्पर्य
छे, ते ज जिनशासन छे, ते सर्वज्ञनाथनी आज्ञा छे, ने ते ज संतोनुं
फरमान छे... माटे तेने ज श्रेयरूप जाणीने आराधना करो.
जैनधर्म क्यां रहेतो हशे?
जैनधर्म एटले आत्मानो साचो धर्म; आत्मानो वास्तविक स्वभाव ते ज जैनधर्म छे; जेना ग्रहणथी
जरूर मोक्ष थाय एवो आत्मानो शुद्धभाव ते जैनधर्म छे. जैनधर्म क्यां रहेतो हशे? जैनधर्म आत्माना
शुद्धभावमां रहे छे, ए सिवाय शुभाशुभभावमां के जडना भावमां जैनधर्म रहेतो नथी.
जडभावमां धर्म – अधर्म नथी
दरेक पदार्थने पोतपोताना ‘भाव’ होय छे, जडने पण तेनो जडभाव होय छे. ‘जडभावे जड परिणमे,
चेतन चेतनभाव’ –एम बंने पदार्थोमां पोतपोताना भाव छे. हवे क्यो भाव ते धर्म छे ए अहीं बताववुं छे.
जडपुद्गलने तेना स्पर्शादिरूप भावो होय छे. पुद्गलमां एक छूटो परमाणु होय तेने शुद्ध कहेवाय छे,
पण तेथी कांई तेने सुख होतुं नथी, तेमज पुद्गलमां स्कंध ते विभावपर्याय छे, पण ते विभावथी कांई तेने
दुःख नथी; आ रीते पुद्गल तो स्वभावमां हो के विभावमां हो, तेने सुख–दुःखरूप भाव नथी. एटले ते जडना
भावमां कांई धर्म के अधर्म नथी.
जीवना त्रण प्रकारना भावो;
तेमां शुद्धभाव ते ज जैनधर्म
हवे जीवना भावनी आ वात छे: जीवना भाव त्रण प्रकारना छे–अशुभ, शुभ अने शुद्ध मिथ्यात्व–हिंसा
आदिक पाप भावो छे ते अशुभ छे, पुजा–व्रतादि पुण्यभावो छे ते शुभ छे; परंतु आ अशुभ ने शुभ बंने
भावो परना आश्रये थाय छे एटले विभावरूप छे, अशुद्ध