दुःखरूप छे. अने पोताना स्वभाव–आधीन प्रगटेला सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते शुभभाव छे, ते आत्माना
स्वभावरूप छे, तेमां रागादिनो अभाव छे, अनाकुळ शांतिस्वरूप होवाथी ते भाव जीवने सुखरूप छे. तेथी ते
सुखरूप एवा शुद्धभावोनुं उपादेयपणुं बताववा अहीं कह्युं के शुद्धभाव ते ज जैनधर्म छे, ते ज आदरणीय छे; ने
ओळखीने हितरूप भावोने आदर, ने अहितरूप भावोने छोड. आ सिवाय शरीर वगेरे तो जड छे, ते जडमां
क्यांय तारो धर्म के अधर्म नथी. पुद्गलमां तेनो जडरूप भाव छे पण तेने सुख–दुःखना वेदनरूप भाव नथी.
पुद्गलमां सुगंधी पर्याय हो के दुर्गंधी पर्याय हो, तेथी कांई तेने सुख के दुःख नथी, तेम ज तेनाथी जीवने सुख–
दुःख थाय एम पण नथी. जडने लीधे जीवने सुख–दुःख थतुं नथी पण पोताना भावथी ज सुख–दुःख थाय छे.
सुख–दुःख वगरना एवा पुद्गल वडे जीव पोताने सुखी–दुःखी मने छे ए केवी भ्रमणा छे!! शरीरनी नीरोग
अवस्थाथी जीवने सुख, के शरीरनी रोग अवस्थाथी जीवने दुःख, –एम नथी; पण आ चीज मने ठीक ने आ
बंनेमां आकुळता छे, दुःख छे, तेनुं फळ बंधन छे, तेमां धर्म नथी. निराकुळ शांत परिणामरूप सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र ते सुख छे ते ज धर्म छे, ने तेनुं फळ मुक्ति छे. आ रीते जीवना भावथी ज भगवाने धर्म–अधर्म कह्यो
छे. तेमां पण जीवना सम्यग्दर्शनादि शुद्ध–भावने ज जिनशासनमां धर्म कह्यो छे, तेने बदले शरीरनी क्रिया वगेरे
जडने लीधे जे धर्म माने छे ते तो जड जेवा ज छे, तेनी तो शुं वात! पण शुभरागथी जे धर्म मनावे छे तेने
पण जैनशासननी खबर नथी. राग तो आस्रव अने बंधनुं कारण छे तेना वडे संवर–निर्जरारूप धर्म जरा पण
थतो नथी. चैतन्य स्वभावना आश्रये वीतरागी शुद्धभाव प्रगटे ते ज धर्म छे. जुओ, आ जिनशासनमां धर्मनी
रीत!! आवो जैनधर्म ज भवभ्रमणनो छेद करी नांखे छे. आ सिवाय व्रत–पूजादिना शुभभावने लौकिकजनो
तथा अन्यमतीओ धर्म कहे छे परंतु तेमां कांई भवभ्रमणनो छेद करवानी ताकात नथी माटे जेने भवभ्रमणथी
कहे छे. सर्वज्ञ भगवाननी दिव्यध्वनिमांथी जे मार्ग नीकळ्यो, अने ते झीलीने कुंदकुंदाचार्यदेव आदि संतोए जे
मार्ग फरमाव्यो, ते ज आ मार्ग छे, आ ज जैनशासन छे; आनाथी विरुद्ध माननारा बीजा बधा अन्यमत छे.
रागादि भावो ते धर्म नथी. रागद्वेष रहित थईने ज्ञान–दर्शन पोताना स्वभावमां निश्चल रहे ते धर्म छे. आत्मा
ज्ञानदर्शनस्वभावी छे; ते ज्ञान–दर्शन परिणाम राग–द्वेष–मोह वडे मलिन न थाय–क्षोभ न पामे–अस्थिर न